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________________ जिन सत्र भाग । हो जाओगे। संबंध नहीं है। इलाज करो। बीमारी के रोगाणु हैं, उनसे मुक्त जैसे कोई आदमी सम्हलकर चलता हो तो गिरता नहीं। जो होने की व्यवस्था करो। ताबीज से रोगाणु डरेंगे न और न मुक्त आदमी गिर जाता है, उससे हम कहते हैं, सम्हलकर चलो! होंगे और न तुम उनसे मुक्त हो सकोगे। सम्हलकर चलने का क्या अर्थ होता है ? सम्हलकर चलने का महावीर कहते हैं, जीवन में दुख है तो तुम ठीक-ठीक कारण अर्थ होता है: जमीन की गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है, उसका खोजो। दुख से तुम बचना चाहते हो, यह तो हमें मालूम है; ध्यान रखकर चलो। अगर इरछे-तिरछे चले-गिरोगे। वही लेकिन सिर्फ बचने की आकांक्षा से बच न सकोगे। और दुख से गुरुत्वाकर्षण का नियम जो तुम्हें चलाता है, सम्हालता है, | तुम बचना चाहते हो, इसलिए कोई भी कुछ बता देता है, वही जिसके बिना चल न सकोगे, अगर उसके विपरीत गये तो करने लगते हो—इससे भी न बच सकोगे। हो सकता है गिरोगे, हाथ-पैर तोड़ लोगे, फिर कभी चल न पाओगे। तो | बतानेवाले की भी आकांक्षा शुभ हो; खोजनेवाले की भी गुरुत्वाकर्षण के निमय को समझ लो और अपने और उस नियम | आकांक्षा शुभ हो; लेकिन आकांक्षाओं से थोड़े ही जीवन चलता के बीच एक संगीत का संबंध बना लो। इतना ही धर्म है। है। जीवन चलता है सत्यों से, नियमों से। तो नियम को खोज महावीर धर्म की परिभाषा करते हैं : जीवन के स्वभाव सूत्र को लो। नियम के खोजते ही जीवन में क्रांति घटित होती है। समझ लेना धर्म है। जीवन के स्वभाव को पहचान लेना धर्म है। उस नियम की खोज को महावीर कहते हैं: मार्ग। वही मार्ग स्वभाव ही धर्म है। पकड़ में आ जाये तो फिर परिणाम के लिए प्रार्थना भी करनी ये सूत्र ऐसे ही सीधे-साफ हैं। जरूरी नहीं है, उतना भी समय खराब मत करना। क्योंकि जब पहला सूत्रः तुमने आग जला दी और पानी गर्म होने लगा तो अब बैठकर मग्गो मग्गफलं ति य, द्रविहं जिणसासणे समक्खाद। प्रार्थना मत करना कि हे परमात्मा, इसको भाप बना! अब किसी मग्गो खलु सम्मतं मग्गफलं होइ निव्वाणं।। परमात्मा को बीच में लाने की जरूरत नहीं है। अब तो पानी भाप 'जिन-शासन में मार्ग तथा मार्ग-फल, इन दो प्रकारों से कथन | | बनेगा। ईंधन पूरा है, आग जल उठी है-पानी भाप बनेगा। किया गया है। मार्ग है मोक्ष का उपाय और फल है निर्वाण।' अब इसे कोई रोक भी न सकेगा। इस नियम के विपरीत कुछ घट मार्ग और मार्ग-फल! बस महावीर के सारे वचन इन दो | न सकेगा। हिस्सों में बांटे जा सकते हैं : कारण और कार्य। ऐसा करो तो महावीर चमत्कार में नहीं मानते। कोई वैज्ञानिक बुद्धि का ऐसा होगा। बस इतनी दो सरणियों में महावीर के पूरे कथन बांटे व्यक्ति नहीं मानता। चमत्कार कहीं न कहीं धोखा होगा, क्योंकि जा सकते हैं। कुछ कथन हैं जो बताते हैं क्या करो और कुछ नियमों का कोई अपवाद नहीं होता। अगर कोई आदमी हाथ से कथन हैं जो बताते हैं कि फिर क्या होगा। अगर जहर पी लो तो राख निकाल देता है तो कहीं न कहीं कोई मदारीगिरी होगी, मृत्यु होगी। अगर अमृत को खोज लो तो अमरत्व को उपलब्ध क्योंकि जीवन के नियम किसी का अपवाद नहीं मानते। जीवन हो जाओगे। के नियम व्यक्तियों की चिंता नहीं करते-निर्वैयक्तिक हैं, परिणाम कारण के पीछे ऐसे ही चला आता है जैसे तुम्हारे पीछे सार्वभौम हैं। उनसे अन्यथा होने का उपाय नहीं।। तुम्हारी छाया चली आती है। तो करना क्या है? न प्रार्थना, न अगर कोई आदमी साठ डिग्री पर पानी को भाप बना दे तो या पूजा, न मंदिर, न पाठ: क्योंकि इनसे कछ भी न होगा। इनसे तो थर्मामीटर से धोखा दे रहा है या किसी तरह का आयोजन कर कारण का कोई संबंध नहीं है। रहा है, जिससे तुम्हें यह भ्रम पैदा होता है कि साठ डिग्री पर पानी यह तो ऐसे ही है जैसे वर्षा नहीं हो रही और कोई यज्ञ कर रहा भाप बन रहा है। है। इसका कुछ लेना-देना नहीं है। यज्ञ से कोई कार्य-कारण का पानी तो सौ डिग्री पर ही भाप बनेगा। उसने किसी तरह का संबंध नहीं है वर्षा से। कि कोई बीमार पड़ा है और तुम ताबीज भ्रमजाल रचा है। लेकिन चमत्कार जगत में नहीं होते। बांध रहे हो: ताबीज से और बीमारी का कोई कार्य-कारण का चमत्कार का तो अर्थ यह होता है कि जगत के नियम पक्षपात 1454 Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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