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________________ मनुष्यो, सतत जाग्रत रहो कोई पूछ न ले, कहां खरीदी; जब तक कोई साड़ी का पोत न देखे के बीच से अपने गांव पहुंच गई। . और प्रशंसा न कर दे। - तुमने कभी खयाल किया है कि तुम कितने उपाय करते हो कि तुमने वह कहानी तो सुनी होगी। बड़ी पुरानी कहानी है कि एक किसी तरह लोगों का ध्यान आकर्षित हो जाये। अर्थ नहीं है औरत ने अपने घर में आग लगा ली थी और जब लोग आये तब जीवन में तो तुम झूठे अर्थ पैदा करने की कोशिश करते वह हाथ ऊंचे-ऊंचे उठाकर चिल्लाने लगी कि हे परमात्मा! हो-कोई कह दे कि 'तुम बड़े सार्थक हो! तुम जो कर रहे हो नष्ट हो गई, मर गई, लुट गई! तब किसी औरत ने पूछा, 'अरे! वह मूल्यवान है! तुम बड़ा ऊंचा काम कर रहे हो!' तुमसे कोई ये कंगन तो हमने देखे ही नहीं, कब बनवाये?' उसने कहा कि कुछ भी करवा ले सकता है, बस तुमसे यह कहलवा दिया जाये नासमझ, पहले ही पूछ लेती तो घर में आग क्यों लगानी पड़ती! कि तुम कोई बड़ा काम कर रहे हो, बड़ा ऊंचा, बड़ा महत्वपूर्ण! यह गांव भर की राह देखती रही, कंगन बनाये हैं, कोई पूछेगा! इस जगत में बोध के अतिरिक्त और कोई अर्थ नहीं है। और किसी ने न पूछा। जितने अर्थ तुम खोजते हो, उन सब से तुम्हारी बेहोशी घनी होती जब झोपड़े में आग लगी और आग की रोशनी उठी और कंगन है, बढ़ती है, जागरण नहीं आता। चमकने लगे और वह हाथ उठाने का मौका आया कि अब 'जो पुरुष सोते हैं उनके अर्थ नष्ट हो जाते हैं। अतः सतत चिल्ला-चिल्लाकर, हाथ हिला-हिलाकर वह कह सकती जागते रहकर पूर्वार्जित कर्मों को प्रकंपित करो।' पुरानी आदतें पड़ी हैं बहुत, उनको हिलाओ, डुलाओ, ताकि तुम जरा अपने पर गौर करना। हम सभी कंगन दिखाने निकले | उनसे छुटकारा हो सके, वे ढीली हो जायें! बड़ा बहुमूल्य वचन हैं, चाहे घर में आग लगाकर भी दिखाना पड़े। लेकिन ऐसा न हो है: 'अतः सतत जागते रहकर पूर्वार्जित कर्मों को प्रकंपित कि हम ऐसे ही विदा हो जायें, किसी को पता भी न चले कि कब करो।' हिलाओ-जैसे वृक्ष को कोई हिलाये और उसकी जड़ें आये, कब चले गये, कब उठे, कब बैठे, कब जन्मे। इस कंगन उखड़ जायें। अब पानी मत सींचो और! ऐसे ही क्या कम दुख दिखाने को लोग कहते हैं, अरे! कुछ नाम कर जाओ। कहते हैं, | भोगा है। ऐसे ही क्या कम भटके हो। पानी मत सींचो! लेकिन कुछ नाम छोड़ जाओ इतिहास में। तो तैमूरलंग और चंगेज़ और जो हमें जगाता है, वह दुश्मन मालूम पड़ता है, क्योंकि वह नादिरशाह इतिहास में नाम छोड़ जाते हैं, हजारों लोगों को आग हिलाता है। लगवाकर, हजारों लोगों को काटकर। __ आस्पेंस्की ने अपनी किताब 'इन सर्च आफ द मिरेकुलस' कहते हैं, एक वेश्या तैमूर के शिविर में नाचने आयी थी। जब अपने गुरु गुरजिएफ को समर्पित की है, तो उसमें लिखा है: वह रात जाने लगी तो वह डरती थी, क्योंकि रास्ता अंधेरा था। 'गुरजिएफ के लिए-जिसने मेरी नींद को तोड़ दिया।' और कोई दस-बारह मील दूर उसका गांव था। तो तैमूर ने कहा, लेकिन जब कोई तुम्हारी नींद तोड़ता है तो सुखद नहीं मालूम घबड़ा मत। उसने अपने सैनिकों से कहा कि इसके रास्ते में होता। जब कोई तुम्हारी नींद तोड़ता है तो तुम्हें लगता है दुश्मन। जितने गांव पड़ें, आग लगा दो! थोड़े सैनिक भी झिझके कि यह इसलिए जगत में नींद तोड़नेवाले सदा दुश्मन मालूम पड़े। जरा अतिशय मालूम पड़ता है। एक मशाल से ही इसको सुकरात को हमने ऐसे ही जहर नहीं पिला दिया था, और न पहुंचाया जा सकता है! लेकिन तैमूरलंग ने कहा, 'इतिहास याद | जीसस को हमने ऐसे ही सूली पर लटका दिया, न हमने महावीर नहीं रखेगा मशाल से पहुंचाओगे तो। पता रहना चाहिए आने को ऐसे ही पत्थर मारे और कान में खीलें ठोंके। यह अकारण ले हजारों सालों को कि तैमूरलंग की वेश्या थी, कोई साधारण नहीं था। ये लोग नींद तोड़ रहे थे। ये अलार्म की तरह थे। तुम वेश्या न थी। उसके द्वार में, दरबार में नाचने आयी थी। कोई जब मजे से सो रहे थे और सुबह का आखिरी सपना देख रहे थे, आठ-दस छोटे-छोटे गांवों में, जो रास्ते में पड़ते थे, आग लगा | तब ये बीच में आ गये और उन्होंने उपद्रव मचा दिया कि जागो! दी गई। गांव में लोग सो रहे थे, उनको पता भी नहीं था, आधी तुम्हारा भाव तो इन दो पंक्तियों में प्रगट हुआ है। रात–ताकि रास्ता रोशन हो जाये। वेश्या उन जलती हुई लाशों न अजा हो, न सहर हो, न गजर हो शबे-वस्ल 327 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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