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________________ संयम : मध्य में रुकना आदमी के, अस्वस्थ के तो और ज्यादा। तो महावीर एक पहाड़ से अपने को कूदकर मारते हैं तो सात करोड़ को साथ मारते हैं। को लें, तो भी सात करोड़ को साथ मारते हैं। महावीर जब देखते हैं हिंसा को, तब जटिल है सवाल। इतना आसान नहीं है, जितना आपकी आंखें देखती हैं। क्या है हत्या? कौन-सी चीज हत्या है? महावीर के देखे तो जीवन को जीने की कोशिश में ही हत्या है और जीवन को जीने में हत्या है। हत्या प्रतिपल चल रही है। और प्रत्येक जीना चाहता है इसलिए जब उस पर हमला होता है तब उसे लगता है हत्या हो रही है। बाकी समय हत्या नहीं होती है। अगर जंगल में आप जाकर शेर का शिकार करते हैं तो वह खेल है, और शेर जब आपका शिकार करे तब शिकार नहीं कहलाता वह, तब वह हत्या है। तब वह जंगली जानवर है, और आप बहुत सभ्य जानवर हैं। और मजा यह है कि शेर आपको कभी नहीं मारेगा जब तक उसको भूख नहीं लगी हो और आप तभी उसको मारेंगे जब आपको भूख न लगी हो, पेट भरा हो। कोई भूखे आदमी जंगल में शिकार करने नहीं जाते हैं। जिनको ज्यादा भोजन मिल गया है, जिनको अब पचाने का उपाय नहीं दिखाई पड़ता है, वे शिकार करने चले जाते हैं। शेर तो तभी मारता है जब भूखा हो, अनिवार्यता हो। स में उन्होंने एक नया प्रदर्शन शरू किया था। एक भेड को और एक शेर को एक ही कटघरे में रखने का, मैत्री का। लोग बड़े खुश होते थे, देखकर चमत्कृत होते थे कि शेर और भेड़ गले मिलाकर बैठे हुए हैं। जैनी देखते तो बहुत ही खुश होते। वे भी अपने चित्र बनाये बैठे हुए हैं, शेर और गाय को साथ बिठलाया है। लेकिन एक आदमी थोड़ा चकित हुआ क्योंकि यह बड़ा कठिन मामला है। तो उसने जाकर मैनेजर से पूछा कि है तो प्रदर्शन बहुत अदभुत, लेकिन इसमें कभी झंझट नहीं आती? उसने कहा- कोई ज्यादा झंझट नहीं होती। फिर भी उसने कहा कि शेर और भेड़ का साथ-साथ रहना! क्या कभी उपद्रव नहीं होता? उस मैनेजर ने कहा- कभी उपद्रव नहीं होता। सिर्फ हमें रोज एक नयी भेड़ बदलनी पड़ती है। और कोई दिक्कत नहीं है, बाकी सब ठीक चलता है। और जब शेर भूखा नहीं रहता तब दोस्ती ठीक है, फिर कोई झंझट नहीं है। फिर वह दोस्ती चलती है। जब भूखा होता है, तब वह खा जाता है। दूसरे दिन हम दसरी बदल देते हैं। यह प्रदर्शन में कोई इससे बाधा नहीं पड़ती। शेर भी भेड़ पर हमला नहीं करता जब भूखा न हो। गैर अनिवार्य हिंसा कोई जानवर नहीं करता, सिवाय आदमी को छोड़कर । लेकिन हमारी हिंसा हमें हिंसा नहीं मालूम पड़ती है। हम उसे नये-नये नाम और अच्छे-अच्छे नाम दे देते हैं। आदमी की हिंसा न हो। फिर आदमी के साथ भी सवाल नहीं है। इसमें भी हम विभाजन करते हैं। हमारे निकट जो जितना पड़ता है, उसकी हत्या हमें उतनी ज्यादा मालूम पड़ती है। अगर पाकिस्तानी मर रहा हो तो ठीक, हिन्दुस्तानी मर रहा हो तो तकलीफ होती है। फिर हिन्दुस्तानी में भी अगर हिन्दू मर रहा हो तो मुसलमान को तकलीफ नहीं होती है। मुसलमान मर रहा हो तो जैनों को तकलीफ नहीं होती है, जैनी मर रहा हो तो हिन्द्र को तकलीफ नहीं होती। और भी निकट हम खींचते चले आये हैं। दिगंबर मर रहा हो तो श्वेतांबर को कोई तकलीफ नहीं होती। श्वेतांबर मर रहा हो तो दिगंबर को कोई तकलीफ नहीं होती। फिर और हम नीचे निकल आते हैं- फिर और कुछ —फिर आपके परिवार का कोई मर रहा हो तो तकलीफ होती है। और दूसरे परिवार का कोई मर रहा हो तो सहानुभूति दिखाई जाती है, होती तक नहीं। फिर वहां भी, अगर आपके ही ऊपर सवाल आ जाए कि आप बचें कि आपके पिता बचें? तो पिता को मरना पड़ेगा। भाई बचे कि आप बचें तो फिर भाई को मरना पड़ेगा। फिर इसमें भी हिसाब है। अगर आपका सिर बचे कि पैर बचे, तो पैर को कटना पड़ेगा। 95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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