SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । उठो, जागो-सुबह करीब है परिपूर्ण हो। सिर्फ एक सपने ने तुम्हें घेर लिया है। एक बादल आनी चाहिए। और खेल में 'क्यों' का तो सवाल मत उठाना। आ गया है। और सूरज को ढांक लिया है। क्योंकि 'क्यों' दुकानदार का शब्द है, खिलाड़ी का नहीं। अब यह धूप-छांव का खेल बड़ा मधुर है। इसलिए हिंदुओं की दो आदमी फटबाल खेल रहे हैं, तो तम पछते हो, 'यह क्या परिभाषा बड़ी अनूठी है। वे कहते हैं, लीला है। तुम इसको बड़ा फायदा? इधर से गेंद उधर मारी, उधर से इधर मारी; अरे एक काम समझ रहे हो कि खो दिया, अब क्या फायदा! तुमने कभी जगह रखो, बैठ जाओ शांति से।' आदमी बालीबाल खेल रहे बचपन में छिया-छी नहीं खेली? दो बच्चे छिया-छी खेलते हैं, | हैं, तुमने देखा कैसा पागलपन करते हैं। बीच में एक जाली बांध दोनों आंख बंद करके खड़े हो जाते हैं, छिप जाते हैं। पता है कि रखी है, इधर से फेंक रहे हैं उधर; उधर से फेंक रहे हैं इधर। और यहीं छिपे हैं, इसी कमरे में छिपे हैं। कई बार चक्कर लगाते हैं, | इनकी तो छोड़ो ही, कई भीड़ लगाकर खड़े हैं देखने के लिए। खोजते हैं कहां छिपा है, बड़ा शोरगुल मचाते हैं और उन्हें इतना-सा काम हो रहा है, गेंद इधर से उधर फेंकी जा रही यह पक्का पता है कहां छिपा है,क्योंकि घर ही कौन बड़ा है; वही । तो दो मशीनें लगाकर भी कर सकते हो। इसमें सार क्या है? कमरे में कहीं छिपा है, बिस्तर के नीचे चला गया है कि दीवाल अगर दुकानदार है तो पूछेगा, 'क्यों? इससे मिलेगा क्या?' की ओट में खड़ा हो गया है। सब पता है। लेकिन फिर खेल का लेकिन तब चूक गये बात। मिलने का सवाल नहीं है, खेल में ही मजा चला जाता है, जब सब पता ही है तो। तो थोड़ा दौड़ते हैं, रस है। यह जो खेल की उमंम है, इसमें ही रस है। धामते हैं, खोजते हैं, इधर-उधर झांकते हैं, फिर पकड़ लेते हैं। | तिनके की तरह सैले-हवादिस लिये फिरा हिंदू कहते हैं, यह जगत छिया-छी है, लीला है। तुम्हीं अपने | तूफान लेकर आये थे हम जिंदगी के साथ। को खोज रहे हो, तुम्हीं अपने को छिपा रहे हो। तुम पूछोगे, तूफान हमारे साथ आया है। जिंदगी तूफान है। इसमें बड़ी 'क्यों? क्यों खेलें छिया-छी?' मत खेलो। सारा धर्म वही तो लहरें उठती हैं, बड़ी आंधियां आती हैं। फिर सन्नाटा भी छा जाता कला सिखाता है तुम्हें कि जिनको छिया-छी नहीं खेलनी, वे है। सन्नाटे के लिए आंधी जरूरी है; आंधी के लिए सन्नाटा ध्यान करें, वे छिया-छी के बाहर हो जाते हैं। ध्यान का मतलब जरूरी है-दोनों परिपूरक हैं। यहां मिलना भी है, खोना भी है; कुल इतना ही है कि अगर थक गये, अब तुम्हें खेलना नहीं है, तो पाना भी है, बिछुड़ना भी है; याद भी है, विस्मृति भी है। ये दोनों घोषणा कर दो कि अब हम खेल के बाहर होते हैं, अब हम जरा पहलू हैं, दो पंख हैं। इनसे ही जीवन के आकाश में उड़ने का विश्राम करेंगे, या अब हमें भूख लगी है, अब हम घर जाते हैं। उपाय है। जिनको अभी खेलने में रस आ रहा है, वे खेलें। जिनको खेलने ये हादसे कि जो इक-इक कदम पे हाइल हैं में अब थकान आने लगी है, वे घर लौट जायें। खुद एक दिन तेरे कदमों का आसरा लेंगे। परमात्मा की खोज का मतलब इतना ही है कि अब बहुत हो जमाना ची-ब-जबीं है तो क्या बात है 'रविश' गई छिया-छी; अब थक गये। बस इतना ही स्मरण काफी है कि हम इस अताब पे कुछ और मुस्कुरा लेंगे। थक गये—विश्राम। जैसे दिनभर आदमी मेहनत करता है, रात ये हादसे, ये घटनायें जो हर कदम पर घट रही हैं, ये पत्थर जो सो जाता है। अब तुम यह तो नहीं कहते रात खड़े होकर कि अब हर कदम पर अड़े हुए हैं, खुद एक दिन तेरे कदमों का आसरा क्यों सोयें, जब दिनभर मेहनत की! तुम्हारी मर्जी, न सोना हो तो | लेंगे। घबड़ाओ मत; ये पत्थर नहीं हैं, ये सीढ़ियां बन जानेवाली न सोओ, खड़े रहो। रातभर सोये रहे, अब सुबह तुम्हें कोई हैं। यह भटकाव ही उसके पहुंचने का रास्ता बन जाने वाला है। उठाने लगे तो तुम यह तो नहीं कहते कि नहीं उठेंगे अब; रातभर | यह दूर हो जाना ही पास आने का उपाय है। सोये रहे, अब क्यों उठे? नहीं सोने के बाद जागना है; जागने ये हादसे कि जो इक-इक कदम पे हाइल हैं के बाद सोना है। दिन के बाद रात है, रात के बाद दिन है। ये जो अड़े हैं पत्थर, और घटनाएं, और जीवन के उलझाव, ध्यान, संसार, परमात्मा, अरूप और उसके रूप, इन दोनों के और बाजार और दुकान और तृष्णा और मोह और हजार-हजार बीच यात्रा है। यह खेल बड़ा मधुर है। बस खेलने की कला बातें हैं...खुद एक दिन तेरे कदमों का आसरा लेंगे। घबड़ाओ 357 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy