SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत तुम आना और प्रसन्न होना। और तुम आना और खुलना। अनहोना घट गया, तो लोग कहेंगे, इस बोलने में क्या रखा है? और तुम आना और प्रसाद को उपलब्ध होना। लेकिन स्मरण | ये शब्द तो साधारण हैं। रखना कि सब तुम्हारे भीतर हो रहा है। और जब तुम यहां से 'महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य जाओ, तो जो हुआ है उसे संभालकर अपने साथ ले जाना, उसे किसी और ने नहीं दिया'-इन शब्दों से क्या घट सकता है? यहां मत छोड़ जाना। और धीरे-धीरे विपरीत परिस्थितियों में भी तुम दूसरे को मत समझाना! ये बातें तो दीवानों की हैं। हां उसकी झलक को पाने की कोशिश करना। जहां कोई संभावना | किसी और को हुआ हो तो उससे बात कर लेना। नहीं तो खतरा न दिखायी पड़ती हो, जहां दुख ही दुख, पीड़ा ही पीड़ा हो—फिर क्या है? खतरा यह है कि अगर तुम औरों से यह कहोगे तो वे तुम आंख बंद करके उसी भावदशा को, उसी तरंग को अपने | समझेंगे, कि कुछ गड़बड़; तुम्हारा दिमाग खराब हो रहा है, भीतर लाना। तुम चकित होओगे कि धीरे-धीरे वह तरंग उठने किसी सम्मोहन में पड़ गये हो। और डर यह है कि वे कहीं लगी, मालकियत हाथ में आने लगी। तुम्हारा आत्म-अविश्वास न जगा दें। अगर आत्म-अविश्वास तब कहीं भी, आंगन कितना ही तिरछा हो, तुम्हें नाच आ गया जग गया तो दुबारा यह न होगा। तो तुम नाच सकोगे। ज्यादा से ज्यादा यहां मैं इतना ही कर रहा हूं | तो ऐसी घटना कभी भी घटती हो, मुझे कह देना या गैरिक रंग कि तुम्हें चौकोर आंगन दे रहा हूं। इससे ज्यादा नहीं। जो जगा है के बहुत पागल यहां हैं, उनसे कह देना; मगर समझदारों से मत वह तुम्हारे भीतर ही सोया था। कहना, नहीं तो वे तुम्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। अंततः जब फिर ये कैसी कसकसी है दिल में, तुम्हारे जीवन में सब साफ हो जायेगा, फिर तो कोई नुकसान नहीं तुझको मुद्दत हुई कि भूल चुका। पहुंचा सकता। लेकिन अभी जब अंकुर बड़ा कोमल होता है, वह जो कसकसी फिर से मालूम हुई, वह कुछ बाहर से नहीं अभी जब बीज टूटा ही होता है, तब हर खतरा प्राणघाती हो आयी है। वह उसी की याददाश्त है जिसे तुम मुद्दत हुई भूल | सकता है। चुके। वह तुम्हारे मूलस्रोत का स्मरण है। जब दिल पे न हो काबू अपना, क्या जब्त करें क्या सब्र करें। फिर ये कैसी कसकसी है दिल में मुझ जैसे काश वह हो जाएं जो आ-आकर समझाते हैं। तुझको मुद्दत हुई कि भूल चुका। कई लोग तुम्हें समझायेंगे कि 'क्या पागलपन कर रहे हो? इतने भूल चूके हो कि अब यह भी याद नहीं कि भूल चुके। होश में आओ! बुद्धि सम्हालो। यह तुम किन बातों में पड़े जा भूल चुके हैं, यह भी याद रहे तो बिलकुल भूले नहीं, याद है। रहे हो?' लेकिन हम इतने भूल गये हैं कि यह भी अब याद नहीं कि भूल | जब दिल पे न हो काबू अपना, क्या जब्त करें क्या सब्र करें! चुके। मुझ जैसे काश वह हो जाएं जो आ-आकर समझाते हैं। तुम मेरे करीब, वह मुद्दत हुई जिसे तुम भूल चुके, जनम-जनम | लेकिन वह तुम्हारे जैसे न होंगे। और डर यह है कि वह तुम्हें का घेरा, बहुत दूर रह गयी वह बात जो तुम्हारा मूलस्रोत थी और अपने जैसा बना सकते हैं, क्योंकि वे ज्यादा हैं। जो तुम्हारी, अंतिम जीवन की नियति है; प्रथम जो थी और भीड़ है। और हम भीड़ पर बड़ा भरोसा करते हैं। हमारी अंतिम जो है, वह बात भूल गयी है-यहां तुम्हें याद आ जाये, धारणा ही यह है कि जिस बात को बहुत लोग मानते हैं, वह ठीक थोड़ी सुरति आ जाये! बस इतना काफी है! होनी चाहिए। अकसर तो उलटा होता है। जिसको बहुत लोग और इस बात को तुम हर किसी से कहते मत फिरना। नहीं तो मानते हैं वह बात अकसर तो गलत होती है। क्योंकि बहुत लोग लोग हंसेंगे। यह बात तो दीवानों से ही करने की है। गलत हैं। अकसर तो ऐसा होता है, ठीक बात को कभी कोई अगर तुमने यह किसी और को कहा कि मैं यह बोल रहा था। एक-आध मानता है। भीड़ तो सदा गलत को ही मानती है। कि 'महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, वह मूल्य इसलिए सत्य के जगत में कोई लोकतंत्र नहीं है, कोई मत नहीं है, किसी और ने नहीं दिया', उस क्षण में तुम्हारे भीतर कुछ कि नब्बे प्रतिशत लोगों ने साथ दे दिया तो सत्य होना चाहिए। 527 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy