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________________ ATTA जिन सूत्र भागः1 विपरीतता में भी कहीं कोई तालमेल होगा। उनकी विपरीतता के घूघर होंगे, न गीत होगा। महावीर के वक्तव्य बिलकुल बीच भी कोई सेतु होगा—होना ही चाहिए। इससे अन्यथा की वैज्ञानिक होंगे, सूत्रबद्ध होंगे। जितना संक्षिप्त हो सकता है, कोई सुविधा नहीं है। उतना संक्षिप्त होगा। और इन दोनों के वक्तव्य की व्यवस्था लेकिन तुम्हारा मन तो जैसे और संसार में चीजों के बाबत अलग-अलग होगी, इससे तुम चिंता में पड़ जाओगे। विचार करता है, तुलना करता है-कौन अच्छा, कौन बुरा, लेकिन तुमसे मैं एक बात कह देता हूं: तुम तब तक निर्णय मत कौन सुंदर, कौन असुंदर, कौन ज्ञानी, कौन अज्ञानी—इन्हीं लेना जब तक तुम न जान लो।। मूल्य-मापदंडों को लेकर तुम उस परम लोक में भी खड़े हो जाते फिर तुम पूछोगे, 'हम करें क्या? जानें कहां से?' हो। तो वहां भी कौन बड़ा, कौन छोटा, कौन आगे, कौन पीछे, मैं कहता हूं, किसी को भी चुन लो। श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ का सवाल किसने ज्यादा जाना, किसने कम जाना, किसका जानना ठीक, नहीं है। जो तुम्हें मौजू पड़ जाये, जो तुम्हें रास पड़ जाये, जिससे किसका गैर-ठीक-इस चिंतना में पड़ जाते हो। और इस सब तुम्हारा मेल बैठ जाये—वही तुम्हारे लिए श्रेष्ठ है। नहीं तो तुम चिंतना के भीतर एक बात तुम कभी सोचते ही नहीं कि मैंने अभी मुश्किल में पड़ जाओगे। अगर तुम यह सोचने लगे कि तय ही कुछ भी देखा नहीं है। तो जिन दो देखनेवालों ने कुछ कहा है, मैं नहीं करना है कि कौन श्रेष्ठ है, तो फिर हम चलें किसके साथ! न देखनेवाला, अंधा, कैसे तय करूं कि कौन ठीक कहता | जब तुम तय करना चाहते हो कौन श्रेष्ठ है, तो कौन श्रेष्ठ है, यह होगा? अगर तय ही करना हो तो देखकर ही तय तय करने के लिए मत करना। तुम तो इतना ही तय करना, मेरे करना-आंख खोलकर रोशनी से भरकर। तब तुम हंसोगे। लिए कौन! 'मेरे' का खयाल रखना। वह वक्तव्य तुम्हारी ऐसा ही समझो कि इस बगीचे में एक कवि आ जाये और सापेक्षता में है। नहीं अगर तुम तय न कर पाये तो तुम मुश्किल लौटकर तुम उससे पूछो, क्या देखा, और वह एक गीत में पड़ोगेगुनगुनाये। अब सभी तो गीत न गुनगुना सकेंगे। दूसरा भी कोई काबे से दैर, दैर से काबा इस बगीचे में आये; उसको भी यही फूल मिलेंगे, यही वृक्ष होंगे, मार डालेगी राह की गर्दिश। यही हवाएं होंगी, यही पक्षियों के गीत होंगे-लेकिन वह गीत फिर मंदिर से मस्जिद, मस्जिद से मंदिर-राह की धूल ही मार गुनगुनाना नहीं जानता। वह भी जाकर कहेगा बाहर, क्या डालेगी। कुछ तो तय करना ही पड़ेगा-मंदिर या मस्जिद। देखा। लेकिन स्वभावतः कवि के वक्तव्य में और उसके वक्तव्य कहीं तो बैठकर प्रार्थना करनी है! कहीं तो पूजा करनी है! में भेद हो जायेगा। कोई तीसरा आदमी, लकड़हारा आ जाये, तो तो अगर तुम ऐसे डावांडोल होने लगे तो मुश्किल हो जायेगा। वह यहां इस बगीचे में सिर्फ लकड़ियां देखेगा-कौन-कौन-सी अगर तुमने यह सवाल इसलिए पूछा है कि मेरे लिए कौन ठीक लकड़ियां काटी जा सकती हैं। कौन आयेगा, कैसी भाषा लेकर पड़ेगा, तब तो ठीक पूछा है। अगर महावीर और कृष्ण के बीच आयेगा-इस पर निर्भर करेगा। फिर जब वह जाकर अपना निर्णय करने को पूछा है, तो बिलकुल गलत पूछा है। हां, तुम्हारे वक्तव्य देगा तो तुम यह मत सोच लेना कि ये अलग-अलग लिए कोई एक ठीक पड़ेगा। वक्तव्य, अलग-अलग बगीचों के संबंध में हैं। ये वक्तव्य जिनको जीवन में संकल्प में रस है और जिनको समर्पण करना बिलकुल अलग-अलग होंगे, फिर भी ये एक ही बगीचे के असंभव है, उनके लिए महावीर ठीक हैं। जिनके लिए समर्पण संबंध में हैं। सुगम है और संकल्प कठिन है, उनके लिए कृष्ण ठीक हैं। सत्य एक है; जाननेवालों ने उसे बहुत ढंग से कहा है। क्योंकि कृष्ण कहते हैं, मामेकं शरणं व्रजः। सब छोड़! सर्व धर्मान् जाननेवाला अपने ही ढंग से कहेगा। अब महावीर और मीरा के परित्यज्य; छोड़-छाड़ सब धर्म! मेरी शरण आ जा! यही धर्म | वक्तव्य में मेल नहीं हो सकता। मीरा है मदमस्त। मीरा है स्त्री, है, यही परम धर्म है। महावीर हैं पुरुष। मीरा कहेगी नाचकर, गुनगुनाकर। उसके पग महावीर कहते हैं, शरण भूलकर किसी की मत जाना। शरण के घूघर बजेंगे। उस ढंग से कहेगी। महावीर न नाचेंगे, न पग में गये कि उलझे। शरण गये कि दास बने। शरण से कहीं मोक्ष 396 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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