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________________ दर्शन, ज्ञान, चरित्र-और मोक्ष जागो और देखो! तो कितने-कितने तुमने सजाए हैं, संवारे हैं और दर्शन मूल भित्ति है। अगर दर्शन को न समझ पाए तो पूरे स्वप्न, कितने रंग भरे हैं ! वे सब अचानक तिरोहित हो जायेंगे। महावीर बेबूझ रह जायेंगे। दर्शन का अर्थ है : आंख स्वप्न से कितने ही रंगीन हों, सपने सपने हैं। उनके तिरोहित हो जाने से खाली हो; आंख में कोई सपना न हो, कोई चाह न हो, कोई घबड़ा मत जाना। ईंट-पत्थर से भी छोटी-सी कुटिया बनायी जा तृष्णा न हो। आंख उसको देखने को राजी हो जो है; आंख सकती है। सत्य से भी शांति की छोटी-सी कुटिया बनायी जा उसकी मांग न करे जो होना चाहिए। सकती है। झूठे सपनों के बड़े महलों से कुछ सार नहीं; उनमें फिर से दोहरा दूं। जब भी तुम कहते हो ऐसा होना चाहिए, कोई कभी रहा नहीं। लोगों ने सिर्फ सोचा है कि रहेंगे। वह सिर्फ तभी तुम उसे देखने में असमर्थ हो जाते हो-जो है। तब तुम बातचीत है। वह बातचीत कितनी ही सुंदर मालूम पड़े, वह सिर्फ उसे देखने लगते हो किसी गहरे तल पर-जो नहीं है और होना लफ्फाजी है। | चाहिए। तब तुमने सपना बनाना शुरू कर दिया। तुमने यथार्थ मैंने सुना है, मिर्जा गालिब के पास कोई आदमी रुपये उधार को न देखा। तुमने आदर्श को मांगा। तुमने वह न देखा जो मांगने आया। उन्होंने बड़ी मीठी बातें कहीं। कवि थे। जो मौजूद था। तुम उसकी चाह करने लगे जो होना चाहिए। तुम आदमी रुपये उधार मांगने आया था, उसने भी कविता में ही बात | आशा को बीच में ले आए। तुम कल्पना बीच में ले आए। फिर की। कहा कल्पना ने ताने-बाने बुने। फिर सब चीजें गलत हो गयीं। फिर काका! बड़े बे-वक्त आ गए कल्पना के माध्यम से तुम जो देखते हो वह सत्य नहीं है। ऐसा व्यर्थ ही रास्ता नापा तुम चाहते थे। और आपको देखके मेरा मन कांपा तुमने देखा, जब दो व्यक्ति एक-दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं तो और आपने समय ठीक नहीं भांपा एक-दूसरे में ऐसी चीजें देखने लगते हैं जो हैं ही नहीं। स्त्री पुरुष मेरे शेर मारने गये हैं डाका में ऐसा देखने लगती है कि ऐसा महावीर कभी हुआ ही नहीं। अभी तो चल रहा है फाका पुरुष स्त्री में देखने लगता है जगत का सारा सौंदर्य! ऐसी बातें लौटकर आने दो मेरे काका करने लगते हैं कि जिसका हिसाब नहीं। चांद-तारों को देखने आपका बन जायेगा खाका लगते हैं-एक-दूसरे के चेहरों में, आंखों में। अनंत फूलों की अभी हाका करो, वर्ना गंध एक-दूसरे के पसीने से आने लगती है। ये सपने हैं! ऐसा वे बीबी बना देगी आपका साका चाहते हैं। फिर अगर सुहागरात पूरी होते-होते ये सब सपने टूट और मैं करूंगा ताका जाते हैं तो आश्चर्य नहीं। आश्चर्य तो यह था कि तुम इतनी देर मेरे आका! अभी न करना इधर नाका भी कैसे देख सके! नहीं तो बीबी न छोड़ेगी एक बाल बांका। फिर प्रेमी सोचते हैं कि दूसरे ने मझे धोखा दिया। कोई किसी इतनी लंबी कविता कही! लेकिन लेना-देना कुछ भी नहीं है। को धोखा नहीं दे रहा-तुम ही धोखा खा रहे हो। फिर प्रेमी वह आदमी कविता से ही घबड़ाकर भाग गया होगा। फिर दुबारा सोचता है, यह प्रेयसी तो गलत साबित हुई। यह तो मैंने जो फूल न आया होगा। की गंध देखी थी वह निकली न। यह क्या मुझे धोखा दे गई। यह तुम्हारे शब्द कितने ही रंगीन हों, और कितने ही काव्य के रंग तो बड़ी कर्कशा निकली। और मैंने तो सारे संगीत, सारा साज तुमने भरे हों, और कितनी ही तुकबंदी बांधी हो, कितने ही शब्दों इसके कंठ में सुना था। मैंने तो कोयल को कूकते सुना था। मैंने का सौंदर्य बिठाया हो लेकिन भुलावे हैंऔर जितने जल्दी तो कोकिला जानी थी। और यह तो घर आते-आते स्वर कर्कश जाग जाओ उतना अच्छा है। हो गया। तो क्या इसने मुझे धोखा दिया था? क्या उस क्षण दर्शन का क्या अर्थ? दर्शन का इतना ही अर्थ है : आंखें इसने बनावट की थी? वह जो माधुर्य इससे मैंने पाया था, तो सपनों से खाली हो जायें। वह सब प्रवंचना थी? तो वह जाल था? वह मुझे फंसाने के 549 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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