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जिन सूत्र भागः1
ठीक है। पत्नी रोकती है, क्या करें!
जाओ भी। कभी यात्रा पर भी निकलो। डर स्वाभाविक है। | तम जिसमें रुकना चाहते हो, किसी का भी बहाना खोज लेते डर के रहते भी जाना होगा। डर के रहते ही जाना होगा। अगर हो। जिसमें तुम रुकना नहीं चाहते, तुम कोई बहाना मानने को तुमने सोचा कि जब डर मिट जाएगा तब जाएंगे, तो तुम कभी राजी नहीं होते। तुम कहते हो, विवशता है। वासना पकड़ लेती | जाओगे न। है, क्या करें? चिकित्सक रोक रहा है कि ज्यादा खाना मत | कुछ न देखा फिर वजुज एक शोला-ए-पुर पेचोताब खाओ। पत्नी रोक रही है, बच्चे समझा रहे हैं, पड़ोसी मित्र | शमा तक तो हमने भी देखा कि परवाना गया। समझाते हैं।
-बस परवाना शमा तक जाता हुआ दिखाई पड़ता है, फिर एक मेरे मित्र हैं, खाए चले जाते हैं। बहुत भारी हो गई देह, थोड़े ही दिखाई पड़ता है। फिर तो एक झपट और एक सम्हाले नहीं सम्हलती। चिकित्सक समझा-समझाकर परेशान लपट-और गया! हो गया है। अभी आखिरी बार चिकित्सक के पास गए थे तो कुछ न देखा फिर वजुज एक शोला-ए-पुर पेचोताब कहने लगे कि बड़ी अजीब-सी बात है! रात सोता हूं तो आंख शमा तक तो हमने भी देखा कि परवाना गया। खुली की खुली रह जाती है। चिकित्सक ने कहा कि रहेगी, बस परवाने को लोग शमा तक ही देख पाते हैं। जब शमा छू चमड़ी इतनी तन गई है कि जब मुंह बंद करते हो तो आंख खुल गई, एक लपट-और समाप्त!
जब मंह खोले रहते हो तो थोडी चमडी शिथिल रहती लोगों ने ध्यान के पास जाते लोगों को देखा है। बस, फिर खो है, तो आंख बंद रहती है। होगा! सारी दुनिया रोक रही है। खुद जाते देखा है। इसलिए घबड़ाहट है। लोगों ने देखा वर्द्धमान को भी कहते हैं, रोकना चाहते हैं, मगर क्या करें, विवशता है! जाते हुए ध्यान की तरफ; फिर एक लपट-वर्द्धमान खो गया!
ऐसी विवशता कभी ध्यान के लिए पकड़ती है? ऐसी जो आदमी लौटा, वह कोई और ही था। महावीर कुछ और ही विवशता कभी संन्यास के लिए पकड़ती है? ऐसी विवशता हैं, वर्द्धमान से क्या लेना-देना! वर्द्धमान तो राख हो गया, जल कभी आत्मखोज के लिए पकड़ती है? नहीं, तब तुम बहाने | गया ध्यान में! सिद्धार्थ को जाते देखा; जो लौटा-बुद्ध। वह खोज लेते हो। तुम कोई न कोई रास्ता खोज लेते हो-बच्चे | कोई और ही। छोटे हैं, विवाह करना है; जैसे कि बच्चे तुम्हें उठा-उठाकर बड़े इसलिए घबड़ाहट होती है कि तुम कहीं मिट गए। मिटोगे करने हैं। वे अपने से बड़े हो जाएंगे। तुम न भी हुए तो भी बड़े | निश्चित! लेकिन यह भी तो देखो कि मिटकर जो लौटता है, वह हो जाएंगे। तुम न भी हुए तो भी विवाह कर लेंगे। तुम जरा कैसा शुभ है, कैसा सुंदर है! उनको विवाह से रोककर तो देखना! तब तुम्हें पता चल जाएगा परवाने को जाते देखा है तुमने, लपट के सौंदर्य को भी तो कि तुम्हारे रोके नहीं रुकते, करने का तो सवाल ही दूर है। तुम्हें देखो! परवाना, जब खो जाता है प्रकाश में, उस प्रकाश को भी कौन रोक सका? तुम बच्चों को कैसे रोक सकोगे?
तो देखो! तो घबड़ाहट कम होगी। इसलिए सदगुरु का अर्थ है : कोई किसी को रोकता नहीं, लेकिन आदमी बेईमान है। किसी ऐसे व्यक्ति के पास होना, जो खो गया; ताकि तुम्हें भी आदमी रास्ते खोज लेता है। जो तुम नहीं करना चाहते उसके | थोड़ी हिम्मत बढ़े, खो जाने में थोड़ा रस आए। तुम कहो कि लिए तुम दूसरों पर बहाना डाल देते हो। जो तुम करना चाहते | चलो, देखें, चलो एक कदम हम भी उठाएं।
हो। इसे ईमानदारी से समझना उचित है। मिटना तो होता है, लेकिन मिटने के पार कोई जागरण भी है। लोग ध्यान की बात करते हैं। लोग आत्मा की बात करते हैं, सूली तो लगती है, लेकिन सूली के पीछे कोई पुनरुज्जीवन भी परमात्मा की बात करते हैं। वे कहते हैं, किसी दिन यात्रा करनी है। शास्त्र ही पढ़ोगे तो अड़चन होगी। शास्त्र में कहानी ही वहां है, तैयारी कर लें! यात्रा कभी होती दिखाई नहीं पड़ती। वे तक है, जहां तक परवाना शमा तक जाता है। उसके आगे की टाइम-टेबल ही पढ़ते रहते हैं। कुछ लोग हैं जो टाइम-टेबल कहानी शास्त्र में हो नहीं सकती। कोई महावीर खोजो! कोई पढ़ते हैं।
बुद्ध खोजो! किसी ऐसे आदमी को खोजो, जो वहां तक गया
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