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________________ संयम: मध्य में रुकना कोशिश करें तो जो ब्रह्मचर्य की कोशिश है, वह एक तरह की कांस्टिपेशन की कोशिश है । कोष्टबद्धता है वह । आदमी सब चीजों भीतर रोक लेना चाहता है, कुछ निकल न जाए शरीर से उसके । तो श्वास भी वह धीमी लेगा । सब चीजों को रोक लेगा। वह रुकाव उसके चारों तरफ व्यक्तित्व में खड़ा हो जाएगा। ये अतियां हैं। श्वास की सरलता उस क्षण में उपलब्ध होती है, जब आपको पता ही नहीं चलता कि आप श्वास ले भी रहे हैं । ध्यान में जो लोग भी गहरे जाते हैं उनको वह क्षण आ जाता है— वे मुझे आकर कहते हैं कि कहीं श्वास बंद तो नहीं हो जाती ! पता नहीं चलता, बंद नहीं होती श्वास । श्वास चलती रहती है। लेकिन इतनी शांत हो जाती है, इतनी समतुल हो जाती है, बाहर जाने वाली श्वास, भीतर आने वाली श्वास ऐसी समतुल हो जाती है कि दोनों तराजू बराबर खड़े हो जाते हैं। पता ही नहीं चलता। क्योंकि पता चलने के लिए थोड़ा बहुत हलन-चलन चाहिए। पता चलने के लिए थोड़ी बहुत डगमगाहट चाहिए। पता चलने के लिए थोड़ा मूवमेंट चाहिए। यह सब मूवमेंट एक अर्थ में थिर हो जाता है। ऐसा नहीं कि नहीं चलता। चलता लेकिन दोनों तुल जाते हैं। जो व्यक्ति जितना संयमी होता है उतनी उसकी श्वास भी संयमित हो जाती है। या जिस व्यक्ति की जितनी श्वास संयमित हो जाती है उतना उसके भीतर संयम की सुविधा बढ़ जाती है इसलिए श्वास पर बड़े प्रयोग महावीर ने किये । श्वास के संबंध में भी अत्यंत संतुलित, और जीवन के और सारे आयामों में भी अत्यंत संतुलित । महावीर कहते हैं- सम्यक आहार, सम्यक व्यायाम, सम्यक निद्रा, सम्यक... सभी कुछ सम्यक । वे नहीं कहते हैं कि कम सोओ; वे नहीं कहते कि ज्यादा सोओ; वे कहते इतना ही सोओ जितना सम है । वे नहीं कहते कम खाओ, ज्यादा खाओ; वे कहते हैं उतना ही खाओ जितना सम पर ठहर जाता है। इतना खाओ कि भूख का भी पता न चले और भोजन का भी पता न चले। अगर खाने के बाद भूख का पता चलता है तो आपने कम खाया और अगर खाने के बाद भोजन का पता चलने लगता है तो आपने ज्यादा खा लिया। इतना खाओ कि खाने के बाद भूख का भी पता न चले और पेट का भी पता न चले। लेकिन हम दोनों नहीं कर पाते हैं, या तो हमें भूख का ता चलता है और या हमें पेट का पता चलता है। भोजन के पहले भूख का पता चलता है और भोजन के बाद भोजन का पता चलता है, लेकिन पता चलना जारी रहता है । महावीर कहते हैं— पता चलना बीमारी है। असल में शरीर के उसी अंग का पता चलता है जो बीमार होता है । स्वस्थ अंग का पता नहीं चलता। सिरदर्द होता है तो सिर का पता चलता है, पैर में कांटा गड़ता है तो पैर का पता चलता है। महावीर ह हैं - सोने का भी नहीं, जागने का भी नहीं - श्रम का सम्यक आहार, पता ही न चले - भूख का भी नहीं, भोजन का भी नहीं भी नहीं, विश्राम का भी नहीं। मगर हम दो में से कुछ एक ही कर पाते हैं। या कर लेते हैं। तो हम श्रम ज्यादा कर लेते हैं, या विश्राम ज्यादा -- कारण क्या है यह ज्यादा कर लेने का? कुछ भी ज्यादा कर लेने का ? कारण यही है कि ज्यादा करने में हमें पता चलता है कि हम हैं। हमें पता चलता है कि हम हैं और हम चाहते यही हैं कि हमें पता चलता रहे कि हम हैं। यही महावीर की अहिंसा के बाबत मैंने आपसे कहा कि अहिंसा का अर्थ है- - हमें पता ही न चले कि हम हैं। ऐब्सेंट हो जाएं— अनुपस्थित । पर हमारा मन होता है, हमारा पता चले कि हम हैं। यही अहंकार है कि हमें पता चलता रहे कि हम हैं। न केवल हमें, बल्कि औरों को पता चलता रहे कि हम हैं। तो फिर हम... असंयम के सिवाय हमारे लिए कोई मार्ग नहीं रह जाता। इसलिए जितना असंयमी आदमी हो, उतना ही उसका पता चलता है 1 एमाइल जोला ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि अगर दुनिया में सब अच्छे आदमी हों तो कथा लिखना बहुत मुश्किल हो जाए। Jain Education International 107 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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