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________________ बोध-गहन बोध-मुक्ति है - - को देखेंगे, वे कहेंगेः 'चलो। चलो यहां से चलें और उम्र भर के एक बार गया तो पत्नी को बाहर भेज दिया। पत्नी ने कहा कि लिए, सदा के लिए।' . 'आप किसलिए आते हो बार-बार?' मैंने कहा, 'तुमको भी यही वैराग्य है। पता होना चाहिए, तभी तुम नाराज मालूम होती हो। वह एक मुझे जिंदगी की दुआ देनेवाले दांव की बात है।' हंसी आ रही है तेरी सादगी पर। कहने लगी कि हमारे छोटे बच्चे हैं, क्यों फिजूल के...? लोग जिंदगी की दुआ देते हैं कि खूब जीयो, जुग-जुग जीयो! क्योंकि जब से तुमसे मिलना उनका हुआ है, वे बड़े चिंतित रहते जरा पूछो भी तो किसलिए दुआ दे रहे हो? क्या पाया तुमने हैं और उदास रहने लगे हैं। जुग-जुग जीकर? जुग-जुग जीयो यानी जुग-जुग दुख भोगो। मेरी मां ने मुझे कहा, तो मैंने कहा, 'तू ऐसा कर, पंद्रह दिन तू सीधी कहो न बात, काहे छिपाते हो? भी सोच ले। अगर तुझे तेरे जीवन में और तेरी शादी से और तेरे मैं विश्वविद्यालय से घर लौटा, तो मेरी मां, मेरे पिता, परिवार | बच्चों से कोई सुख मिला हो - ऐसा सुख जो तू चाहे कि तेरे बेटे के लोग बड़े चिंतित थेः शादी! शादी! शादी! डरते भी थे को भी मिलना चाहिए, अगर ऐसा कुछ तूने पाया हो, जो कि तेरे मुझसे पूछने में, क्योंकि वे जानते रहे सदा से कि मैं 'हां' कह दूं मन में दुख रहेगा कि तेरे बेटे को न मिला तो पंद्रह दिन बाद तो 'हां' और 'ना' कह दूं तो 'ना'-फिर 'हां' करना मुझे कह देना, मैं शादी कर लूंगा। और अगर ऐसा कुछ भी न मुश्किल है। तो पूछते नहीं थे सीधा; यहां-वहां से खबर | पाया हो, दुख ही पाया हो तो इतनी तो कृपा कर कि मुझे चेता दे, भेजते-कोई रिश्तेदार, कोई मित्र। तो मेरे पिता के एक मित्र थे, | मुझे बता दे कि दुख ही पाया है, तो किसी भूल-चूक से मैं न वकील थे। उन्होंने सोचा कि वकील आदमी है, यही ठीक उलझ जाऊं।' रहेगा। उनको कहा कि तुम ही कुछ समझाओ। वकील ने कहा, मेरी मां, सीधी-सादी! उसने पंद्रह दिन बाद कहा कि यह 'समझा लेंगे। बड़े मुकदमे जीते हैं, यह भी कोई बात है।' झंझट की बात है। तुम्हें करना हो करो, न करना हो न करो। वकील तैयार होकर आए। वे मुझसे विवाद करने लगे कि शादी और हमें सोचने को मत कहो, क्योंकि सोचने से और घबड़ाहट के क्या-क्या लाभ हैं। मैंने सब सुना। मैंने कहा, 'सुनो। अगर होती है, सच में पाया तो कुछ भी नहीं। मैं तुमसे न कह सकूँगी तुमने सिद्ध कर दिया कि शादी में लाभ हैं तो मैं शादी कर लूंगा; कि तुम शादी करो, क्योंकि ऐसा कुछ भी मुझे नहीं मिला है। अगर तुम सिद्ध न कर पाए तो तुम्हारी तरफ से दांव पर क्या है? | जीवन में हम अगर गौर से देखें तो हम बहुत चकित होंगे। तुम छोड़ोगे पत्नी-बच्चे, अगर सिद्ध हो गया कि शादी ठीक | दुख में लोग जी रहे हैं, हम दुख में और लोगों को भी धकेले चले नहीं...? एकतरफा तो मत करो।' जाते हैं। वे थोड़े चौंके। आदमी ईमानदार थे। उन्होंने कहा, यह मैंने मुझे जिंदगी की दुआ देनेवाले सोचा न था कि मेरा भी कुछ दांव पर लगेगा। तो फिर मुझे हंसी आ रही है तेरी सादगी पर! सोचने दो। मैंने कहा कि तुम सोच कर ही आना। अगर मैं हार जिंदगी की लंबाई का कोई मूल्य नहीं है। जिंदगी के विस्तार गया तो उसी वक्त तैयार हो जाऊंगा, फिर यह भी फिक्र न का कोई मूल्य नहीं है। जिंदगी की गहराई का कुछ मूल्य है। करूंगा, किससे शादी करते हो। कर देना किसी से भी। लेकिन वासना से जिंदगी लंबी होती है, विचार से जिंदगी गहरी होती है। अगर नहीं हरा पाए तो फिर घर लौटकर नहीं जाने दंगा। छट्टी लंबे होने से संसार मिलता है, गहरे होने से स्वयं की सत्ता मिलती लेकर ही आना। है, भगवत्ता मिलती है। वे कभी आए ही नहीं। रास्ते पर मुझे मिलते थे, इधर-उधर | 'हा! खेद है कि सुगति का मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति बचकर निकलते थे। दो-चार बार मैं उनके घर भी गया तो वे| भयानक तथा घोर भव वन में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।' कहने लगे, 'क्यों मेरे पीछे पड़े हो?' मैंने कहा, 'मैं क्यों पीछे। जब भी कोई जागा है, जब भी कोई महावीर जैसी जिनावस्था पड़ा हूं। तुम ही मेरे पीछे पड़े थे।' में पहुंचा है, तो उसे यह लगा ही है कि हा! खेद! अब तक क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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