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________________ धर्म की मूल भित्ति : अभय तब तक तुम महावीर को न समझ पाओगे। समझने का एक ही तो कृष्ण की गीता न होती, शायद भीष्म पितामह की कोई गीता उपाय है : जिसे तुम समझने चले हो, उस जैसे होने लगो। होती तो होती। 'मैं आत्मा न शरीर है, न मन हं, न वाणी है, और न उसका | अगर रावण जीता होता तो रामायण नहीं होती हो नहीं कारण हूं। मैं न कर्ता हूं, न करानेवाला हूं और न कर्ता का सकती थी। कौन लिखता? हारे हुए के लिए कौन लिखता! अनुमोदक ही हूं।' जीते के सब संगी-साथी हैं, हारे के कौन साथ है? तब रामायण णाहं देहो ण मणो, ण चेव वाणी ण कारणं तेसिं। के विपरीत, बिलकुल विपरीत रावण की कोई कथा होती, जिसमें कत्ता ण ण कारयिदा, अणुमंता णेव कत्तीण।। रावण तो धार्मिक होता और राम अधार्मिक होते। -न शरीर, न मन, न वाणी, न उनका कारण, न उनका कर्ता, तुम थोड़ा सोचो। विभीषण ने धोखा दिया है, गद्दारी की है; न करानेवाला और न कर्ता का अनुमोदक ही हूं। लेकिन राम-भक्त कहता है, 'भक्त विभीषण! राम का प्यारा कल हम गीता की बात करते थे। कृष्ण कहते हैं, तम केवल विभीषण।' लेकिन अगर रावण जीतता और कथा लिखी गई उपकरण हो जाओ। महावीर कहते हैं, उपकरण भी नहीं। अगर होती, तो विभीषण गद्दारों का गद्दार सिद्ध होता, धोखेबाज, तुम उपकरण भी हुए तो तुम कुछ तो हुए! सहारा तो दिया! | बेईमान, मीरजाफर का आदिगुरु सिद्ध होता। साधन तो बने! तो महावीर कहते हैं, न तो तुम कर्ता, न कौन लिखता है कहानी, इस पर निर्भर करता है। और जो भी करानेवाला हो, न कर्ता का अनुमोदक। उपकरण की तो बात कहानी लिखेगा, वह यह मानकर चलेगा कि मैंने जो किया वह दूसरी, तुम अनुमोदन भी मत करना। तुम यह भी मत कहना कि परमात्मा चाहता था। हां, यह ठीक है। अगर कोई आदमी किसी की हत्या कर रहा है। महावीर आदमी की बेईमानी को जानते हैं। आदमी बड़ा तो तुम यह भी मत कहना कि हां, यह ठीक है। अनुमोदन भी मत | धोखेबाज है! वह जो खुद करना चाहता है परमात्मा के नाम पर करना। कहने की बात नहीं है, मन में भी मत सोचना कि हां, यह थोप देता है। अगर हिटलर जीतता तो कथा बिलकुल और ठीक है। मन में सोचने की बात भी नहीं है। तुम्हारे भीतर होती। चर्चिल जीता, कथा और हुई। कथा कौन लिखता है, इस जरा-सा भी भाव उठे, जरा-सी भी लहर उठे कि नहीं, यह गलत पर निर्भर करती है। तो नहीं है, यह जरूरी था तो भी पाप हो गया। महावीर कहते हैं, इन जालों में मत पड़ना। तुम्हें क्या पता कृष्ण कहते हैं, 'अधर्म के विनाश के लिए, पाप के विनाश के परमात्मा की क्या मर्जी है? तुम कैसे निर्णय करोगे कि यही लिए अर्जुन! तू उपकरण बन।' लेकिन महावीर कहते हैं, परमात्मा की मर्जी है? अर्जुन जीते, अर्जुन का पक्ष जीते-यह उपकरण हिंसा का बनना किसी भी कारण से घातक है। परमात्मा की मर्जी है, तुम कैसे निर्णय करोगे? । खतरनाक है। और आदमी के मन का भरोसा क्या? क्योंकि हर आदमी जीतना चाहता है। और हर आदमी अपने जीतने के अकसर तो यह होता है, तुम जो करना चाहते हो, उसको तुम | लिए सब कुछ करना चाहता है। और मान लेगा कि यही परमात्मा के नाम से करने लगते हो। परमात्मा की मर्जी है, मुझे जिताना चाहता है। आदमी बड़ा बेईमान है! इसलिए दुनिया में इतने युद्ध होते हैं। पिछले महायुद्ध में एक जर्मन और एक अंग्रेज जनरल की बात दोनों पक्ष कहते हैं कि परमात्मा का काम कर रहे हैं। दोनों पक्ष हुई। जर्मन हारने शुरू हो गये थे और उस जनरल ने अंग्रेज कहते हैं, हम धर्म-युद्ध कर रहे हैं। अब यह तो हम चूंकि जनरल को पूछा कि तुम जीतना शुरू हो गये हो, कैसे जीते चले महाभारत हुआ और पांडव जीते, इसलिए जो इतिहास हमारे जा रहे हो, राज क्या है? उस जनरल ने कहा, 'राज साफ है। पास है वह एकतरफा है। | हम रोज युद्ध करने के पहले परमात्मा की प्रार्थना करते हैं। सोचो थोड़ा, कौरव जीते होते तो क्या यह इतिहास यही परमात्मा हमारे साथ है।' होता? कौरव जीते होते तो उन्होंने सिद्ध किया होता कि पांडव उस जर्मन ने कहा, यह तो कोई बात जंचती नहीं, क्योंकि हारे क्यों, क्योंकि वे अधार्मिक थे। और कौरव अगर जीते होते प्रार्थना तो हम भी करते हैं युद्ध के पहले, और हम भी मानते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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