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________________ जिन सूत्र भाग : 1 समा जाये; या तुम्हारा आत्मभाव इतना शून्य हो जाये कि सबमें | हमने इस इश्क में क्या खोया है, क्या पाया है समा जाये। जुज तिरे और को समझाऊं तो समझान सकू। महावीर का मार्ग आत्मा को सुदृढ़ करने का मार्ग है। नारद का। | उस परम प्यारे के अतिरिक्त किसी और को समझा भी न मार्ग आत्मा को विसर्जित कर देने का मार्ग है। इसलिए घबड़ाओ सकोगे। कोई समझेगा भी नहीं, क्योंकि यह सौदा बड़े पागलपन मत। हंसकर रोओ, रोकर नाचो, नाचकर रोओ। नृत्य को | का है। भक्त का रास्ता दीवाने का रास्ता है। उत्सव समझो। महावीर का रास्ता अत्यंत विचार का रास्ता है, अत्यंत विवेक हम पे मुश्तरका हैं अहसान गमे-उलफत के का, गणित का। वहां चीजें साफ-सुथरी हैं। इसलिए इतने अहसान कि गिनवाऊं तो गिनवा न सकं . जैन-शास्त्रों में रस नहीं है। पढ़े जाओ, सुने जाओ, मरुस्थल ही हमने इस इश्क में क्या खोया है, क्या पाया है मरुस्थल है। जैन शास्त्रों में रस नहीं है—हो नहीं सकता। वह जुज तिरे और को समझाऊं तो समझा न सकूँ। मार्ग वैराग्य का है, विरसता का है। रस है तो भक्ति के शास्त्रों हम पे मुश्तरका हैं अहसान गमे-उलफत के! प्रेम की पीड़ा के | में। वहां तुम्हें कोई सूखी जमीन न मिलेगी। वहां सब कमलों से इतने अहसान हैं, प्रेम के दुख ने इतना दिया है-गमे-उलफत। ढंका है। लेकिन वे कमल मुफ्त नहीं मिलते। वे कमल यूं ही हम पे मुश्तरका हैं अहसान गमे-उलफत के नहीं खिलते; जब कोई सब गंवाता है, तब खिलते हैं। तो इतने अहसान कि गिनवाऊं तो गिनवा न सकूँ।। घबड़ाना मत। अब रोने को ही साधना समझना। कंजसी से मत अनंत है उनका उपकार। एक-एक आंसू ने भक्त को निखारा | रोना। रोए और कंजूसी से रोए तो व्यर्थ रोए। दिल भरकर रोना। | है, स्वच्छ किया है, ताजगी दी है, निर्दोष बनाया है। समग्रता से रोना। और रोने को प्रार्थना समझना, अहोभाव एक-एक आंसू जहर को लेकर बाहर हो गया है, पीछे अमृत समझना। ये आंसू कम ही सौभाग्यशालियों की आंखों में आते ही छूट गया है। हैं। बहतों की आंखें तो पथरा गयी हैं, नकली हो गयी हैं। हम पे मुश्तरका हैं अहसान गमे-उलफत के मैंने सुना है, एक करोड़पति कंजूस की एक आंख नकली थी, इतने अहसान कि गिनवाऊं तो गिनवा न सकू पत्थर की थी। एक आदमी भीख मांगने आया था। कंजूस ने हमने इस इश्क में क्या खोया है, क्या पाया है . कभी किसी को भीख न दी थी। लेकिन उस दिन कुछ शुभ मुहूर्त जुज तिरे और को समझाऊं तो समझान सकू। में आ गया था भिखारी। कंजूस कुछ प्रसन्न था। कोई बड़ी और कोई समझ भी न सकेगा। संपदा हाथ लग गयी थी। अभी-अभी खबर मिली थी तो बड़ा बहुत कुछ खोया भी जाता है प्रेम में। बहुत कुछ पाया भी जाता | प्रफुल्लित था। तो रोज से उस दिन सदय था। कभी किसी है प्रेम में। खोना मार्ग है पाने का। खोने से डरे तो पाने से वंचित भिखारी को कुछ न दिया था। उस दिन भिखारी से कहा, रह जाओगे। पहले तो खोया ही जाता है; पाना तो बाद में घटता 'अच्छा दूंगा कुछ, लेकिन पहले एक शर्त है। क्या तू बता है। पहले तो खोना ही खोना है। सौदा पहले तो घाटे का है। सकता है कि मेरी कौन-सी आंख असली है, कौन-सी नकली जब सब खो जाता है, तब मिलन के क्षण आते हैं, तब वर्षा होती है?' उस भिखारी ने देखा और उसने कहा कि बायीं असली है। जैसे गर्मी में सब सूख जाता है, धरती तपती है, वृक्ष रूखे हो होनी चाहिए, दायीं नकली। चकित हुआ धनपति। उसने कहा, जाते, पत्ते गिर जाते, वृक्ष नग्न हो जाते, धरती प्यासी और 'कैसे तूने जाना?' तो उसने कहा, 'नकली आंख में थोड़ी-सी रोती-तब मेघ-मल्हार, तब मेघ घिरते हैं, तब आषाढ़ के करुणा मालूम पड़ती है, थोड़ी दया का भाव मालूम पड़ता है, दिवस आते और वर्षा होती है। इससे पहचाना। असली तो बिलकुल पथरा गयी है।' पहले तो खोना ही खोना है। खोना पाने की पात्रता है। पहले - बहुत हैं जिनकी आंखें पथरा गयी हैं, जिनके हृदय सूख गये हैं, तो खाली होना है, इसलिए खोना पड़ेगा। पात्र जब पूरा खाली रसधार नहीं बहती। गंगा खो गयी है, रूखे-सूखे रेत के पहाड़ होगा तो बरसेगा परमात्मा। खड़े रह गये हैं। कहीं कोई अंकुर नहीं फूटता, कोई पक्षी गीत 7o Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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