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________________ HAL जिन सूत्र भागः1 AHANERAL पड़े, तो मैं जानता हूं वापस लौटना आसान नहीं। एक बार इतनी आकाश में उड़ने का; लेकिन पंख पैदा करने होंगे। या होंगे भी हिम्मत कर ली कि मेरे रंग में रंगे, कि गैरिक वस्त्रों में डूबे, कि मौजूद तो जन्मों-जन्मों से उनका उपयोग नहीं किया; उनका फिर तुम भाग न सकोगे। अंगुली पकड़ ली तो फिर पहुंचा भी उपयोग सीखना पड़ेगा। लेकिन शुभ है कि कम से कम आधा तो पकड़ लूंगा। एक बार अंगुली हाथ में लेता हूं, तुम सोचते हो, हुआ। जमीन से पैर तो उखड़ गये। अब जमीन पर खड़े होने की क्या हर्जा है, अंगुली ही तो है कोई; जब चाहेंगे तब छुड़ा लेंगे। तो जगह न रही। अब तो पंख खोजने ही पड़ेंगे। तुमसे मैं कहता है, अंगुली काफी है; इतने से काम हो जायेगा। और ध्यान रखना, जब तक कि जीवन संकट में न पड़ जाये, इतने से काम न होगा। इतने से काम शुरू होता है। जीवन नये की खोज नहीं करता। नये की खोज संकट में होती तो स्वभावतः देर-अबेर प्रत्येक को ऐसा लगेगा कि यह तो है। जब इतना संकट आ जाता है कि कुछ करना ही होगा, तभी बड़ी मुश्किल हुई। हम तो सोचे थे सरल है; यह तो कठिन होने नये की खोज होती है; अन्यथा मन बड़ा आलसी है। लगी बात। यह तो मार्ग ऊंचाइयों पर चढ़ने लगा। हम तो सोचे तो अगर तुम्हारी जमीन मैंने छीन ली तो अब तुम थे, समतल है। हम तो सोचे थे, राजपथ है; ये तो पगडंडियां तड़फड़ाओगे, फेंकोगे हाथ-पैर। उन्हीं हाथ-पैर के फेंकने से फूटने लगी, और जंगल में अकेले की यात्रा होने लगी। पंखों का जन्म होगा। पंख तो हैं, तुम भूल ही गये हो; तुम्हें याद लेकिन उस तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ चुकाना पड़ता है। ही न रही। अपने पूरे जीवन की ही आहुति देनी पड़ती है। तो अड़चन से शुरू-शुरू में तड़फड़ाहट करोगे तो एकदम से उड़ना न आ घबड़ाना मत। जायेगा। उड़ने के लिए बड़ी कुशलता चाहिए। वह कुशलता और अयोग्यता का बोध पैदा हो रहा हो तो इसे शुभ मानना; धीरे-धीरे पैदा होगी। लेकिन तुम उड़ सकोगे। क्योंकि आकाश क्योंकि अयोग्यता का बोध केवल उन्हीं को होता है, जिनके ही, अनंत आकाश ही-कहो उसे परमात्मा, मोक्ष, भीतर थोड़ी बुद्धिमत्ता है। मूढ़ तो अपने को योग्य ही समझते हैं। निर्वाण-तुम्हारी नियति है। और जो पक्षी उस आकाश में नहीं उन्हें अयोग्यता का तो पता ही नहीं चलता। अज्ञानी तो अपने को उड़ा, घोंसले में ही बैठा रह गया, उसके अभाग्य को क्या कहें! ज्ञानी ही मानते हैं। यह तो सिर्फ ज्ञानियों को पता चलता है कि पैदा हुआ था कि उड़े आकाश में। लेकिन पैदा तो घोंसले में होना हम अज्ञानी हैं। इसलिए अगर अयोग्यता का बोध हो रहा है तो पड़ता है; आकाश में तो कोई भी पक्षी का अंडा रखा नहीं जा दुखी मत होना। यह तो पहली सूरज की किरण फूटी। यह तो सकता। अंडा तो रखना पड़ता है घोंसले में। लेकिन अंडा फूट पहला दीया जला। अब इसी दीये से योग्यता पैदा होगी। जाये और पक्षी वहीं बैठा रहे घोंसले में और डरे...और डर अयोग्यता का पता चल गया तो अयोग्यता से मुक्त हो जाना उसका स्वाभाविक है, कभी उड़ा नहीं पहले...। बहुत आसान है। अयोग्यता का पता ही न चलता हो तो फिर तो मैंने तुमसे तुम्हारा घोंसला तो छीन लिया; अब बैठने की तो कैसे मुक्त हो सकोगे? कोई जगह नहीं है। उड़ना ही पड़ेगा! और तुम उड़ोगे। 'जमीन से पैर उखड़ गये हैं, लेकिन पंख अभी तक नहीं उगे तुमने देखा, जो लोग तैरना सिखाते हैं, वे करते क्या हैं? वे हैं...।' नये व्यक्ति को पानी में फेंक देते हैं। और कुछ भी नहीं करते। ठीक है। जहां तुम जा रहे थे वहां से तुम्हें खींच लिया है। वह | लेकिन पानी में गिरकर कोई भी हाथ-पैर फेंकेगा ही, अपने को दिशा समाप्त हुई। उस तरफ रस बंद हुआ। लेकिन जहां तुम्हें ले बचाने के लिए फेंकेगा। वही तैरने का पहला चरण है। फिर जाना है, उस दिशा में लगाने के लिए तुम्हारे भीतर पात्रता लानी धीरे-धीरे कुशलता आ जाती है। फिर वह देखता है, कैसे ढंग से होगी। पुराने रास्ते पर चलने की तुम्हारे पास कुशलता है। पुराना फेंकना; कैसे कम शक्ति लगे और फेंकना। फिर धीरे-धीरे तो रास्ता तो हटा दिया, नये रास्ते पर तुम्हें लगा दिया; लेकिन नये बिना फेंके भी तैरने लगता है। रास्ते की कुशलता सीखनी होगी। जड़ें तो टूट गयीं, ठीक हुआ ऐसा ही आत्मिक जगत भी है। और इसमें ध्यान रखना, ऐसा जमीन से पैर उखड़ गये, ठीक हुआ। यह पहला कदम तो हुआ एक बार होगा, ऐसा नहीं; बहुत बार होगा। क्योंकि फिर तुम - ---- - -- 488 Jairi Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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