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________________ - जिन सूत्र भागः कारण। पैदा होना मजबूरी है। महावीर की कोई स्वेच्छा नहीं है। तो मत करो। इतना ही कह दो कि हमें अभी कोई आकांक्षा नहीं पैदा हुए, क्योंकि पिछले जन्म में जो कर्म-जाल पैदा किया है, | पैदा हुई है। नहीं, लेकिन वह कहना जरा अभद्र मालूम पड़ता वह खींच लाया। और जो चेष्टा उन्होंने की, कोई है। तुम शिष्टाचार को मानते हो, सभ्यता को मानते हो। तुम जगत-कल्याण के लिए नहीं है। क्योंकि महावीर का मानना ही कहते हो, यह कहना जरा, साफ-साफ कहना ठीक नहीं। तुम है कि कोई दूसरा किसी दूसरे का कल्याण नहीं कर सकता। जरा चोरी-छिपे, लुके-लुके कहते हो। तुम ढंग से, सजाकर कल्याण तो सदा आत्म-कल्याण है। कहते हो, शृंगार से कहते हो। तुम कहते हो, जब प्रभु की कृपा तो जब मैं बोला और मैंने यह कहा तो मुनि तो बहुत नाराज होगी, जब आशीर्वाद होगा सदगुरु का...। हुए। बड़ी घबड़ाहट फैल गई। ‘गुणा' यहां मौजूद है, वह उस | मेरे पास लोग आते हैं। मैं उनसे पूछता हूं, कभी बहुत वर्ष से सभा में भी मौजूद थी। उसने बाद में मुझे बताया, कई साल नहीं दिखाई पड़े। वे कहते हैं, आपने बुलाया ही नहीं। कितनी बाद, कि उसने तो 'ईश्वर भाई' को कहा कि अब हम यहां से मजेदार बात कह रहे हैं वे! तो मैंने कहा, अब कैसे आ गये? निकल चलें, यहां कुछ झगड़ा-फसाद होगा। यहां मारपीट मैंने तो अभी भी नहीं बुलाया था। वे कहते हैं, जरा पूने में कुछ होकर रहेगी अब। क्योंकि सभी जैन नाराज हो गए, क्योंकि मैंने धंधे का काम आ गया था। धंधा का जब काम होता है तब वे कहा, महावीर किसी के कल्याण के लिए पैदा नहीं हुए। लेकिन अपने से आते हैं। अब रहा यह कि मैं पूना में हूं तो मेरे पास भी नाराजगी से क्या होता है? तुम्हारे शास्त्र, तम्हारी परी दुष्टि चलो हो आओ। लेकिन मेरे पास आने के लिए जिम्मेवारी मझ अलग है। और उस दृष्टि का अपना मूल्य है। इसलिए उसकी पर ही छोड़ते हैं कि आपने बुलाया ही नहीं। हालांकि वे सोचते शुद्धता को बचाया जाना चाहिए। ऐसे तो सब वर्णसंकर हो होंगे, बड़ी प्रेमपूर्ण बात कह रहे हैं, लेकिन बड़ी बेईमानी की बात जाती हैं बातें। कह रहे हो। आना हो तो तुम आ जाते हो; न आना हो तो कहते महावीर कहते हैं, कल्याण आत्म-कल्याण है। इसलिए हो, जब आप बुलायेंगे। कसूर जैसे मेरा है! तुम जब कहते हो, आशीर्वाद नहीं दे सकते। फिर उस दिन से जो जैन नाराज हुए तो जब प्रभु की कृपा होगी...इसका अर्थ हुआ कि प्रभु की कृपा नाराज ही हैं। क्योंकि उनको लगा कि मैंने उनके महावीर की कुछ नहीं हो रही है। तुम सोचते हो, ऐसा भी हो सकता है कि प्रभु की प्रतिष्ठा छीन ली है। मैं उनके महावीर को ठीक-ठीक प्रतिष्ठा कृपा न होती हो? क्या तुम सोचते हो, प्रभु कुछ अड़चन डाल दिया। मैंने वही कहा जो महावीर कहते। रहा है कि दूसरों पर कृपा बरसा रहा है, तुम पर नहीं कर रहा है ? लेकिन साधारण आदमी साधारण आदमी है। वह खुद नहीं | अगर कोई कृपा जैसी चीज है तो वह सभी पर बरस रही है। करना चाहता। वह चाहता है कि कोई के आशीर्वाद से हो जाये, लेकिन तुम जब लेना चाहोगे तभी ले सकोगे। मुफ्त मिल जाये। धन तो तुम खुद कमाते हो, धर्म तुम आशीर्वाद इसलिए महावीर कहते हैं, यह बात ही छोड़ दो आशीर्वाद से चाहते हो। तुमने बेईमानी परखी? मकान बनाना हो, तुम की। इशारा मैं कर देता हूं, चलना तुम्हें है। और वे कोई खुद बनाते हो; मोक्ष आशीर्वाद से हो जाये! तुम जो करना नहीं | व्यक्तिगत संबंध नहीं बांधते। उनका जो सबसे बड़ा शिष्य था, चाहते, जो तुम कहते हो मुफ्त मिले तो ले लेंगे, उसमें भी सोचने गौतम, वह महावीर के जीते-जी समाधि का अनुभव न कर का समय मांगोगे। अगर सच में ही कोई देने आ जाये कि यह सका, 'केवल ज्ञान' उसे उपलब्ध न हो सका। जिस दिन रहा मोक्ष, लेते हो? तुम कहोगे, अभी इत्ती जल्दी तो मत करो, महावीर की मृत्यु हुई, उस दिन वह गांव के बाहर उपदेश देने थोड़ा सोचने दो, घर जाने दो, पत्नी भी है, बच्चे भी हैं, थोड़ा पूछ गया था, दूसरे गांव। जब वह लौटता था, रास्ते में उसे खबर तो लूं! जो तुम टालना चाहते हो, तुम बड़ी कुशलता से टालते मिली की महावीर ने शरीर छोड़ दिया, उनका महापरिनिर्वाण हो हो। तुम कहते हो, जब होगी प्रभु की कृपा! मगर और चीजों के गया। तो वह रोने लगा। उसने राहगीरों से पूछा कि यह तो हद्द लिए तुम नहीं कहते। और के लिए तुम खूब आपा-धापी करते हो गई, जिनके साथ मैं जीवनभर रहा, आखिरी क्षण में किस हो। तो साफ-साफ कहो न कि अभी चाहिए नहीं। यह बेईमानी दुर्भाग्य के कारण मैं दूसरे गांव चला गया। आखिरी क्षण तो उन्हें 3081 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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