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________________ आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया। ऐसी जलाओ ! उस जलने के बाद ही तुम्हारा कुंदन-रूप, तुम्हारा स्वर्ण शुद्ध होकर बाहर आयेगा । तलाशे - यार में क्या ढूंढ़िए किसी का साथ हमारा साया हमें नागबार राह में है। और यह जो महावीर की अंतर्यात्रा है, इसमें कोई संगी-साथी न मिलेगा। यहां तो अपनी छाया भी भारी पड़ती है । यह अकेले का रास्ता है। यह एकाकी का रास्ता है। यह एकांत ! तो धीरे-धीरे हटो भीड़ से ! धीरे-धीरे हटो दूसरे से। धीरे-धीरे दूसरे का खयाल, दूसरे की धारणा छोड़ो। धीरे-धीरे द्वंद्वों को हटाओ । तलाशे - यार में क्या ढूंढ़िए किसी का साथ । हमारा साया हमें नागबार राह में है। एक ऐसी घड़ी आती है कि तुम्हारी छाया भी तुम्हारे साथ नहीं होती, क्योंकि छाया भी शरीर की बनती है, मन की बनती है, विचार की बनती है। छाया भी स्थूल की बनती है। आत्मा कोई छाया नहीं बनती। अभी तो हालत ऐसी है कि आत्मा खो गई है, छाया ही रही है; फिर ऐसी हालत आती है, आत्मा बचती है, छाया तक खो जाती है। महावीर को सुनकर, समझकर तुम कुछ कर पाओगे, ऐसा मैं नहीं सोचता । जब तक कि तुम अपने जीवन में भी महावीर जो कह रहे हैं, उसके आधार न खोज लोगे; जब तुम्हारे जीवन में भी तुम्हें ऐसा न दिखाई पड़ने लगेगा कि महावीर ठीक कहते हैं - तब तक तुमने अगर ऊपर-ऊपर से उनकी बातों का आरोपण भी कर लिया, जैसा कि जैन कर रहे हैं, तो कुछ लाभ न होगा। उससे तुम और उलझन में पड़ जाओगे। उससे जटिलता बढ़ेगी, ग्रंथियां और बढ़ जायेंगी। मेरे देखे कभी - कभी ऐसा हो जाता है कि सामान्य गृहस्थ कहीं ज्यादा निर्ग्रथ मालूम होता है बजाय मुनि के । उसकी और ज्यादा ग्रंथियां हो गई होती हैं। वह और तिरछा हो गया। उसने और नियमों के जाल खड़े कर लिये। नैसर्गिक तो नहीं हुआ है। उसने और छोटी-छोटी बातों की इतनी व्यवस्था कर ली कि अब वो व्यवस्था ही जुटाने में उसका समय नष्ट होता है। चौबीस घंटे इसी में व्यतीत होते हैं। होती नहीं कबूल दुआ तर्के-इश्क की दिल चाहता न हो तो जबां में असर कहां। Jain Education International आत्मा परम आधार है और ध्यान रखना, अगर तुम्हारी अंतरात्मा में ही चाह नउठी हो तो ऐसा कोई व्रत - नियम ऊपर से मत ले लेना। नहीं तो व्रत- नियम तुम्हें और झूठा बनायेगा । लोग व्रत और नियम ले ते हैं भीड़ के लिए। मंदिर में जाते हैं, इतने लोग देख रहे हैं : लोग व्रत ले लेते हैं, कि ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हैं । यह ब्रह्मचर्य का व्रत उनके जीवन से नहीं आ रहा है। ये इतने लोग प्रशंसा करेंगे, ताली बजायेंगे और कहेंगे कि इस व्यक्ति ने ब्रह्मचर्य का व्रत धारण कर लिया है और हम अभागे, अभी तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण न कर पाये ! इस कारण ब्रह्मचर्य का व्रत मत ले लेना, नहीं तो पछताओगे । होती नहीं कबूल दुआ तर्के - इश्क की ! - अगर तुम प्रार्थना कर रहे हो कि हे प्रभु! मुझे राग से, मोह से ऊपर उठा... लेकिन यह कबूल न होगी, यह प्रार्थना स्वीकार न होगी । दिल चाहता न हो तो जबां में असर कहां ? - और अगर तुम्हारा भीतर का दिल ही यह न चाहता हो तो कहने से क्या होगा ? और अगर भीतर का दिल चाहता हो तो प्रार्थना की जरूरत ही नहीं । तुमने चाहा कि हुआ। लोग ऐसे हैं कि दोनों संसार सम्हाले चले जाते हैं। इसी वजह से आदमी जटिल हो जाता है। शब को मय खूब सीपी, सुबह को तौबा कर ली रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत न ई। रात शराब पी लेते हैं, सुबह पश्चात्ताप कर लेते हैं ! शब को मय खूब सीपी, सुबह को तौबा कर ली रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत न गयी। स्वर्ग भी सम्हाल लिया, संसार भी सम्हाल लिया। ऐसी बेईमानी में मत पड़ना। जिसने दोनों सम्हाले, उसके दोनों गये। जिसने एक को सम्हाला, उसका सब सम्हल जाता है। और वह एक तुम्हारे भीतर छिपा है। वह एक तुम हो। उसे महावीर तुम्हारी अंतरात्मा कहते हैं, तुम्हारा परमात्मा कहते हैं। आज इतना ही। For Private & Personal Use Only 387 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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