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जाणिज्जह चिन्तिज्जइ, जन्मजरामरणंसंभवं दुक्खं। न य विसएसु, विरज्जइ, अहो सुबद्धो कवडगंठी।।६।।
जन्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य। अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसति जतंवो।।७।।
हा जह मोहियमइणा, सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं। भीमे भवकंतारे, सुचिरं भमियं भयकरम्मि।।८।।
मिच्छत्तं वेदंतो जीवो, विवरीयदंसणो होइ। न य धम्म रोचेदु हु, महुरं पि रसं जहा जरिदो।।९।।
मिच्छत्तपरिणदप्पा तिव्वकसाएण सुट्ठ आविट्ठो। जीवं देहं एक्कं, मण्णतो होदि बहिरप्पा।।१०।।
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