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________________ जिन सत्र भाग शा है। कोई ईसाई भी अगर वैज्ञानिक सत्य खोजता है तो उस सत्य | जाओ, फिर कोई बात नहीं। खाट से, अब खाट से बचोगे तब को हम ईसाई तो नहीं कहते। आइंस्टीन ने रिलेटिविटी का तो फिर जीना ही मुश्किल हो जायेगा। सिद्धांत खोजा, सापेक्षता का सिद्धांत खोजा। इसको हम ईसाई | ईरान में कहावत है, जमीन पर सोनेवाला खाट से कभी नहीं तो नहीं कहते, यहूदी तो नहीं कहते, मुसलमान तो नहीं कहते। गिरता। बिलकुल ठीक है। जब जमीन पर ही सो रहे हैं तो खाट मुसलमान खोजे तो भी वह विज्ञान, हिंदू खोजे तो भी विज्ञान, से गिरोगे कैसे? लेकिन ऐसे कहां तक बचते रहोगे? फिर यहूदी खोजे तो भी विज्ञान। तो धर्म के संबंध में भी, कोई भी | जीओगे कैसे? फिर यह जीना तो एक पलायन हो जायेगा। यहां खोजे, वह उस एक ही परम सत्य की तरफ इशारे हैं। अंगुलियों | तो हर चीज में खतरा है। यहां प्रेम करो, खतरा है। यहां घर से को छोड़ो अब, अब चांद को देखो! | बाहर निकलो, खतरा है। यहां सांस लो, खतरा है। इन्फैक्शन। मेरी चेष्टा है कि तुम्हें अंगुलियों से छड़ाऊं और चांद को | यहां पानी पीयो, खतरा है। यहां भोजन करो, खतरा है। यहां दिखाऊं, क्योंकि सभी अंगुलियां उसी चांद की तरफ बता रही | खतरा ही खतरा है। यहां तो मरे हए ही खतरे के बाहर हैं। हैं। हां, किसी अंगुली पर हीरे जड़ा हुआ शृंगार है; कोई अंगुली | देखा तुमने, मरा हुआ आदमी बिलकुल खतरे के बाहर है। काली-कलूटी है; कोई दुर्बल है; कोई बड़ी सुंदर है, युवा है | पहली तो बात, अब मर नहीं सकता। कोई बीमारी नहीं लग कोई बूढ़ी है; कोई अति प्राचीन है; कोई अभी छोटे बच्चे की सकती, छूत की बीमारी नहीं लग सकती। दूसरे इससे बचते हैं, तरह है, नये-नये पल्लव की भांति-मगर ये सारी अंगुलियां | यह किसी से नहीं बचता। तो जिन लोगों ने भी खतरे, खतरे, जिस चांद की तरफ उठी हैं, वह एक है। हमने अंगुलियों पर | खतरे को सोचा है, हिसाब रखा है, वे धीरे-धीरे मर गये। इस अब तक बहुत ध्यान दिया, अब अंगुलियों को छोड़ें और चांद | देश के मुर्दा हो जाने में बड़ा हाथ है-इस धारणा का, कि इसमें पर ध्यान दें। इशारा समझें। खतरा है, इसमें खतरा है। तो सिकुड़ते जाओ, सिकुड़ते तो मैं तो प्रेम शब्द का उपयोग जारी रखेंगा। खतरा तो है, जाओ-जाओगे कहां? लेकिन खतरे से क्या घबड़ाना? खतरे से घबड़ा-घबड़ाकर ही मैंने सुना है, पुराने गांव की एक कहानी है कि गांव का जो तो आदमी नपुंसक हो गया है। हर जगह खतरे से बच रहे हैं। मालगुजार था, उससे मिलने एक ब्राह्मण आया। तो जब ब्राह्मण धीरे-धीरे तुम पाओगे, जिंदगी से भी बच गये; क्योंकि जिंदगी आये तो मालगुजार को नीचे बैठना चाहिए। मालगुजार अपने स्वयं खतरा है। जो प्रेम से बचेगा, आज नहीं कल जिंदगी से भी तखत पर बैठा था। ब्राह्मण आया तो मालगजार, वह नीचे बचेगा। जिंदगी में भी खतरा है। मौत तो जिंदगी में ही घटेगी। ब्राह्मण बैठने लगा। मालगुजार ने कहा, 'यह ठीक नहीं है, कभी तुमने सोचा...? नियम के विपरीत है। तुम ऊपर बैठो, मैं नीचे बैठता हूं।' उस मेरी बूढ़ी नानी थी। वह सदा डरती थी कि मैं हवाई जहाज में न ब्राह्मण ने कहा, 'लेकिन इसमें बड़ी झंझट आयेगी।' जिद्दी था जाऊं। जब भी मैं घर से निकलता, तब वह कहती, ‘एक बात मालगुजार भी। उस ब्राह्मण ने कहा, 'ऐसा कहां तक करोगे? खयाल रखना-हवाई जहाज में कभी नहीं।' | क्योंकि अगर मैं नीचे बैठेंगा. तम क्या करोगे फिर?' उसने मैंने उसको कहा कि तू डरती क्यों है हवाई जहाज से? उसने | | कहा, 'मैं गड्डा खोदकर उसमें नीचे बैठ जाऊंगा।' उसने कहा, कहा कि अखबार में खबर आती है कि गिर गया, लोग मर गये। | 'अगर मैं गड्ढे में आ गया, फिर? उसने कहा, 'मैं और गड्डा मैंने कहा, 'तुझे पता है, निन्यानबे प्रतिशत लोग तो खाट पर नीचे खोद लूंगा।' उस ब्राह्मण ने कहा, 'मैंने अगर और गड्डा मरते हैं? तो क्या खाट पर सोना बंद कर दूं, बोल?' उसने खोद लिया तो?' उस मालगुजार ने कहा, 'फिर गड्डे को पूर के कहा, यह बात तो ठीक है। उसको भी जंची बात। उसने कहा, मैं घर चला जाऊंगा। फिर क्या करूंगा? तुम मेरे पीछे ही लगे यह बात तो ठीक है। मरते तो खाट पर ही हैं निन्यानबे प्रतिशत रहोगे, तो तुमको गड्ढे में पूर के, मैं घर चला जाऊंगा।' लोग। तो अगर दुर्घटना कोई बचानी है तो खाट बचानी है। ऐसे कहां तक भागते रहोगे? कहीं तो भय को गड्ढे में दबाना कभी-कभार कोई मरता है हवाई जहाज में। उसने कहा, फिर पड़ेगा। कहीं तो उसको पूरना पड़ेगा। 352 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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