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________________ 382 जिन सूत्र भाग: 1 विमुक्त है, निष्काम है और निक्रोध, निर्मान और निर्मद है । ' 'निराग, निर्ग्रथ, निशल्य...।' महावीर के अपने पारिभाषिक शब्द हैं। निर्ग्रथ का अर्थ होता है जहां अब कोई ग्रंथि न रही; कोई एढ़ा टेढ़ापन न रहा; कोई गांठ न रही; जिसको मनोवैज्ञानिक काम्प्लेक्स कहते हैं— ग्रंथि । वैसी कोई ग्रंथि न रही; आदमी सरल हुआ; चेतना पर कोई बाधाएं, अवरोध न रहे; झरना बहने लगा, सब चट्टानें राह से हट गईं। अगर चट्टानें पूरी हट जायें तो झरने का शोर भी बंद हो जाता है। झरने के करण थोड़े ही शोर होता है; शोर तो | चट्टानों के कारण होता है, बीच में पड़े पत्थरों के कारण होता है । सब चट्टानें हट जायें तो झरना एकदम शांत हो जाता है। जीवन-ऊर्जा जब शांत बहने लगती है, कोई ग्रंथि नहीं होती...। अभी तो हमारे पास हजार-हजार ग्रंथियां हैं। अभी तो हम सीधे बह ही नहीं पाते। अभी तो हमारे सारे कदम ऐसे पड़ते हैं जैसे शराबी चलता है— लड़खड़ाते; हर घड़ी गिरने - गिरने को। एक पांव इधर पड़ता है, दूसरा कहीं और पड़ता है। कहीं रखना चाहते हैं, कहीं पड़ जाता है। अभी तो हम कहते कुछ हैं, मतलब कुछ होता है; करना कुछ चाहते थे, कर कुछ जाते हैं। अभी जीवन एक सरल घटना नहीं है। और अभी हम इस सरलता को पा भी न सकेंगे; क्योंकि हम तो अपनी जटिलता को ही सरलता समझे बैठे हैं। हम तो अपनी जटिलता के लिए बड़े तर्क खोजते हैं। कल रात मैं देख रहा था एक जैन ग्रंथ । लोगों ने पत्थर मारे, लकड़ियों से पीटा, जंगली जानवर छोड़े, कुत्ते, खूंखार कुत्ते छोड़े, इतने से भी लोगों को न लगा तो लोग उठा उठाकर उनके शरीर के ऊपर फेंकते थे, वे नीचे गिरते थे - चट्टानों पर लोग बहुत नाराज थे। इस नाराजगी में कारण था। कारण यह था कि हम हैं जटिल लोग। जब भी कोई सरल आदमी पैदा होता है, उसे हम बर्दाश्त नहीं कर पाते। वह बड़े गहरे में हमें अपमानजनक मालूम पड़ता है। उसकी मौजूदगी हमें चुभती है, शूल की तरह चुभती है। बेईमान चाहते हैं, बाकी भी लोग बेईमान हों। अगर ईमानदार आदमी बेईमानों के बीच में हो तो बेईमान उसे बर्दाश्त न करेंगे। उनके लिए खतरा है वह ईमानदार आदमी; क्योंकि उसकी ईमानदारी के कारण उनकी बेईमानी साफ हुई जाती है, उघड़ी जाती है। चोर चोर को पसंद करते हैं। झूठ बोलनेवाले झूठ बोलनेवाले को पसंद करते हैं। जैसे लोग होते हैं, वैसों को पसंद करते हैं। महावीर जैसा निर्ग्रथ आदमी, जिसकी कोई ग्रंथि नहीं, कोई उलझाव नहीं, जैसा है सीधा-सरल नग्न खड़ा हो गया- लोगों को बड़ी कठिनाई हो गई। लोग इसे बर्दाश्त न कर सके। लोग उनको एक गांव से दूसरे गांव में खदेड़ने लगे। लेकिन यह आदमी भी खूब था । इसने सब स्वीकार कर लिया। इसने कहा कि यह भी हो रहा है तो होने दो। तुम करते हो तो तुम कुछ और शब्द देते हो; दूसरा करता इसने कुछ बदलने की कोशिश न की । जिस गांव से इसे भगाया अगर तुम्हें क्रोध आ जाता है तो तुम सीधा-सीधा थोड़े ही कहते हो कि मैं क्रोधी आदमी हूं। तुम कहते हो, क्रोध की जरूरत थी; अगर क्रोध न करेंगे तो यह बेटा सुधरेगा कैसे ? अब तुम ग्रंथि को तो स्वीकार कर ही नहीं रहे हो कि तुम क्रोधी हो । तुम यह कह रहे हो कि यह तो बेटे को सुधारने के लिए करना पड़ रहा है। तुम बहाने में टाले दे रहे हो, तो यह ग्रंथि तो मजबूत होती चली जायेगी। यह ग्रंथि तो घनी होती चली जायेगी। तो दूसरा करता है, तो तुम कहते हो, अहंकारी; तुम करते हो कहते हो, स्वाभिमान है। अगर तुम्हें कोई नई सूझ आती है तो तुम कहते हो, मौलिक चिंतन; अगर दूसरे को आती है, तुम कहते हो, झक्की है, दिमाग थोड़ा ढीला है, इस तरह की बातें इसके दिमाग में उठती हैं।' Jain Education International है...। अगर एक ईसाई हिंदू हो जाये तो ईसाई कहते हैं, गद्दार । अगर एक हिंदू ईसाई हो जाये, तो वे कहते हैं, सुमार्ग पर आ गया। वह हिंदू की बात है। हिंदू अगर ईसाई हो जाये तो वो कहते हैं, गद्दार । अगर ईसाई हिंदू हो जाये तो वे कहते हैं, सदबुद्धि का जन्म हुआ । ग्रंथियों को हम छिपाते हैं। तो फिर जिसको हम छिपाते हैं, वह बढ़ेगा। ग्रंथियों को उघाड़ना पड़ेगा। इसलिए तो महावीर नग्न हुए। वह 'नग्न' बड़ा प्रतीकात्मक है । उन्होंने कहा, जैसा हूं, जो हूं, अब कोई वस्त्र न रखूंगा, आवरण न रखूंगा, अब सब उघाड़े देता हूं। अब कोई ग्रंथि जैसी भी है, बुरी है, भली है, लोग स्वीकार करें, न स्वीकार करें... । लोगों ने किस-किस तरह का व्यवहार महावीर से किया, हैरानी होती है ! | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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