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________________ बोध-गहन बोध-मक्ति है छोटा-सा बच्चा भी अगर कहे कि यह लो, यह आम है मीठा, तुम्हारा सम्मोहन है। बहुत बार तुम स्त्री की कुरूपता के करीब और प्याज दे दे हाथ में, तो तुम चखोगे; होगी प्याज, लेकिन तुम भी आ जाते हो। बहुत बार पुरुष की कुरूपता के करीब आ जाते कहोगे, बड़ा स्वादिष्ट आम है! तुम्हारा सब स्वाद, प्याज की हो। बहुत बार जीवन में सिवाय व्यर्थता के कुछ भी नहीं दिखायी दुर्गंध, कुछ भी काम न आएगी। क्योंकि तंद्रा की गहराई में पड़ता है। लेकिन जन्मों-जन्मों का सम्मोहन है। तुमने ही अपने सुझाव उससे ज्यादा गहरे पहुंच गया जहां तक प्याज की गंध | को समझाया है, जीवन बड़ा बहुमूल्य है। तुमने ही अपने को पहुंचती। तुम शांत भाव से स्वीकार कर लिये। समझाया है कि जीने का बड़ा मूल्य है। किसी भी कीमत पर तो तुमने अगर सम्मोहन करनेवाले को, बाजार में मदारी को | जीना है, जीये चले जाना है। जीवेषणा! नर्क में भी पड़े हों तो भी देखा हो तो तुम चकित हो जाओगे; वह जो कह देता है, लोग | जीये चले जाना है; जीवन का जैसे अपने-आप में ही मूल्य है। वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। खासा तगड़ा जवान है, चौड़ी | कुछ भी न घटता हो, हाथ-पैर गल गये हों कोढ़ में, सड़क पर छाती है, बलिष्ठ भुजाएं हैं, चलता है तो मंच हिलता घिसटते होओ, तो भी कोई आशा, कोई बड़ी गहन आकांक्षा है-उसको वह बेहोश कर देता है और कहता है, 'तुम एक पकड़े रहती है कि जीये चले जाओ, जीये चले जाओ। कोमल तन्वंगी, एक सुंदर युवती हो गये। इस किनारे से मंच के यह जो जीने की आकांक्षा है, इस पर पुनर्विचार, इस पर उस किनारे तक चलो।' तुम चकित हो जाओगे, वह ऐसे चलने पुनान तुम्हें जगायेगा और तुम्हें बतायेगा कि यह तुमने ही लगता है जैसे स्त्री चलती हो, जो कि अति कठिन है पुरुष को अपने मन में धारणा बना ली, धारणा बना ली तो मजबूत हो चलना। पुरुष के पास वैसे कूल्हे नहीं हैं। स्त्री के पेट में गर्भ के गयी। अलग-अलग जातियों में, अलग-अलग समयों में, लिए जगह है। उस जगह के कारण उसकी अस्थियों का ढांचा अलग-अलग धारणाएं महत्वपूर्ण हो गयी हैं। जो धारणा अलग है। इसलिए उसकी चाल अलग है। लेकिन वह पुरुष महत्वपूर्ण हो जाती है वही तुम्हारे जीवन का सत्य हो जाती है। चलने लगता है स्त्री की चाल से, जो कभी जीवन में न चला जैसे अफ्रीका में, मध्य अफ्रीका में, सदियों से स्त्रियां बाल घोट होगा। उसे कुर्सी के सामने बिठा देता है और कहता है, यह गाय लेती रही हैं। अब तुमने सिर-घुटी स्त्री में सौंदर्य कभी न देखा खड़ी है, दूध लगाओ। वह कुर्सी के पास उकडू बैठकर—उसी | होगा। कोई स्त्री राजी न होगी सिर घोंटने को। हमने मान रखा आसन में जिसमें महावीर ज्ञान को उपलब्ध हुए थे, | है, बाल सुंदर हैं। अफ्रीका में उन्होंने मान रखा है कि घुटा हुआ गो-दुग्ध-आसन में महावीर ज्ञान को उपलब्ध हुए थे, पता नहीं सिर सुंदर है। करोगे क्या? वहां जिस स्त्री के बाल हों, उसको क्या करते थे, बैठे थे उकडू-दूध खींचने लगता है। बिलकुल पति मिलना मुश्किल हो जाएगा; जैसे यहां घुटे-सिर स्त्री को वैसे ही कृत्य करेगा जैसे गाय सामने खड़ी हो। तुम सब हंसोगे पति मिलना मुश्किल हो जाए, लोग दूर से ही छिटकेंगे। घुटा कि कैसा पागल बन रहा है यह। लेकिन सम्मोहन ने इतने गहरे हुआ सिर तो हमें मुर्दे की याद दिलाता है। इसलिए तो संन्यासी डाल दिया है विचार कि इतने गहरे आंख का विचार भी नहीं सिर घोंटते रहे। वे यह कहते हैं कि हम मर गये संसार से, अब जाता। आंख से तो उसको भी कुर्सी दिखायी पड़ती है। लेकिन तुम हमें मुर्दा समझो। न केवल उतने से ही अफ्रीका में सौंदर्य का जहां तक कुर्सी दिखायी पड़ती है उससे भी गहरा सम्मोहन का बोध पूरा नहीं होता, तो आड़ी-तिरछी लकीरें, आग की सलाखों विचार पहुंच गया। तो अब कुर्सी के ऊपर गाय आरोपित हो से शरीर पर, मुंह पर, आंख पर, सिर पर लोग सजा लेते हैं। तुम जाती है। तो पाओगे, ये तो घाव बना लिये। लेकिन वह सौंदर्य है। उन्होंने सम्मोहन के सत्य को समझना जरूरी है, क्योंकि मनुष्य का सदियों तक इसी को सौंदर्य माना है, यही उनका सम्मोहन हो जीवन करीब-करीब सम्मोहित जीवन है। जन्मों-जन्मों में तुमने | गया है। अपने को ही आत्म सम्मोहित किया है। जन्मों-जन्मों में तुमने जो तुम मान लो वही सत्य हो जाता है। इस जीवन के सत्य कहा है, स्त्री सुंदर है-स्त्री सुंदर हो गयी है। जन्मों-जन्मों में माने हुए सत्य हैं। दस रुपये का नोट कागज का टुकड़ा है, तुमने दोहराया है, 'स्त्री सुंदर है'- स्त्री सुंदर हो गयी है। यह लेकिन मान्यता है कि दस का नोट है; सम्हालकर रख लेते हो। 491 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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