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________________ जिन सूत्र भागः1 4 और शरीर को गरमा लो। यह ज्ञान तो व्यर्थ है जो आचरण में न हूं, जब तक तुम ढोलपुर में न बोल सको, तक तक तुम्हारे उतर आये। इस भोजन का क्या करोगे? बोलपुर में बोलने का कोई मतलब नहीं है। शांति तो वहां जीसस के जीवन में उल्लेख है कि जीसस ने चमत्कार किया घनीभूत होनी चाहिए जहां चारों तरफ अशांति है। ढोलपुर! और पत्थरों को रोटी बना दिया। एक ईसाई मेरे पास आया था। | बीच बाजार में अगर तुम मुक्त न हो सको तो तुम्हारी मुक्ति दो वह कहने लगा, आप इसमें मानते हैं या नहीं? मैंने कहा, मैं | कौडी की है। अगर हिमालय की चोटियों पर बैठकर तुम मुक्त मानता हूं क्योंकि इससे भी बड़ा चमत्कार दूसरे लोग कर रहे हैं। हो जाओ तो उस मुक्ति का कोई मूल्य नहीं है। क्योंकि उतरते ही उन्होंने रोटियों को पत्थर बना दिया है! तो यह कोई बड़ी बात पहाड़ से नीचे तुम पाओगे, वह मुक्ति पहाड़ पर ही छूट गयी। नहीं कि ईसा ने अगर पत्थर को रोटी बना दिया; यह तो मैं रोज | बाजार में खरोंचें लगेंगी। देख रहा हूं कि करोड़ों-करोड़ों लोगों ने रोटी को पत्थर बना दिया | तुम अपने मुनियों को थोड़ा बाजार में लाओ! वहां पता चल है। चमत्कार तो वही है। | जायेगा, क्योंकि वहां चारों तरफ धक्कम-धुक्की है। ज्ञान रखा है, किसी काम नहीं आता! तुमने ज्ञान का कभी मैंने सुना है, एक संन्यासी तीस वर्ष तक हिमालय में रहा। उपयोग किया है? तुम कर ही नहीं सकते उपयोग, क्योंकि वह उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। लोग उसकी पहाड़ी गुफा दर्शन से पैदा नहीं हुआ है। वह तुम्हारा है ही नहीं। भीतर गहरे तक आने लगे, उसके चरण छूने। आखिर कुंभ का मेला भरा मन में तुम जानते ही हो कि वह ठीक नहीं है। ऊपर-ऊपर से कहे था, तो लोगों ने कहा, 'महाराज! अब तो नीचे उतरो।' तो जाते हो, ठीक है। लोकोपचार, समाज, परंपरा! उसको भी अब तो भरोसा आ गया था। तीस साल! एक दफा तुम्हारा ज्ञान एक शिष्टाचार मात्र है। लेकिन भीतर तुम्हें उस क्रोध नहीं हुआ। एक दफा नाराज नहीं हुआ। एक दफा कोई पर भरोसा नहीं है। जिस पर भरोसा नहीं उसे तुम कैसे जीवन में विकृति नहीं उठी। उसने कहा, आता हूं। वह आया। अब कुंभ उतारोगे? जिस भोजन पर तुम्हें भरोसा नहीं है, उसे तुम कैसे | का मेला! वहां कौन किसकी फिक्र करता है! धक्कम-धुक्की! करोगे? उसे तुम कैसे पचाओगे? उसे तुम क्यों चबाओगे? वह नीचे उतरा तो धक्कम-धुक्की होने लगी। एक आदमी का ऊपर से तुम कहते हो, भोजन है; भीतर तो तुम्हें दिखायी पड़ता पैर उसके पैर पर पड़ गया। वह भूल ही गया तीस साल का है पत्थर, मिट्टी है। इसलिए ज्ञान पड़ा रह जाता है। हिमालय का वास, शांति, ध्यान! झपटकर उसकी गर्दन पकड़ _ 'क्रियाविहीन ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानियों की क्रिया भी व्यर्थ ली और कहा, 'तूने समझा क्या है ? किसके ऊपर पैर रख रहा है।' और अगर अज्ञानी चरित्रवान होने की कोशिश में लग जाये है? होश से चल!' लेकिन तभी उसे खयाल आया, अरे! तीस तो वह भी व्यर्थ है; क्योंकि वह कितना ही आरोपित कर ले | साल मिट्टी हो गये! चरित्र, वह कभी उसके प्राणों का स्पंदन नहीं बनेगा। वह उसके पर हिमालय में तुम बैठे थे, एकांत में, न किसी का पैर पैर पर जीवन का गीत न होगा। वह बस ऊपर-ऊपर होगा। जरा पड़ता था, न मौके थे, न अवसर थे। खरोंच जरा-सी लग जाये, खरोंच दो-और असली मवाद बाहर निकल आएगा। मुश्किल में पड़ जाओगे। तो तुम तथाकथित चरित्रवानों को खरोंचना मत, अन्यथा साधु अगर सम्यक चरित्र को उपलब्ध हो तो भगोड़ा नहीं चमड़ी से भी कम गहरा उनका चरित्र है। बिना खरोंचा रहे तो होगा। भगोड़े होने की कोई जरूरत नहीं है। उसके होने में सब ठीक चल जाता है। जरा-सी खरोंच-और कठिनाई हो साधुता होगी। उसने कुछ छोड़ा नहीं है; जो गलत था वह छूट जाती है। इसलिए तो तुम्हारे चरित्रवान जीवन को छोड़कर भाग गया है। और उसने कुछ थोपा नहीं है; जो ठीक था वह प्रगट जाते हैं, क्योंकि जीवन में लगती हैं खरोंचें। हुआ है। उसका चरित्र उसकी आंतरिक आत्मा का ही प्रतिबिंब रवींद्रनाथ से किसी ने पूछा, 'आपने शांतिनिकेतन बोलपुर में होगा। उसके जीवन में तुम विरोध न पाओगे। उसके भीतर कोई क्यों बनाया?' तो उन्होंने कहा, 'क्या ढोलपुर में बनाऊं? यहां | दोहरी पर्ते नहीं हैं। उसके व्यक्तित्व में तुम डबल:माइंड न कम से कम बोल तो सकते हैं। बोलपुर!' और मैं तुमसे कहता पाओगे। ऐसा नहीं है कि वह कुछ भीतर है और कुछ होने की 546 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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