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________________ जिन सूत्र भागः1 रहेगा। मुक्ति एकमात्र संपदा है जिसे मृत्यु नहीं छीन पाती। और पर जाकर कहा कि सुनो, मरना है तो इतना शोरगुल क्यों कर रहे सारी संपदाएं मृत्यु छीन लेती है। | हो? शोरगुल जिसको जिंदा रहना है उसको शोभा देता है। अब इसलिए महावीर कहते हैं: अगर तुम थोड़े भी बुद्धिमान हो, जिसको मरना ही है तो यह इतना क्या विज्ञापन? दरवाजा खोलो थोड़ा हिसाब तो करो, गणित तो बिठाओ! तुम जो इकट्ठा कर रहे और मेरे साथ चलो! तुम्हें मरने की कोई ढंग से व्यवस्था जुटा हो वह सब मौत छीन लेगी। पहले तो कर न पाओगे। कौन कब | देंगे; यह कोई ढंग चुना? अब जब मरना ही है...। कर पाया? और अगर किसी तरह कर भी लिया तो जब तक तुम तब वह मुझे तो धमकी दे नहीं सका कि मर जाऊंगा। अब उसे कर पाओगे, मौत द्वार पर आ जायेगी। करोगे तुम, छीन लेगी | कुछ समझ में न आया तो उसने दरवाजा खोल दिया। मैंने कहा, मौत। यह कैसी नासमझी कर रहे हो? उसे कमा लो, जिसे मौत 'तुम मेरे साथ आओ-नर्मदा पर चलेंगे। 'धुआंधार' ले न छीन सकती होः मुक्त दशा! चैतन्य की अचाह की दशा! | चलेंगे। वहां से तुम कूद जाना। चांद की रात है, जलप्रपात है, चैतन्य का निरभ्र आकाश, जिसमें कोई चाह के बादल नहीं! जब मर ही रहे हो—जिंदगी में तो कुछ नहीं मिला, कम से कम फिर मौत कुछ भी न कर पायेगी। मौत को ही सुंदर बना लो!' मौत एक जगह जाकर हारती है-वह मोक्ष है। और सभी उसने मेरी तरफ बड़ी गौर से और हैरानी से देखा; क्योंकि जो चीजों पर जीत जाती है। अब इसे समझना। भी आये थे, वह सब समझा रहे थे दरवाजे के बाहर से कि बेटा हमारी जीवन की भी आकांक्षा है, इसलिए मौत जीत जाती है। मरना मत! ऐसा मत करना, वैसा मत करना! जीवेषणा! हम जीना चाहते हैं-हर हाल जीना चाहते हैं! हर एक लड़की से उसका प्रेम था। उस लड़की ने विवाह करने से शर्त पूरी करने को राजी हैं, लेकिन जीना चाहते हैं। सड़ते हों, इनकार कर दिया था। तो लोग समझा रहे थेः 'उससे अच्छी गलते हों, मरते हों, खाट पर पड़े हों, अस्पतालों में लटके हों, लड़कियां मिल जायेंगी, उसमें रखा क्या है? तू घबड़ाता क्यों उलटे-सीधे हाथ-पैर बंधे हों लेकिन जीना चाहते हैं। मरना हैं?' मगर वह जिद्द पकड़े हुए था। नहीं चाहते। कैसी भी हालत में आदमी पड़ा हो और उससे पूछो, मैं उसे घर ले आया और मैंने कहा कि रात तझे जो भी करना 'मरना चाहते हो?' वह इनकार करेगा। तुम चकित होओगे, हो, क्योंकि यह आखिरी रात है-कोई फिल्म देखनी है? कोई बहुत-से लोग कहते हैं कि 'अब तो भगवान उठा लो!' वह भी मिठाई खानी है? कुछ आखिरी पत्र वगैरह लिखना? कुछ भी मरना नहीं चाहते। वह भी कहने की बातें कर रहे हैं। तुझे करना हो तो बोल, क्योंकि फिर मौका नहीं रहेगा। और दो । मेरा एक मित्र मरना चाहता था, आत्महत्या करना चाहता था। बजे रात हम उठेंगे और चल पड़ेंगे। तू कूद जाना, हम उसके पिता बहुत घबड़ा गये। इकलौता बेटा था और अकेले आयेंगे। मित्र का कर्तव्य है...कि जो असमय में काम आये वही मुझसे ही उसकी दोस्ती थी, तो वे मुझे बुलाने आये। तो मैंने मित्र है। अब इस वक्त तेरे कोई काम नहीं आ सकता। कहा, 'घबड़ाओ मत! मैं उसे भलीभांति जानता हूं। चिंता न वह सुनता था मेरी बात, बड़े क्रोध से देखता था। बोलता भी करो।' पर वे बोले कि चिंता होती है, उसने दरवाजा बंद कर नहीं था कुछ। दो बजे रात का अलार्म भर दिया। दोनों हम सो लिया है। और अगर दरवाजे पर खटका भी करो तो वह गये। बीच में अलार्म-घड़ी रख ली। जैसे ही दो बजे अलार्म चिल्लाता है, कि 'मैं मर जाऊंगा, दरवाजा नहीं खोलूंगा।' वह | बजा, उसने जल्दी से अलार्म बंद किया। मैंने उसका हाथ घड़ी कुछ कर न ले, सिर न तोड़ दे। कुछ छुरी वगैरह न छिपा रखी पर पकड़ा। मैंने कहा, अलार्म बंद नहीं कर सकते! वह एकदम हो, कुछ जहर वगैरह न रखे हो, कोई गोलियां न ले आया हो! | बैठ गया और चिल्लाया कि तुम मेरे दुश्मन हो कि मेरे दोस्त ? और पिता वैद्य हैं तो और भी डरे कि वह जहर तो हमारे घर में तुम मुझे क्यों मारने में लगे हो? क्या मुझे मरना ही पड़ेगा? रहता ही है, गोलियां भी हैं, दवाइयां भी हैं, वह कुछ ले न गया '...मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। तुम मरना चाहो तो मैं साथ हो उठाकर! देता हूं। तुम जीना चाहो तो मैं साथ देने को तैयार हूं-मेरा काम तो मैं गया। भीड़ लगी थी, मुहल्ला इकट्ठा था। मैंने दरवाजे | साथ देने का है-तुम अगर मरने में सुख पाते हो तो मैं क्यों ९हा 458 Main Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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