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________________ RABELLER HINTUN मनुष्यो, सतत जाग्रत रहो म भी अपना स्मरण आना शुरू होगा। इसमें कार्य-कारण का लगी। कुछ पक्षियों के कंठों में कोई प्यास जग उठती है, कोई सिद्धांत नहीं है। ऐसा नहीं है कि महावीर की मौजूदगी के कारण गीत अपने से फूटने लगता है! तुम जागते हो। जागरण तो तुम्हारा स्वभाव है; महावीर की सूरज की मौजूदगी...ऐसी तीर्थंकर की मौजूदगी; ऐसे अवतार मौजूदगी के कारण भूला हुआ, बिसरा हआ याद आ जाता है। की मौजूदगी, मसीहा की मौजूदगी, पैगंबर की मौजूदगी: ऐसे जो होता है, वह तो तुम्हारे भीतर ही होता है, वह महावीर के बिना किसी व्यक्ति की मौजूदगी जिसका दीया जल रहा है अकंपित। भी हो सकता था; लेकिन महावीर की मौजूदगी में सरलता से हो ऐसा क्षण अगर कहीं मिलता हो तो उसे चूक मत जाना। तुम्हारा जायेगा। जैसे एक दीया जला हो और दूसरा दीया जले हुए दीये | मन हजार तरकीबें खोजेगा चूकने की। इसी मन के कारण तो तुम को देखकर इस स्मरण से भर जाये कि मैं भी दीया हूं, मैं भी जल महावीर को भी चूके, बुद्ध को भी चूके, कृष्ण को भी, क्राइस्ट सकता हूं। जैसे एक बीज फूटा हो और दूसरे बीज के भीतर भी को भी। तुम चूकते ही चले गये हो। चूकने की तुम्हारी आदत अकुलाहट पैदा हो जाये कि मैं भी फूट सकता हूं। बन गई है। सब दांव पर लगा देना अगर कभी तुम्हें, कहीं भी इसलिए सत्संग का पूरब में बड़ा मूल्य रहा है। सत्संग | किसी के सान्निध्य में ऐसा लगे की यहां दीया जला है, तब सब कीमिया है, रसायन, अल्केमी। सत्संग का अर्थ है किसी ऐसे दांव पर लगा देना। यह जुआरियों का काम है। यह अंधेरे में आदमी के पास होना, किसी ऐसे आदमी की उपस्थिति में होना, उतरना है। साहस और श्रद्धा! लेकिन दांव पर लगा देना। जो जागा है। तो धीरे-धीरे बिना कुछ किये तुम्हारे भीतर भी कोई | क्यों? क्योंकि अगर खोया तो क्या खोयेगा? तुम्हारे पास नया राग उठने लगेगा। तुम अचानक पाओगे, कोई नींद टूटने कुछ है ही नहीं खोने को। अगर मिल गया तो सब मिल लगी, कोई पर्ते हिलने लगीं। जायेगा। अगर खोया तो कुछ भी खोया नहीं। लेकिन तुम्हारे मरहबा ऐ जज्बए-खुद ऐतबादी मरहबा पास जो है, तुम उसे अभी बहुत कुछ समझते हो। वो हिला तूफां का दिल, किश्ती रवां होने लगी। मैंने सुना है, शिवपुरी के पास एक विराट कवि सम्मेलन का किसी ऐसे व्यक्ति के पास तुम्हारे भीतर पड़ा हुआ आयोजन हो रहा था। कुछ कवि एक कार में बैठकर वहां जा रहे आत्मविश्वास जिसे तुम भूल गये हो, जग आयेगा। शाबाश! | आत्मविश्वास की दृढ़ता, शाबाश! कवियों में से बोला एक, 'भैया! तुम्हारे गांव जा रहे हैं, कवि मरहबा ऐ जज्बए-खुद ऐतबादी मरहबा! सम्मेलन में भाग लेने। हमारे पास धरा क्या है? कुछ कविताएं शाबाश! तुम अपने भीतर ही अनुभव करोगे, कुछ सोया ही सुना सकते हैं। तो सुन लो।' डाकुओं ने उन्हें ग्यारह रुपये जगने लगा। तुम अपनी ही पीठ थप थपाओगे। दिये और कहा, 'महाराज! कविता आप गांव में ही सुनाना और वो हिला तूफां का दिल, किश्ती रवां होने लगी। जरा देर तक सुनाना तो ठीक रहेगा। हमें अभी दुनिया में और भी और जरा-सा तुम्हारे भीतर तूफान हिल जाये कि नाव जो पड़ी काम करने हैं। है जन्मों-जन्मों से किनारे वह रवाना हो जाये, किश्ती चल पड़े। महावीर अगर तुम्हारे द्वार पर आकर तुम्हें गीत भी सुनाने को सत्संग में गुरु कुछ करता नहीं, सिर्फ उसकी मौजूदगी...। राजी हो जायें तो भी तुम कहोगे, ‘महाराज! किसी और को मौजूदगी भी कुछ करती नहीं-मौजूदगी से कुछ होता है। सूरज खोज लो, अभी हमें दुनिया में बहुत और काम करने हैं। ये कुछ एक-एक फूल को पकड़कर खोलता थोड़े ही है; ऊगा ग्यारह रुपये दक्षिणा ले लो हमें छोड़ने की। यह कविता कहीं इधर, फूल खिलने लगे। और सुना देना।' वो हिला तूफां का दिल, किश्ती रवां होने लगी। महावीर के चरणों में तुमने फूल चढ़ाये—वे ग्यारह रुपये हैं कि कुछ सूरज सुबह ऊगकर एक-एक पक्षी के द्वार पर दस्तक तो महाराज! आप शांत रहो। हमें बख्शो । अभी हमें दुनिया में देता नहीं कि गाओ, प्रभात की बेला आ गई! गीत गुनगुनाओ! और बहुत काम पड़े हैं। लेकिन सूरज ऊगा-वो हिला तूफां का दिल, किश्ती रवा होने | लेकिन इस दुनिया में जरा गौर से देखना, क्या काम तुम कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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