SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम्हारी संपदा-तुम हो आबे-जू-मैं हूं एक छोटा-सा झरना। या मझे हमकिनार अगर दुख को सौभाग्य समझ लिया तो सब घट गया। क्योंकि कर—या तो मुझे अपने साथ ले ले...या मुझे बेकिनार वहीं तो मनुष्य की उलझन है : दुख का अस्वीकार; सुख का कर-या मुझे मेरे किनारों से मुक्त कर दे। | स्वीकार। जब दुख का भी स्वीकार हो गया तो दुख दुख न रहा। लेकिन दोनों ही बातों का एक ही अर्थ होता है। या तो तू मुझे ऐसा समझो कि जिस दुख को हम स्वीकार कर लेते हैं वह सुख अपने साथ ले ले, सागर बना ले, और या फिर मुझे बेकिनारा हो जाता है। स्वीकार करते ही सुख हो जाता है। दुख का होना कर दे। मेरे किनारे मझ से छीन ले। या तो मझे डुबा ले या मेरे हमारे अस्वीकार में है। स्वीकार होते ही दुख का गुणधर्म बदल किनारे मुझसे छीन ले! लेकिन दोनों हालत में वह जो छोटा-सा | जाता है। झरना है, सागर हो जायेगा। मुझे खयाल में है। जिन-जिनसे भी प्रेम किया है, उनसे मैं तड़फ क्या है? पीड़ा क्या है? पीड़ा प्रेमी के मिलने से थोड़े धीरे-धीरे अपने को दूर हटाऊंगा ही। प्रेम तो शुरुआत है। वहीं ही पूरी होती है-पीड़ा प्रेमी में खो जाने से पूरी होती है। यही तो रुक नहीं जाना है। दूर हटूंगा तो प्रेम भक्ति में बदल सकता है। भक्त और प्रेमी का फर्क है। अगर होगा तो भक्ति में बदल जायेगा। अगर नहीं होगा तो अगर तुम्हारे जीवन में मेरे प्रति प्रेम है और प्रेम अगर भक्ति में नाराजगी में बदल जायेगा। तो कुछ हैं जो मेरे पास से नाराज न रूपांतरित हुआ, तो यह प्रेम भी बंधन बन जायेगा। फर्क होकर हट जाते हैं। 'सोहन' उनमें से नहीं है; हटनेवाली नहीं समझ लो। प्रेमी चाहता है, जिससे प्रेम किया वह मिल जाये। है। लाख हटाने की चेष्टा करूं, वह हटनेवाली नहीं है। तो फिर भक्त चाहता है, जिससे प्रेम किया उसमें हम खो जायें। प्रेमी | उसकी हार भी जीत में बदल जायेगी। प्रेम-पात्र को पास लाना चाहता है। भक्त प्रेम-पात्र के पास गुलशन में सबा को जुस्तजू तेरी है जाना चाहता है। बड़ा फर्क है। प्रेमी चाहता है, जिससे प्रेम बुलबुल की जबां पे गुफ्तगू तेरी है किया उस पर कब्जा हो जाये। भक्त चाहता है, जिसे प्रेम किया हर रंग में जलवा है तेरी कुदरत का उसका मुझ पर कब्जा हो जाये। जिस फूल को सूंघता हूं, बू तेरी है। ध्यान रखना, प्रेमी तो हारेगा; क्योंकि यह कब्जा संभव नहीं तो जो प्रेम मेरे प्रति है, उसे और फैलाओ! उसे इतना फैलाओ है। भक्त जीतेगा; क्योंकि भक्त कब्जा करना ही नहीं चाहता, कि उस प्रेम के लिए कोई पता ठिकाना न रह जाये। मुझसे सिर्फ कब्जा देना चाहता है। सीखो। लेकिन मुझ पर रुको मत। मुझसे चलो, लेकिन मुझ पर त है महीते-बेकरां, मैं हं जरा-सी आबे-ज ठहरो मत। या मुझे हमकिनार कर, या मुझे बेकिनार कर। जैनों का शब्द तीर्थंकर बड़ा बहमल्य है। तीर्थंकर का अर्थ यह जो दुख 'सोहन' को प्रतीत हो रहा है, गहरा उसे प्रतीत हो होता है: घाट बनानेवाला। घाट बना दिया, घाट बैठने के लिए रहा है, इस दुख को सुख में बदला जा सकता है। इस पीड़ा से नहीं है; दूर जाने के लिए है, दूसरे घाट जाने के लिए है। बड़े फूल खिल सकते हैं। लेकिन थोड़ी समझ में क्रांति लानी तो मैं अगर तुम्हारा घाट बन जाऊं और फिर तुम वहीं रुक जरूरी है। | जाओ और वहीं खील ठोंक दो, और वहीं नाव को अटका लो, हासिले-जीस्त मसर्रत को समझनेवाले तो यह तो काम का न हुआ। मैं तुम्हें मेरे किनारे पर कील एक नफस गम भी की दमभर तो खदा याद रहे। ठोंककर रुकने न दूंगा। तुम लाख ठोंको, मैं उखाड़ता रहूंगा। थोड़ा-सा दुख भी चाहिए, दमभर तो खुदा याद रहे! अगर | एक न एक दिन तुम्हें दूसरे किनारे की तरफ जाने की तैयारी करनी सुख ही सुख हो तो याद भूल जाती है। इसीलिए तो लोग सुख में होगी। उस यात्रा के लिए तैयार रहो। निश्चित ही दूसरी तरफ याद नहीं करते, दुख में याद करते हैं। और जिसने यह सार जाने में यह किनारा दूर होता हुआ मालूम होगा। लेकिन समझ लिया कि दुख में याद गहन होती है, वह फिर दुख से न घबड़ाओ मत, मैं दूसरे पर मिल जाऊंगा-बहुत बड़ा होकर! छूटना चाहेगा; वह तो दुख को भी सौभाग्य समझेगा। और पूछा है, 'आप कब आएंगे?' 573 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy