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बोध-गहन बोध
मुक्ति है
जैसे दीये के जलने पर अंधेरा विसर्जित होता है-सम्यकत्व का जन्म होता है। और जब तुम पहंच गये, तो वहां न मिथ्यात्व है न सम्यकत्व, दोनों द्वंद्व गये। फिर वहां तो केवल-ज्ञान, केवलत्व, कैवल्य है।
आज इतना ही।
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