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________________ जिन सूत्र भाग : 1 बड़ी ऊर्जा का जैसे बांध टूट गया! यहां बिलकुल खाली हो गया इसको ही हिंदुओं ने कल्पवृक्ष की अवस्था कहा है। था शक्ति से; जगह, स्थान निर्मित हो गया था। भीतर जहां | कल्पवृक्ष स्वर्ग में लगा हुआ कोई वक्ष नहीं है। कल्पवृक्ष ऊर्जा भरी है, वहां से टूट पड़ी। बही गड्ढे की तरफ। गड्ढा बन तुम्हारे भीतर की एक चैतन्य अवस्था है। गया था थकान के कारण। ऊर्जा बही और सारा शरीर, बैनेट के उल्लेख से तुम समझ सकते हो कल्पवृक्ष का क्या रोआं-रोआं ऐसी शक्ति से भर गया जैसा कभी भी न हुआ था। अर्थ होगा। कल्पवृक्ष का अर्थ होगा कि जहां साधन और साध्य उसने कभी ऐसी शक्ति जानी ही न थी। उस क्षण उसे लगा, इस का फासला न रहा, जहां दोनों के बीच कोई दूरी न रही। यहां समय मैं जो चाहूं वह हो सकता है। इतनी शक्ति थी! तो उसने साधन हुआ नहीं कि साध्य आ ही गया। एक साथ, युगपत! सोचा, क्या चाहूं? जिंदगीभर सोचा था आनंदित...तो उसने क्षणभर का भी, क्षण के खंड का भी हिस्सा नहीं है-यही कहा, मैं आनंदित होना चाहता हूं। ऐसा भाव करना था कि वह कल्पवृक्ष की धारणा है।। एकदम आनंदित हो गया। उसे भरोसा ही न आया कि आदमी के कल्पवृक्ष की धारणा है कि जिस वृक्ष के नीचे तुम बैठे, इधर बस में है क्या आनंदित होना! चाहते तो सभी हैं—होता कौन तुमने मांगा उधर मिला। ऐसे कोई वृक्ष कहीं नहीं हैं, लेकिन ऐसे है! उसने सोचा कि आनंदित हो जाऊं...यह तो सिर्फ खेल कर वृक्ष तुम बन सकते हो। और उस बनने की दिशा में जो पहला रहा था शक्ति को देखकर। इतनी शक्ति नाच रही थी चारों| कदम है वह यह कि साधन और साध्य की दूरी कम करो। तरफ, रोआं-रोआं ऐसा भरा-पूरा था कि उसको लगा इस क्षण क्योंकि जहां साधन और साध्य मिलते हैं, वहीं वह घटना घटती में तो अगर मैं जो भी चाहूंगा हो जायेगा तो क्या चाहूं! | है कल्पवृक्ष की। 'आनंदित!' ऐसा सोचना था, यह शब्द का उठना और तुमने खूब दूरी बना रखी है। तुम तो सदा दूरी निर्मित था-आनंद-कि उसकी पुलक-पुलक नाच उठी। उसे बस | करते चले जाते हो। तुम कहते हो, कल मिले। तुम्हें यह भरोसा भरोसा न आया। उसने कहा कोई धोखा तो नहीं खा रहा हूं, कोई ही नहीं आता कि आज मिल सकता है, अभी मिल सकता है, सपना तो नहीं देख रहा हूं, कोई मजाक तो नहीं की जा रही है मेरे | इसी क्षण मिल सकता है। साथ। तो उसने सोचा कि उलटा करके देख लूं: दुखी हो जाऊं! तुमने आत्मबल खो दिया है। तुमने जन्मों-जन्मों तक वासना ऐसा सोचना था कि 'दुखी हो जाऊं' कि एकदम गिर पड़ा! के चक्कर में पड़कर...वासना का चक्कर ही यही है: साध्य चारों तरफ जैसे अंधेरा छा गया। जैसे अचानक सूरज डूब गया! | और साधन की दूरी यानी वासना; साध्य और साधन का मिलन जैसे सब तरफ दुख ही दुख और दुख की तरंगें उठने लगीं। वह यानी आत्मा।...तो तुमने इतनी दूरी बना ली है कि इस जन्म में घबराया कि यह तो मैं नर्क में गिरने लगा। यह हो क्या रहा है! भी तुम्हें भरोसा नहीं आता कि मिलेगा, तो तुम कहते हो, अगले उसने कहा, मैं शांत हो जाऊं, वह तत्क्षण शांत हो गया। जन्म में! अगले जन्म पर भी भरोसा नहीं आता, क्योंकि तुम उसने सब मनोभाव उठाकर देखे। फिर तो एक-एक पर प्रयोग जानते हो अपने आपको भलीभांति कि कितने जन्मों से तो भटक करके देखा-क्रोध, घृणा, प्रेम-और जो भाव उसने उठाया रहे हो कुछ मिलता तो नहीं। तो तुम कहते हो, स्वर्ग में, परलोक वही भाव परिपूर्ण रूप से प्रगट हुआ। में; इस लोक में नहीं तो परलोक में। तुम दूर हटाये जा रहे हो। वह भागा हुआ आया। उसने गुरजिएफ को कहा कि चकित हो तुम साध्य और साधन के बीच समय की बड़ी दूरी बनाये जा रहे गया हूं। उसने कहा, अब चकित होने की जरूरत नहीं, चुपचाप हो। यह समय को हटा दो और गिरा दो। सो जा! अब जो हुआ है इसे चुपचाप संभालकर रख और याद कृष्ण कहते हैं, फलाकांक्षा छोड़ दो। उपनिषद कहते हैं, रखना, कभी भूलना मत कि अगर आदमी ठीक स्थिति में हो तो कंजूस मत बनो। महावीर कहते हैं, भव्य हो जाओ। भविष्य के जो चाहता है, वही हो जाता है। गैर-ठीक स्थिति में तुम चाहते | पीछे क्यों पड़े हो? तुम भव्य हो सकते हो। तुमने भविष्य को रहो, चाहते रहो, कुछ भी नहीं होता। ठीक स्थिति में जब भीतर भव्यता दे रखी है। के तार मिलते हैं तो साधन और साध्य की दरी खो जाती है। भव्य का अर्थ हआ : ऐसी घड़ी जहां तम्हें पाने को कुछ भी 498 Jain Education International, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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