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________________ UE धर्म की मल भित्तिः अभय तुम्हारी सुरक्षा करेगा। वह तादात्म्य बन गया। कि सुखी तो तब होंगे जब सुख की कोई घटना घटेगी। और रामकृष्ण ने सभी धर्मों की साधना की। ऐसा प्रयोग उनके दुखी तो रहेंगे ही, क्योंकि जब तक सुख की घटना नहीं घटती तो पहले कभी किसी ने किया न था। उस साधना के दौर में उन्होंने क्या कर सकते हैं! कोई लाटरी कभी-कभी खुलेगी, तब सुखी छह महीने तक बंगाल में प्रचलित कृष्ण-मार्गियों के एक संप्रदाय हो लेंगे। और मैं मानता हूं कि वह तब भी सुखी न हो पायेंगे, की साधना की-राधा संप्रदाय। उस संप्रदाय का साधक | क्योंकि दुख की आदत इतनी मजबूत हो जाती है, दुख इतना मानकर चलता है कि मैं कृष्ण की गोपी हं, राधा हूं। वह स्त्रियों सघनीभूत हो जाता है कि अगर सुख की कोई घटना भी घटे तो के कपड़े पहनता है, कृष्ण की मूर्ति को लेकर रात सोता है। छह तुम जानते ही नहीं कि अब सुखी कैसे हों! जो कभी नाचा ही महीने तक रामकृष्ण ऐसा साधना करते थे। बड़ी हैरानी की नहीं है, नाचने का क्षण भी आ जाये तो कैसे नाचेगा? हाथ-पैर घटना घटी-और वह घटना यह थी, उनके स्तन बड़े हो गये, साथ न देंगे। स्त्रैण हो गये। रामकृष्ण जैसा व्यक्ति जब तादात्म्य करेगा तो वह महावीर कहते हैं, शुद्धि का अर्थ है : जहां कोई तादात्म्य नहीं; कोई छोटा-मोटा तादात्म्य नहीं है। उन्होंने पूरे प्राण इसमें उंडेल न सुख का, न दुख का; न देह का, न मन का। जहां शुद्ध दिये। उनकी आवाज स्त्रैण हो गई। वह चलने स्त्रियों की तरह जाननेवाला बचा है और कोई चीज छाया नहीं डालती, उस लगे, लेकिन यहीं तक मामला रुकता तो ठीक था; उन्हें मासिक छाया-शून्य जगत में आत्मा शुद्ध होती है। धर्म शुरू हो गया, जो कि एक आश्चर्यजनक घटना है। इतना 'आत्मा ज्ञायक-रूप में ही ज्ञात है...' तादात्म्य! फिर साधना के बाहर भी आ गये तो भी छह-आठ आत्मा का ज्ञेय की तरह जानने का कोई उपाय नहीं है। महीने लगे उनका स्त्री-रूप विदा होने में। जाननेवाले की तरह ही आत्मा जानी जाती है. जानी गई वस्त की सम्मोहन का शास्त्र बड़ी बातें खोलने के किनारे पहुंच रहा है | तरह नहीं। और किसी न किसी दिन सम्मोहन-शास्त्र जब अपने पूरे ...और वह शुद्ध अर्थ में ज्ञायक ही है। उसमें ज्ञेयकृत अध्ययन प्रगट कर चुकेगा तो धर्म की बहुत-सी बातें बड़ी अशुद्धता नहीं है।' सुगमता से समझ में आ सकेंगी। इसे थोड़ा हम समझें। तुमने कभी खयाल किया? जब भी तुम जो भी हो, यह तुम्हारा ही भाव है। अगर तुम अपने को कोई आदमी तुम्हें गौर से देखता है तो तुम्हें थोड़ी-सी बेचैनी और दुखी मान रहे हो तो तुम दुखी होते चले जाओगे। अगर तुम अड़चन होती है। तो समाज में एक स्वीकृत नियम है : तीन क्षण अपने को सुखी मान सकते हो, तुम सुखी होते चले जाओगे। से ज्यादा कोई आदमी किसी को गौर से नहीं देखता। देखे तो मुसलमान फकीर बायजीद से किसी ने पूछा कि तुम इतने उसको हम लुच्चा कहते हैं। लुच्चे का अर्थ है: गौर से प्रसन्न, सदा प्रसन्न-मामला क्या है? उसने कहा कि मैंने एक देखनेवाला। लुच्चा बनता है लोचन से। आंखें अड़ा दीं किसी नियम बना लिया है कि सुबह जब मैं उठता हूं तो मेरे सामने दो पर तो लुच्चा। तीन सैकिंड तक ठीक है। उतना स्वीकृत है। राह विकल्प होते हैं कि आज दिन प्रसन्न होना कि नहीं प्रसन्न होना; चलते आदमी भी एक, एक क्षणभर को दूसरे को देख लेते हैं। आज दिन सुख में बिताना कि दुख में बिताना। और मैं अकसर तो ठीक है। लेकिन लौट-लौटकर देखने लगे, खड़ा ही हो जाये हमेशा ही सुख का ही विकल्प चुनता हूं। क्यों चुनूं दुख का और देखने लगे, आंखें गड़ा ले...। तो तुमने कभी खयाल विकल्प? सार क्या है? इसलिए मैं प्रसन्न हूं। किया, कोई आदमी अगर तुम्हें आंखें गड़ाकर देखे तो तुम्हें तुम जरा करके देखना। सुबह उठकर पहला निर्णय यही करना बेचैनी होती है। यहां तक कि अगर कोई आदमी तुम्हारे पीछे कि आज दिन प्रसन्न ही रहना है। और तुम अचानक पाओगे खड़ा हो और पीछे से भी आंखें गड़ाकर तुम्हें देखे तो भी तुम्हें प्रसन्नता की बहुत-सी घटनाएं घटने लगीं। वह वैसे भी घटतीं, बेचैनी होगी; हालांकि तुम उसे देख नहीं रहे, लेकिन तुम्हें पता लेकिन तुमने अगर दुखी होने का निर्णय किया था...जैसा चल जायेगा कि वह आंखें गड़ाये है। निन्यानबे लोग किये बैठे हैं। निन्यानबे प्रतिशत लोग सोचते हैं | तुम इसका प्रयोग करके देखना ! ट्रेन में, बस में किसी के पीछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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