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________________ तुम्हारी संपदा-तुम हो लेकिन वह सब मुर्दा हैं। किसी की आंख ले आये, किसी का आखिरी प्रश्न : बार-बार मन को समझाती हूं, पर समझा कान काट लाये, किसी की नाक ले आये, किसी के पैर ले आये, नहीं पाती हूं। जो दिन आपके साथ प्रेमपूर्वक बिताए, उन्हें मैं किसी तरह जमा-जमूकर नक्शा खड़ा कर दिया—इसको कहते | कैसे भूलूं! बार-बार आपका प्रेम याद आता रहता है। आप हैं : 'इसेंसियल युनिटी आफ आल रिलिजन्स!' यह सब धर्मों कहते हैं कि अतीत को भूल जाऊं; मगर यह मेरे बस की बात की एकता हो गयी! यह मरा हुआ आदमी है। इसमें कुछ भी नहीं। आप वीतराग हो गये। अब इन आंसुओं के सिवा मेरे जिंदा नहीं है। नाक जिंदा होती है किसी जिंदा आदमी के साथ पास कुछ भी नहीं है। जितना प्रेम आपने दिया उतना तो किसी काट ली कि मुर्दा। आंख जिंदा होती है किसी जिंदा आदमी के ने भी नहीं दिया। और मन बार-बार कहता है, आप कब साथ; अलग कर ली कि मुर्दा। फिर तुम अस्थि पंजर पर आएंगे? जमाकर बिलकुल खड़ा कर दो, तो शायद बच्चों के डराने के काम आ जाये, या रात में दरवाजे पर खड़ा कर दो तो चोर इत्यादि 'सोहन' का प्रश्न है। पास न आयें, या खेत में खड़ा कर दो तो पशु-पक्षियों को | समझाने से तो उलझन बढ़ेगी। समझाने की कोई जरूरत नहीं, डराए-लेकिन और किसी ज्यादा काम का नहीं है। समझाने से समझ आती भी नहीं। और 'सोहन' के लिए बहुत लोगों को सवाल उठता है। इस सदी में अनेक लोगों ने समझदारी रास्ता भी नहीं हो सकती। नासमझी में जीना! और सब धर्मों के बीच समन्वय स्थापित करने की कोशिश की है। याद आती है तो उसे हटाने की कोशिश भी मत करना। याद में इस तरह की कोशिश पहले क्यों नहीं की गयी? क्या महावीर, पूरी तरह डूबना। याद से पीड़ा हो तो पीड़ा को होने देना, रोना, बुद्ध, कृष्ण, और क्राइस्ट नासमझ थे? क्या डाक्टर | जार-जार रोना, आंसुओं को बहने देना! वे आंसू पवित्र करेंगे। भगवानदास और महात्मा गांधी और विनोबा ज्यादा समझदार प्रेम के रास्ते पर बहे आंसू पवित्र करते हैं। और वैसी याद हैं? इस सदी में यह समन्वय की जो कोशिश की गयी है, इसके | चिंता नहीं है। वैसी याद तो हृदय की उदभावना है। गहरे में आधार राजनैतिक हैं। महावीर और बुद्ध को एक बात अड़चन इसलिए पैदा हो रही है कि मन समझा रहा है कि छोड़ो साफ थी कि प्रत्येक मार्ग अपने में संपूर्ण है, जीवंत है! उसमें से भी, याद से तो पीड़ा होती है। प्रेम के स्मरण से पीड़ा होती है। कुछ भी अलग किया, मर जायेगा। यह बुद्धि है जो बीच-बीच में बाधा डाल रही है। तो तुम भक्ति के मार्ग पर चलना चाहो तो भक्ति के मार्ग पर इस बुद्धि की मानकर चलने से कुछ भी हल न होगा। क्योंकि चलना, लेकिन समग्ररूपेण! और कुछ छोड़ना मत उसमें से, बुद्धि कभी हृदय को नहीं जीत पाती, अगर हृदय बलशाली हो। क्योंकि जो छोड़ा जा सकता था वह नारद ने ही छोड़ दिया है। जो और सोहन के पास बलशाली हृदय है। बुद्धि भौंकती रहेगी, नहीं छोड़ा जा सकता था, बस उतना ही बचाया है। अगर | हृदय अपने रास्ते पर चलता जायेगा। अगर बुद्धि की सुनी तो महावीर का मार्ग ठीक लगे तो महावीर के मार्ग पर चलना; बड़ी अड़चन पैदा होगी। क्योंकि हृदय बलशाली है और बुद्धि छोड़ना मत उसमें से कुछ, क्योंकि जो छोड़ सकते तो महावीर | उसे बदल नहीं सकती। खुद ही छोड़ देते। कुछ भी व्यर्थ नहीं है; बिलकुल मूलभूत, हृदय की ही सुनो! बुद्धि की छोड़ो। बुद्धि से कहो, 'छोड़ सारभूत जो है, वही बचाया है। इसमें से कुछ भी काटा नहीं जा भौंकना! तू भी याद में लग! तू भी रो! तू भी हृदय की अनुषंग सकता। और न कुछ जोड़ना; क्योंकि जो जोड़ा जा सकता था बन जा, हृदय की छाया बन जा!' वह उन्होंने जोड़ दिया है। कुछ और जोड़ने की जरूरत नहीं है। 'सोहन' के लिए कोई महावीर का रास्ता पहुंचानेवाला नहीं प्रत्येक धर्म बड़ी सावयव इकाई है, जीवंत इकाई है, यंत्रवत है, उसे तो भक्ति का ही कोई रास्ता पहुंचाएगा। तो प्रेम को नहीं। इतना स्मरण रहे तो फिर तुम्हारी जहां रुचि हो, जहां रुझान भक्ति बनाओ, भाव को भक्ति बनाओ। और बेहोशी को, हो, तुम चल पड़ना! तुम पहुंच जाओगे। सभी नदियां सागर की बेखुदी को रास्ता समझोः डूब गये, रोये, नाचे, गाये! तरफ जा रही हैं! इसलिए धीरे-धीरे दूर हट गया हूं। क्योंकि अगर मैं पास होऊ 5711 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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