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________________ धर्म : निजी और वैयक्तिक में इंच-इंच वही! और वह देखता रहा बार-बार कि अरबों-खरबों हैं। इसलिए तो बुद्ध हों, महावीर हों, कृष्ण हों, मनोवैज्ञानिक पर क्या असर हो रहा है। लेकिन वह बड़ा हैरान क्राइस्ट हों-वे सभी कहते हैं, श्रद्धा से सुनोगे तो शायद कुछ हुआ कि कुछ खास असर नहीं हो रहा है। पूरा सपना सुनाने के हो सके; संदेह से सुनोगे तो द्वार तो पहले ही बंद हो गया। श्रद्धा बाद उसने पूछा, 'आप क्या सोचते हैं इस सपने के बाबत?' पर इतना जोर क्यों है? इसीलिए कि धर्म की परंपरा नहीं बन मनोवैज्ञानिक ने कहा कि मैं बड़ा परेशान हूं, क्योंकि तीन आदमी | सकती। जिसको हुआ है, अगर तुम्हारे मन में उसके प्रति थोड़ी तो यह सपना मुझे दिन में सुना ही चुके हैं। तीन आदमी! वे दोनों सहानुभूति हो, लगाव हो, थोड़ी चाहत का रंग हो, तुम दोनों में बड़े हैरान हुए कि यह तीसरा कौन है! क्योंकि तीसरे को तो कुछ तालमेल हो, तुम उस आदमी को इतना प्रेम करते हो कि तुम उन्होंने बताया नहीं था। सोचते थे, मजाक मनोवैज्ञानिक से कर | जानते हो कि झूठ वह बोल न सकेगा-तभी। अगर तुम्हारे मन रहे हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिक ने मजाक उनके साथ कर दी। वे में जरा-सा भी संदेह है कि हो सकता है, यह आदमी झूठ बोल | बड़ी मुश्किल में पड़ गये कि अब यह तीसरे का कैसे पता चले! रहा हो; या यह भी हो सकता है कि झूठ न बोल रहा हो, खुद ही और हद्द हो गई, यह तो सपना हम दोनों ने भी देखा नहीं, सिर्फ धोखा खा गया हो; चाहकर झूठ न बोल रहा हो, लेकिन खुद ही तय किया था, तीसरा कौन है! दोनों दूसरे दिन आये। उन्होंने ने सपना इतना गहरा देख लिया हो कि इसे भरोसा आ गया हो; कहा, 'माफ करें! हम मजाक कर रहे थे। लेकिन तीसरा कौन या तो यह धोखा दे रहा है या खुद धोखा खा रहा है-इतना-सा है?' उन्होंने कहा, 'रातभर हम सो नहीं सके।' संदेह काफी है, कि सत्य तुम्हारे लिए बंद हो गया। मनोवैज्ञानिक ने कहा, 'तीसरा कोई नहीं, वह मैं मजाक कर बुद्धपुरुष तुम्हारे भीतर केवल प्यास को जगा सकते हैं; वह भी रहा था, क्योंकि दो आदमी तो देख ही नहीं सकते। वह तो मैं तुम्हारी श्रद्धा का सहारा हो तो।। जान ही गया कि जब दो ने एक सपना देखा तो दोनों तय करके तो पहली तो बात, धर्म कोई परंपरा नहीं है। संन्यास भी कोई आये हैं एक अप्रैल की वजह से। इसलिए मैंने कहा कि तीन तो परंपरा नहीं है। संन्यास एक-एक व्यक्ति का निजी उदघोषण है; कह ही चुके। हद्द हो गई। | एक-एक व्यक्ति की परमात्मा के द्वारा स्वीकार की गई चुनौती दो आदमी एक सपना देख ही नहीं सकते। सपना निजी है। है—अलग-अलग है। इसलिए हर व्यक्ति में जब संन्यास इसीलिए तो नास्तिक कहता है, भगवान सपना है। क्योंकि तुम घटित होगा तो भिन्न घटित होगा। संन्यास बड़ी निजी बात है। कहते हो, हमने देखा, लेकिन दिखाओ। सपने में और तुम्हारे | बड़ी संभावना है। भगवान के अनुभव में फर्क क्या हुआ? सिर्फ सपना ही ऐसी | क्राइस्ट हैं, संन्यस्त पुरुष हैं; पर इनका संन्यास महावीर जैसा चीज है जो दूसरे को नहीं दिखाया जा सकता। इसलिए भगवान नहीं है। क्राइस्ट को कोई अड़चन न थी, कोई मित्र बुलाये और तुम्हारा सपना है। यह कुंडलिनी-जागरण और प्रकाश के | शराब पीने को दे दे तो पी लेते थे। महावीर तो पानी भी न पीयेंगे अनुभव-ये सब तुम्हारे सपने हैं। नास्तिक कहता है, इसमें | ऐसा, शराब तो दूर की बात। महावीर तो कहते हैं, किसी के और सपने में फर्क कहां? फर्क तो एक ही होता है सपने में और बुलाये वे जायेंगे ही नहीं; क्योंकि किसी के बुलाये गये तो संबंध सचाई में कि सचाई सबकी होती है, सामूहिक होती है, | निर्मित होता है। शराब की तो छोड़ो, पानी पीने भी तुमने महावीर सार्वजनिक होती है। और सपना निजी होता है। इसलिए इतने को कहा कि आज मेरे घर आ जाना, भरी दुपहरी है, धूप है, तेज बुद्धपुरुष हुए और एक नास्तिक को सारे बुद्धपुरुष मिलकर भी | है, थोड़ा छाया में बैठ जाना, पानी पी लेनातो वे न आयेंगे। राजी नहीं कर सकते, क्योंकि जब तक तुम संदेह किये चले क्योंकि वे कहते हैं कि जिसका निमंत्रण तुमने स्वीकार किया जाओ, कोई उपाय नहीं है, कोई प्रमाण नहीं है। उससे संबंध बना लिया। परमात्मा अनुभव है और उसका कोई प्रमाण नहीं छूटता। तो महावीर भीख भी मांगते हैं तो बड़े अनूठे ढंग से मांगते थे। जिसको होता है, बस उसको होता है। और जिसको होता है, वह उनकी भीख मांगने का ढंग भी अनूठा है; ऐसा दुनिया में कभी अकेला पड़ जाता है। और जिनको नहीं हुआ है, वे किसी ने भीख नहीं मांगी है। इसलिए कहता हूं, संन्यास बड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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