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________________ R R निमन्त्रण ओशो के प्रवचनों की भूमिका लिखने का मैं अपने आपको की अंतिम कड़ी तक हमारे लिए पाथेय हैं। अधिकारी पात्र नहीं समझता हूं, क्योंकि केवल एक सबुद्ध ही | यशस्वी कवि श्री हरिवंशराय बच्चन की कुछ पंक्तियां दूसरे संबुद्ध के संबंध में कुछ कहने और लिखने का अधिकारी हैंहै; जैसा कि भगवान महावीर तथा उनके जिन-सूत्रों पर आज पोत अगणित इन तरंगों ने पुनः पच्चीस सौ वर्ष के उपरांत ओशो ने अपने प्रवचनों के डुबाए, मानता मैं माध्यम से उनके सत्य का उदघाटन किया है। वही सम्यक है। पार भी पहुंचे बहुत से भगवान महावीर के संबंध में ओशो कहते हैं: बात यह भी जानता मैं ___ "...महावीर से ज्यादा सुंदर, महिमामंडित परमात्मा की किंतु होता सत्य यदि यह कोई और छवि देखी है? महावीर से ज्यादा आलोकित, विभामय भी, सभी जलयान डूबे कोई और विभूति देखी है? कहीं और देखा है ऐसा ऐश्वर्य जैसा पार जाने की प्रतिज्ञा महावीर में प्रगट हुआ? जैसी मस्ती और जैसा आनंद, और जैसा आज बरबस ठानता मैं संगीत इस आदमी के पास बजा, कहीं और सुना है? कृष्ण को डूबता मैं, किंतु उतराता तो बांसुरी लेनी पड़ती है, तब बजता है संगीत; महावीर के पास सदा व्यक्तित्व मेरा बिना बांसुरी बजा है। मीरा को तो नाचना पड़ता है, तब बजता हों युवक डूबे भले ही है संगीत।...कोई सहारा न लिया-वीणा का भी नहीं, नृत्य का है कभी डूबा न यौवन भी नहीं, बांसुरी का भी नहीं। कृष्ण तो सुंदर लगते हैं- तीर पर कैसे रुकू मैं मोर-मुकुट बांधे हैं। महावीर के पास तो सौंदर्य के लिए कोई आज लहरों में निमंत्रण! सहारा नहीं-बेसहारे! निरालंब! लेकिन कहीं और देखा है परमात्मा का ऐसा आविष्कार? जीवन की ऐसी प्रगाढ़ता! ऐसा ओशो कहते हैं : “महावीर दूर अनंत के सागर की लहरों घना आनंद!" का निमंत्रण हैं। और निमंत्रण ही नहीं. उस दर के सागर तक ऐसे अनूठे महावीर के जिन-सूत्रों पर प्रवचनों के माध्यम पहुंचने का एक-एक कदम भी स्पष्ट कर गए हैं। महावीर ने से ओशो जिन-साधना के लिए हमें निमंत्रण दे रहे हैं। इस अध्यात्म के विज्ञान में कुछ भी अधूरा नहीं छोड़ा है, खाली जगह साधना में अनंत उतार-चढ़ाव आएंगे, अनेक भटकाव भी आ | नहीं है। नक्शा पूरा है। एक-एक इंच भूमि को ठीक से माप गए सकते हैं। ओशो के ये अमृत-प्रवचन अंतिम घड़ी तक, यात्रा | हैं, और जगह-जगह मील के पत्थर खड़े कर गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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