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________________ 1जिन सूत्र भाग: 1MUMBAI कही, लेकिन प्रेम शब्द का उपयोग नहीं किया। प्रेम शब्द का का ठीक-ठीक अर्थ प्रेम है। सूफी जिसे इश्क कहते हैं, उसी को उपयोग न करने के कारण अतीत की भूल तो बचा ली, लेकिन महावीर अहिंसा कहते हैं। जीसस ने कहा है, प्रेम परमात्मा है। भविष्य की भूल हो गयी। तो पीछे जो आये, उन्होंने अहिंसा को उसी को महावीर ने कहा है : सिर्फ निषेध बना लिया। शब्द में निषेध है। सारे शब्द तुगं न मंदराओ, आगासाओ विसालय नत्थि। निषेधात्मक हैं। अचौर्य, अपरिग्रह, अहिंसा, अकाम, । जह तह जयंमि जाणसु, धम्महिंसासमं नत्थि।। अप्रमाद-सारे शब्द निषेधात्मक हैं। तो ऐसा लगा उनको कि 'जैसे जगत में मेरू पर्वत से ऊंचा कोई और पर्वत नहीं, और | महावीर कहते हैं : नहीं, नहीं, नहीं। हां की कोई जगह नहीं है। आकाश से विशाल कोई और आकाश नहीं, वैसे ही अहिंसा के इसी कारण हिंदुओं ने तो महावीर को नास्तिक ही कह दिया; समान कोई धर्म नहीं है।' क्योंकि परमात्मा नहीं और फिर सारा शास्त्र 'नहीं' से भरा है। नहीं, लेकिन उस 'नहीं' के भीतर बड़ी गहरी 'हां' छिपी है। आज इतना ही। 'नहीं' का उपयोग करना पड़ा, क्योंकि लोगों ने 'हां' वाले शब्दों का दुरुपयोग कर लिया था। लेकिन भूल फिर हो गयी। महावीर का कोई कसूर नहीं है। शब्द का उपयोग करना ही पड़ेगा। और आदमी कुछ ऐसा है, तुम जो भी शब्द उसे दो वह उसका ही दुरुपयोग कर लेगा। क्योंकि सुनते तुम वही हो जो तुम सुन सकते हो। तो महावीर के पीछे निषेधात्मक लोगों की कतार लग गई। इसलिए तो महावीर का धर्म फैल नहीं सका। कहीं निषेध के आधार पर कोई चीज फैलती है? महावीर का धर्म सिकड़कर रह गया। 'नहीं-नहीं' पर कोई जिंदगी बनती है? 'नहीं-नहीं' से कोई जिंदगी के गीत बनते हैं? तो सिकुड़ गया। लेकिन कुछ रुग्ण लोग, जो नकारात्मक थे, उनके पीछे इकट्ठे हो गये। उनकी कतार लगी है। उनका सारा हिसाब इतना है कि बस 'नहीं' कहते जाओ। जो भी चीज हो उसे इनकार करते जाओ। इनकार कर-कर के वे कटते जाते हैं, मरते जाते हैं। तो उनकी प्रक्रिया करीब-करीब आत्मघात जैसी हो गयी। इसलिए जैन मुनियों के पास जीवन का उत्सव न मिलेगा, जीवन का अहोभाव न मिलेगा। इसलिए जैन मुनियों के पास तुम्हें जीवन की सुरभि न मिलेगी। तुम्हें जैन मुनियों के पास कोई गीत और नृत्य न मिलेगा। यह भी क्या धर्म हुआ, जिससे नृत्य पैदा न हो सके! यह भी | क्या धर्म हुआ जिससे गीत का जन्म न हो सके, जिसमें फूलन खिलें! यह सिकुड़ा हुआ धर्म हुआ। यह बीमारों को उत्सुक करेगा। निषेधात्मक और नकारात्मक लोगों को बुला लेगा। यह एक तरह का अस्पताल होगा, मंदिर नहीं। इसलिए मैं तुमसे कह देना चाहता है कि महावीर की अहिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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