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जिन-शासन की आधारशिला : संकल्प
कहां जा रहे हैं, सज्जन ने कहा, 'भाई! मकान पर तो आपने जरा गौर से देखो, तुम्हारी सब तालियां व्यर्थ गई हैं। क्रोध अधिकार कर ही लिया है। कहीं सामान भी हाथ से न जाता रहे, करके देखा, लोभ करके देखा, मोह करके देखा, काम में डूबे, इसलिए यहां से भागना अच्छा है।'
| धन कमाया, पद पाया, शास्त्र पढ़े, पूजा की, प्रार्थना की-कोई इससे उलटी हालत तुम्हारी है। मकान पर तो अधिकार हो ही ताली लगती है? गया है संसार का, सामान पर भी अधिकार हो गया है! तुम ही महावीर कहते हैं, संसार की कोई ताली लगती नहीं। और जब बचे हो, और तो सब खो दिया है। अब अपने को ही खो रहे हो। तुम सब तालियां फेंक देते हो, उसी क्षण द्वार खुल जाते हैं। भागो! महावीर की साधना-विधि जीवन में आग लगी है, ऐसा संसार से सब तरह से वीतराग हो जाने में ही ताली है, चाबी है। देखकर तुम्हें जगाने की और इस घर को छोड़ देने के लिए है। बाहर आओ! लोग तुमसे कहेंगे, 'पलायनवादी हो रहे हो?'
आज इतना ही। महावीर कहते हैं, घर में जब आग लगी हो तो पलायन ही समझदारी है। जहां दुख हो, वहां से भाग जाना ही समझदारी
और ध्यान रखना, अगर तुम दुख से बच सको तो सुख की संभावना का द्वार खलता है। लेकिन सख कहीं बाहर नहीं है। सुख तुम्हारा स्वभाव है। संसार बाहर है। सुख तुम्हारा स्वभाव है। जितने तुम बाहर जाओगे उतने सुख से दूर होते चले जाओगे। जितने तुम बाहर न जाओगे उतनी ही सुख की धुन बजने लगेगी। सुख का सितार बजने को तैयार रखा है, सिर्फ तुम घर आओ। ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक धनपति के घर नौकरी करता था। एक दिन उसने कहा, 'सेठ जी, मैं आपके यहां से नौकरी छोड़ देना चाहता है। क्योंकि यहां मुझे काम करते हुए कई साल हो गए, पर अभी तक मुझ पर आप को भरोसा नहीं है।' सेठ ने कहा, 'अरे पागल! कैसी बात करता है! नसरुद्दीन होश में आ! तिजोरी की सभी चाबियां तो तुझे सौंप रखी हैं। और क्या चाहता है? और कैसा भरोसा?'
नसरुद्दीन ने कहा, 'बुरा मत मानना, हुजूर! लेकिन उसमें से एक भी ताली तिजोरी में लगती कहां है।' जिस संसार में तुम अपने को मालिक समझ रहे हो, तालियों का गुच्छा लटकाए फिरते हो, बजाते फिरते हो, कभी उसमें से ताली कोई एकाध लगी, कोई ताला खुला? कि बस तालियों का गुच्छा लटकाए हो। और उसकी आवाज का ही मजा ले रहे हो। कई स्त्रियां लेती हैं, बड़ा गुच्छा लटकाए रहती हैं। इतने ताले भी मुझे उनके घर में नहीं दिखाई पड़ते जितनी तालियां लटकाई हैं। मगर आवाज, खनक सुख देती है।
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