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निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवबूह थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ।।७८।।
जत्थेव पासे कई दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेण। तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिप्पमिवक्खलीणं।।७९।।
तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम् ! मा पमायए।।८०।।
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