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________________ न-दर्शन की चिंतन-धारा के ठीक मध्य के सूत्रों पर | को उपलब्ध न हो सकेगा। । हम आ गये हैं। धार यहां बहुत गहरी है। सिझंति चरियभट्ठा-यह बड़ा अनूठा सूत्र है! महावीर ऊपर-ऊपर से समझेंगे तो चूकेंगे। डुबकी गहरी कहते हैं, चरित्र-विहीन दृष्टिवाला व्यक्ति भी सिद्धि प्राप्त कर लगानी होगी-साहस के साथ और अत्यंत धीरज के सकता है। सिझंति चरियभट्ठा। वह भी पहुंच जायेगा जिसके साथ-तो ही ये सूत्र समझ में आ सकेंगे। पास कोई चरित्र नहीं; सिर्फ दृष्टि हो। और ये उन सूत्रों में से हैं, जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं; और दंसणभट्ठा ण सिझंति। लेकिन जिसके पास दर्शन नहीं है, उनमें से भी, जिनका जैनों ने सर्वाधिक गलत अर्थ किया है। वह लाख उपाय करे तो भी न पहुंच पायेगा। चरित्र से ऊपर उनको करना पड़ा गलत अर्थ; क्योंकि अगर इन सूत्रों का ठीक दर्शन के लिए इससे ज्यादा बहुमूल्य सूत्र नहीं हो सकता। अर्थ करें तो जैन जो कर रहे हैं, न कर पाएंगे। एक-एक शब्द को गौर से समझें। अगर ये सूत्र ठीक हैं तो जैन गलत हो जाते हैं और अगर जैनों 'दर्शन से जो भ्रष्ट है, वही भ्रष्ट है।' जिसके पास आंख को अपने को ठीक बनाए रखना है, बताए रखना है, तो इन सूत्रों नहीं, वही भटका है। तुम चरित्र को कितना ही सुधार लो, तुम की गलत व्याख्या करनी जरूरी है। वह जैसे हम सूत्रों में प्रवेश चरित्र को कितना ही अनुशासित, परिमार्जित कर लो; लेकिन करेंगे, स्पष्ट होने लगेगा। अगर यह चरित्र तुम्हारी ही दृष्टि से निष्पन्न नहीं हुआ है, उधार सभी अनुयायियों ने अपने गुरुओं के साथ अनाचार किया है; है, तो इससे मोक्ष न हो सकेगा। तुम सत्य बोलो; क्योंकि शास्त्र कभी-कभी तो सीधा बलात्कार! क्योंकि अगर गुरु पूरा ठीक है कहते हैं, 'सत्य बोलो; सत्यं वद!' इसलिए सत्य बोलते हो। तो अनुयायी को गलत होने का उपाय नहीं छूटता। गुरु के विदा लेकिन प्राणों में असत्य संगृहीत होता है। ऐसा हो सकता है कि होते ही अनुयायी उसके वचनों में जोड़ता है, घटाता है, अर्थ को | तुम जीवन को इस तरह से बांध लो कि असत्य कभी जबान के बदलता है, नये अर्थ बिठाता है, नये रंग डालता है। तब वे काम बाहर न आये। कठिन है, असंभव तो नहीं। जबान आखिर के योग्य हो जाते हैं। तब फिर उनका खतरा समाप्त हो जाता है। जबान है; काबू में रखी जा सकती है। और इतना तो कर ही उनके प्राण ही निकल जाते हैं; निष्प्राण सूत्र रह जाते हैं। सकते हो, अगर काबू में न रहती हो तो चुप हो जाओ, जबान पहला सूत्रः काट ही दे सकते हो। इसलिए बहुत लोग मौन हो जाते हैं। दसणभट्ठा भट्ठा-जो दर्शन से भ्रष्ट है वही भ्रष्ट है। लेकिन मौन से असत्य थोड़े ही मिट जायेगा...! अब असत्य दसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं-और दर्शन से जो भ्रष्ट है, बोलते तो नहीं, लेकिन असत्य अगर बोलने से ही जुड़ा होता तो उसकी कभी निर्वाण की उपलब्धि संभव नहीं है। वह कभी मोक्ष एक बात थी; असत्य तो तुम्हारे प्राणों में बैठा है। न बोलोगे तो 1623 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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