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________________ 448 जिन सूत्र भाग: 1 जाओ, आधा कहता है जाओ । कायर आदमी उस आधे मन की मान लेता है, जो कहता है मत जाओ । साहसी व्यक्ति उस आ मन की मानता है जो कहता है, करो अभियान ! खोजो नये को ! अपरिचित राह को चुनो ! पश्चिम के एक बहुत बड़े कवि से किसी ने पूछा कि तुम्हारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात जिसने तुम्हारे जीवन के अर्थ को निर्णीत किया, कौन-सी थी ? तो उसने कहा कि जब मेरे पिता मर रहे थे तो उन्होंने मुझे पास बुलाया और कहा कि सुन, जीवन के हर कदम पर दो रास्ते खुलते हैं। एक रास्ता जाना-माना, जिस पर तुम चलते रहे हो; और एक रास्ता अपरिचित अनजाना, जिस पर तुम कभी नहीं चले हो । मन सदा कहेगा, जाने-माने को चुन लो, क्योंकि मन बहुत आर्थोडक्स है। जाने-माने को कभी मत चुनना, क्योंकि जिस पर चलते ही रहे हो, अब और चलकर क्या होगा ? अनजाने को चुन लेना । और जिंदगी के हर रास्ते पर दो कदम खुलते हैं। दो रास्ते खुलते हैं। सदा अनजाने को चुनते रहना । उस कवि ने कहा, मैंने पिता की बात मान ली। बड़ी कठिन थी। और कई बार भूला । कई बार चूका। लेकिन फिर भी उस सूत्र को सम्हाले रहा। इसी तरह मेरे जीवन में रोज-रोज सत्य की नयी-नयी सुबह हुई; सत्य का नया-नया सूरज निकला। अपरिचित, अनजान, अज्ञात — उसे जो चुनता है, उसने परमात्मा को चुना। तो डर लगेगा यहां आने में। क्योंकि मैं तुम्हें रोज अनजान की तरफ, अपरिचित की तरफ धक्के दूंगा। मन कहेगा, रुक जाओ, मत जाओ। इलाहाबाद में मैं बोल रहा था कई वर्षों पहले। जिन मित्र ने मुझे बुलाया था, वे हिंदी के एक कवि और लेखक हैं। वे सामने ही बैठे थे। कोई दस-पंद्रह मिनट मैंने देखा कि उनकी आंखों से आंसू गिरते रहे फिर वे एकदम से उठे और भवन के बाहर निकल गये । उन्होंने ही मुझे बुलाया था। फिर तीन दिन उनका कोई पता ही न चला। जब विदा का दिन आया तो वह मुझे स्टेशन छोड़ने आये। मैंने पूछा कि कहां चल दिये ! उन्होंने कहा कि पंद्रह मिनट तो मैं सुनता रहा, फिर मैं डरा । फिर मुझे लगा कि यह आदमी खतरे में ले जायेगा। तो मैंने कहा कि इसके पहले | कि कोई झंझट शुरू हो, यहां से निकल जाना चाहिए। तो मैं Jain Education International निकल गया। यह स्थिति सभी के सामने आयेगी । मेरे साथ चलना है तो बहुत कुछ जो तुम्हारी जिंदगी में तुम्हें कल तक मूल्यवान मालूम होता रहा, मूल्यहीन हो जायेगा। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, अज्ञात के लिए सदा अपने द्वार खुले रखना। क्योंकि वही द्वार है, जिससे परमात्मा प्रवेश करता है। For Private & Personal Use Only आज इतना ही। www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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