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________________ देखते, जो है – कृष्णमूर्ति जिसे कहते हैं, दैट व्हिच इज। जो है, उसे तुम नहीं देखते। तुम वही देख लेते हो, जो तुम देखना चाहते हो। तुम्हारी आंख केवल ग्राहक नहीं होती, प्रक्षेपक होती है। एक रुपया पड़ा है रास्ते पर या कि एक हीरा पड़ा है रास्ते पर । हीरा एक पत्थर है, जैसे और पत्थर हैं। अगर आदमी न हो जमीन पर तो हीरे और दूसरे पत्थरों में कोई फर्क मूल्य का न होगा। हीरे भी वहीं पड़े रहेंगे, साधारण कंकड़ भी वहीं पड़े रहेंगे। हीरा यह न कह सकेगा कि 'हटो कंकड़ो, मैं कोहिनूर हूं ! रास्ता दो! सिंहासन बनाओ!' कोहिनूर भी साधारण पत्थर है, आदमी न हो तो। आदमी आया कि झंझट आयी। आदमी आया कि वह कहता है, हटो कंकड़ो ! तुम तो शूद्र रहे, यह सम्राट है। यह है कोहिनूर ! इसे सिंहासन पर बिठाओ! आदमी मूल्य लाता है। कोहिनूर में कोई मूल्य नहीं है— हो नहीं सकता। सदियों तक पड़ा था जमीन में। न कंकड़-पत्थरों ने उसकी फिक्र की, न कीड़े-मकोड़ों ने फिक्र की, न सांप-बिच्छुओं ने कोई आदर दिया, न पशु-पक्षियों ने कोई चिंता ली- किसी ने कोई फिक्र न की । फिर आदमी के हाथ पड़ गया। जिस आदमी के हाथ पड़ा, वह भी सीधा-सादा आदमी था। वह उसे ले आया और उसने अपने बच्चों को खेलने को दे · दिया। करता भी क्या, पत्थर ही था ! बड़ी प्यारी कहानी है, उस घर में एक संन्यासी मेहमान हुआ। और उस गरीब किसान को देखकर उसे बड़ी दया आ गयी। और उसने कहा कि 'तू यहां कब तक इस गोलकुंडा की सूखी जमीन पर अपना श्रम गंवाता रहेगा? मैंने ऐसी जगहें देखी हैं कि जहां तू जरा-सी मेहनत कर कि हीरे-जवाहरात इकट्ठे कर ले | इतनी खोदा-खादी, इतनी मुश्किल - क्या पैदा कर पाता है ? पेट भी तो नहीं भरता। बच्चे तेरे सूख रहे हैं। ' संन्यासी तो दूसरे दिन सुबह चला गया अपनी यात्रा पर, लेकिन किसान के मन में वासना पकड़ गयी। सम्मोहित हो गया किसान | उसने अपना खेत-वेत सब बेच दिया। छोटी-सी नदी | के किनारे उसका खेत था । वह उसने बेच दिया, मकान बेच दिया । निकल पड़ा हीरों की खोज में। कहते हैं, वर्षों भटकता रहा, कहीं कोई हीरे न मिले, घर आ गया। लेकिन इस बरसों के भटकाव में, हीरे क्या होते हैं, यह समझ आ गयी, यह सम्मोहन आ गया। कई जौहरियों को मिला। हीरे जिनके पास थे उनको Jain Education International बोध गहन बोध - मुक्ति हैं मिला। हीरे देखे। जो था उसके पास पैसा, उसने इसी में गंवा दिया। घर लौटकर आया तो चकित हो गया, बच्चा उस हीरे से खेल रहा था जिसकी वह खोज में था। कोहिनूर ! और तब रोया, छाती पीटी, क्योंकि खेत उसने बेच दिया। वही खेत बाद में गोलकुंडा की सबसे बड़ी खदान बना । हैदराबाद निजाम के महलों में जो हीरे हैं, वे सब उसी गरीब आदमी के खेत से निकले हैं। वह बेच दिया उसने। लेकिन तब तक सम्मोहन न था, मन पर कोई परत न थी - सीधा-सादा आदमी था, प्राकृतिक आदमी था, सभ्य न हुआ था, जौहरी पैदा न हुआ था। हीरा भी कंकड़-पत्थर है। आदमी न हो तो हीरे का कोई विशेष सम्मान न होगा। जब तुम हीरे को विशेष सम्मान देते हो, राह पर पड़ा हीरा तुम्हें मिलता है, झपटकर उठा लेते हो, कंकड़ को तो नहीं उठाते - तब तुमने वह नहीं देखा जो था; तुमने वह देख लिया जो तुम देखना चाहते थे। तुमने अपनी वासना को आरोपित किया । तुम्हारी आंखें शुद्ध ग्राहक न रहीं । तुम्हारी आंखों ने हीरे के पर्दे पर कुछ फेंका, कोई वासना फेंकी । साधारण कंकड़-पत्थर भी वासना से अभिभूत हो जाए, महिमावान हो जाता है। जहां तुमने वासना रख दी, वहीं महिमा आ गयी। यह संसार इतना महत्वपूर्ण मालूम पड़ता है, क्योंकि तुमने जगह-जगह वासना को नियोजित कर दिया है। किसी ने धन में रख दी है वासना, तो धन बहुमूल्य हो गया है। तब वह अपने जीवन को गंवाये चला जाता है, लेकिन धन कमाये चला जाता है। वह मरेगा । तिजोड़ी यहीं रहेगी, भरकर छोड़ जाएगा। ठीक से भोजन भी न करेगा, कपड़े भी न पहनेगा। धन इकट्ठा है! वासना रख दी धन में तो जीवन से बहुमूल्य हो गया धन । तुमने अगर पद में वासना रख दी, पद बहुमूल्य हो गया। तुम्हें कभी-कभी हैरानी नहीं होती देखकर ! राजनीति के दीवाने हैं, पदों के पागल हैं, भीख मांगते फिरते हैं: सहारा दो, वोट दो, मत दो, साथ दो! हाथ जोड़ते फिरते हैं। कभी तुम चकित नहीं हुए, तुम सोचे नहीं कि क्या पागलपन चढ़ा है! और जो पद पर पहुंच जाते हैं उन्हें कुछ मिलता दिखायी नहीं पड़ता । गालियां मिलती हैं, निंदाएं मिलती हैं। सम्मान भी मिलता है, लेकिन सम्मान सब झूठा है; पद से उतरते ही खो जाता है । फिर कोई For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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