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________________ हला प्रश्न: आपको सुनने के बाद मुझे जो तुम्हारे लिए ठीक है, उसे भूलकर भी दूसरे पर आरोपित व्यवहारिक जीवन में शिथिलता और उदासी का मत करना। वहीं हिंसा शुरू हो जाती है। जो तुम्हारे लिए ठीक अनुभव होता है। लेकिन जब प्रेम और भक्ति, है, उसे जीना। और किसी को भी इतना अधिकार मत देना कि आनंद और उत्सव पर आप बोलते हैं, तब मन खिल जाता है। वह तुम्हारे ऊपर अपने ठीक को थोप पाये। क्योंकि वहीं से और आनंद से भर जाता है। कृपापूर्वक मुझे मेरा मार्ग दें। गुलामी शुरू हो जाती है। | न किसी को गुलाम बनाना, न किसी के गुलाम बनना तो ही आनंद कसौटी है। सत्य की चिंता छोड़ो। जहां आनंद है, उसी तुम धार्मिक हो सकोगे। दिशा में चल पड़ो। सत्य मिलेगा ही। असत्य की दिशा में | और कसौटी एक ही है हाथ में कि जहां तुम्हें आनंद की पुलक आनंद हो ही नहीं सकता। इसीलिए तो हमने आनंद को ब्रह्म की मिले, वहां सरकते जाना। अगर झूठा होगा आनंद-उस झूठे परिभाषा बनाया है। सच्चिदानंद! आनंद को ही हम सुख कहते हैं। आनंद कसौटी है। आनंद पर कभी संदेह मत करना। अगर | सुख का अर्थ है: जिसने धोखा दिया आनंद का, लेकिन था आनंद न होगा तो जल्दी ही पता चल जायेगा। झूठा आनंद नहीं। सुख का अर्थ है : जाकर पता चला आनंद नहीं है। दूर से ज्यादा देर टिकेगा नहीं। ढोल सुहावना मालूम पड़ा था। मगमरीचिका थी। दर से कुछ डूबो! जहां से आनंद की किरण आती है वहीं सूरज है सत्य और समझे थे, पास कुछ और सिद्ध हुआ। इसलिए मैं तुमसे का। तुम किरण को पकड़ लो और चल पड़ो। सत्य की चिंता ही सुख से भी भागने को नहीं कहता; क्योंकि अगर तुम भाग गये छोड़ो। किरण पकड़ ली तो सूरज की दिशा पर चल पड़े। और मृगमरीचिका को बिना देखे, तो सुख तुम्हारा सदा पीछा करेगा। आदमी के पास दूसरा कोई उपाय नहीं है। सत्य से ही पता मैं तुमसे कहता हूं, सुख में भी जाओ, ताकि वह दुख हो जाये। चलेगा, क्या ठीक है। क्योंकि जो ठीक है, वही जीवन को अगर वह दुख है तो दुख हो जायेगा और अगर दुख नहीं है तो संगीत और आनंद से भरता है। | वहीं से तुम्हारी परमात्मा की सीढ़ियां शरू होंगी। और जब मैं कहता हूं, जो ठीक है, तो मेरा प्रयोजन लेकिन, मनुष्य के मन को आनंद के लिए तैयार नहीं किया व्यक्ति-व्यक्ति से है। जो तुम्हें ठीक है, जरूरी नहीं कि तुम्हारे गया है। इसलिए प्रश्न उठता है। इसलिए तुम अपनी इस पति को ठीक हो। जो तुम्हें ठीक है, जरूरी नहीं कि तुम्हारे बेटे स्वाभाविक रुझान को भी समस्या बना लेते हो। को ठीक हो। जो तुम्हें ठीक है, जरूरी नहीं कि तुम्हारे भाई को | अगर वैराग्य की बातें तुम्हें रस नहीं देतीं छोड़ो! तुम्हारे ठीक हो, मित्र को ठीक हो, पड़ोसी को ठीक हो। लिए न होंगी। इसका यह अर्थ नहीं है कि वे बातें गलत हैं। वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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