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________________ बोध-गहन बोध-मुक्ति हे है। जूता मुाया, पिटा-पिटाया है तो वह जानता है कि आगे था। वह युवक कहता था कि मुझे भी संन्यास की यात्रा करनी बढ़ो, यहां लाने की जरूरत नहीं है। है। मुझे भी सूफियों के रंग-ढंग मन को भाते हैं। लेकिन क्या वासना का अर्थ है: हम अपने सम्मोहन के अनुसार जगत को | करूं, पत्नी है और उसका बड़ा प्रेम है! क्या करूं बच्चे हैं, और देखते हैं। विचार का अर्थ है : सम्मोहन को हटाकर देखते हैं, जो | उनका मुझसे बड़ा लगाव है। मेरे बिना वे न जी सकेंगे। मैं सच है उसे वैसा ही देखते हैं जैसा है। आम को आम देखते हैं, नीम कहता हूं, वे मर जाएंगे। मैं पत्नी से संन्यास की बात भी करता है को नीम देखते हैं। जहर को जहर देखते हैं, अमृत को अमृत | तो वह कहती है, फांसी लगा लूंगी। देखते हैं; अपनी वासना डालकर, कुछ और नहीं देखते। उस फकीर ने कहा, 'तू ऐसा कर...। कल सुबह मैं आता तो महावीर कहते हैं, लगते हैं लोग सोच रहे, विचार रहे, फिर हूं। तू रातभर, एक छोटा-सा तुझे प्रयोग देता हूं, इसका अभ्यास भी विरक्त नहीं हो पाते। कहीं कुछ धोखा है। क्योंकि अगर कोई कर ले और सुबह उठकर एकदम गिर पड़ना।' प्रयोग उसने जीवन को ठीक से देख ले तो विरक्त होगा ही। यहां कुछ भी तो दिया सांस को साधने का कि इसका रातभर अभ्यास कर ले, नहीं है। यहां उलझाने योग्य कुछ भी तो नहीं है। जो तुम्हें अटका सुबह तू सांस साध कर पड़ जाना। लोग समझेंगे, मर गया। ले, ऐसा कुछ भी तो नहीं है। फिर बाकी मैं समझ लूंगा। दोरंगियां यह जमाने की जीते जी हैं सब उसने कहा, 'चलो। क्या हर्ज है...? देख लें करके। क्या कि मुर्दो को न बदलते हुए कफन देखा। होगा इससे?' ये सब रंगरेलियां, ये बदलाहटें, ये फैशनें...। उसने कहा कि तुझे दिखायी पड़ जाएगा, कौन-कौन तेरे साथ दोरंगियां यह जमाने की जीते जी हैं सब मरता है। पत्नी मरती है, बच्चे मरते, पिता मरते, मां मरती, भाई कि मुर्दो को न बदलते हुए कफन देखा। मरते, मित्र मरते-कौन-कौन मरता है, पता चल जाएगा। एक जो जीवन को बहुत गौर से देखेगा, दोरंगियों को हटाकर दस मिनट तक सांस साध कर पड़े रहना है, बस। सब जाहिर हो गहराई में देखेगा, वह पायेगा: यहां सब मरा ही हुआ है, समय जाएगा। तू मौजूद रहेगा, तू देख लेना, फिर दिल खोलकर सांस की बात है। | ले लेना, फिर तुझे जो करना हो कर लेना। ऋषियों ने कहा है, क्षरति इति शरीरम्। जो क्षीण होता जाता वह मर गया सबह। सांस साध ली। पत्नी छाती पीटने लगी. उसी का नाम शरीर। क्षरति इति शरीरम्। जो प्रतिपल क्षीण होता बच्चे रोने लगे, मां-बाप चिल्लाने-चीखने लगे, पड़ोसी इकट्ठ जाता है, जीर्ण होता जाता, वही शरीर है। यह घर नहीं है। जो हो गये। वह फकीर भी आ गया इसी भीड़ में भीतर। फकीर को खंडहर होता जाता है, वही शरीर है। इसीलिए शरीर नाम दिया देखकर परिवार के लोगों ने कहा कि आपकी बड़ी कृपा, इस उसे, क्योंकि वह क्षीण होता है, जीर्ण होता है, सड़ता है; मरा ही मौके पर आ गये। परमात्मा से प्रार्थना करो। हम तो सब मर है, समय की बात है; क्यू में खड़ा ही है, जब नंबर आ जाएगा | जाएंगे! बचा लो किसी तरह ! यही हम सबके सहारे थे। गिर जाएगा। फकीर ने कहा, घबड़ाओ मत! यह बच सकता है। लेकिन अगर शरीर को कोई गौर से देखे तो क्या पाएगा! मृत्यु को मौत जब आ गयी तो किसी को जाना पड़ेगा। तो तुम में से जो भी रूप धरते देखेगा वहां। मृत्यु को गर्भ में पाएगा वहां। रोएं-रोएं जाने को राजी हो, वह हाथ उठादे। वह चला जाएगा. यह बच में शरीर के मृत्यु को छिपा पाएगा। प्रगट होने की प्रतीक्षा चल जाएगा। इसमें देर नहीं है, जल्दी करो।। रही है। आज नहीं कल प्रगट हो जाएगी। जो शरीर को गौर से एक-एक से पूछा। पिता से पूछा। पिता ने कहा, अभी तो देखेगा, वह मृत्यु को देख लेगा। फिर तुम शरीर से बंधोगे कैसे, बहुत मुश्किल है। मेरे और भी बच्चे हैं। कोई यह एक ही मेरा आसक्त कैसे होओगे? मुर्दे से तो कोई बंधता नहीं। मुर्दे से तो बेटा नहीं है। उनमें कई अभी अविवाहित हैं। कोई अभी स्कूल कोई संबंध नहीं रखता। में पढ़ रहा है। मेरा होना तो बहुत जरूरी है, कैसे जा सकता हूं। मैंने सुना है, एक मुसलमान फकीर के पास एक युवक आता | मां ने भी कुछ बहाना बताया। बेटों ने भी कहा कि हमने तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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