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________________ जिन सूत्र भागः1 TIPRETRIES सत्य महासागर जैसा है: असत्य छोटे-छोटे डबरे हैं। अगर | मौत। उसके सामने तो एक ही सवाल होगाः अगर जीना है तो जरा भी इधर-उधर गये तो चूक जाओगे। हाथ-पैर फेंको, नहीं मरे! नदी तो भूल ही जायेगी, मौत और समर्पण घट सके, इसके लिए संकल्प पूरी तरह कर लो। जीवन के बीच चुनाव होगा। कौन चिंता करता है उस समय कि दोनों हालत में संकल्प जरूरी है। संकल्प से पहुंचना हो तो भी | बहो। तैरना जो नहीं जानता है, वह हाथ-पैर तड़फड़ाने लगेगा। जरूरी है; समर्पण से पहुंचना हो तो भी जरूरी है। संकल्प हर | जो तैरने में बहत कुशल है, वही राजी होगा: वह कहेगा कि ठीक हाल आवश्यक है और पूरा। क्योंकि जो थोड़ा तुमने अधूरा है, बहकर देख लें। किया, जो बच गया, वही तुम्हें सतायेगा; वही समर्पण को निर्भय चित्त से बहना संभव है। संकल्प तुम पूरा कर लो। घटित न होने देगा। | उससे तुम तैरना सीख जाओगे। अगर पहुंच गये तैरने से, तो और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि इसी मार्ग से चलोगे तो | ठीक है, पहुंच ही गये। अगर न पहुंचे, तो घबड़ाने की कोई बात पहंचोगे। अगर तुम्हें पहंचना है तो ऐसा कोई भी मार्ग नहीं है जो नहीं। एक उपाय शेष रह जाता है-निरुपाय होने का उपाय: तुम्हें रोक पाये। लेकिन पहुंचने की एक शर्त है : जो भी करो, असहाय होने का उपाय। मन भाव से करना। अब समर्पण तो किया नहीं जा सकता. भक्ति की वही भाषा है। प्रेमी की वही भाषा है। सफियों की. इसलिए संकल्प ही करो। तो यहां भी मैं इतने संकल्प के प्रयोग नानक की, कबीर की, मीरा की, चैतन्य की, वही भाषा है: छोड़ तुम्हें देता हूं और समर्पण की बात किये चला जाता हूं। दो! लेकिन इसके पहले वे बड़े निष्णात हो चुके हैं तैरने में। ऐसे मेरे पास लोग आ जाते हैं, कभी-कभी वे कहते हैं, आप कहते ही, बिना तैरना जाने कौन कब छोड़ पाया है? तुम्हारे अचेतन से हैं समर्पण, कुछ भी नहीं करना, सिर्फ बहना है। फिर क्यों इतने जोर का भय उठेगा कि उस भय से तुम प्रभावित हो ध्यान? फिर क्यों पांच-पांच ध्यान दिन में? मैं जानता हूं कुछ | जाओगे, तड़फड़ाने लगोगे; चिल्लाने लगोगेः बचाओ! भी नहीं करना, बहना है; लेकिन तुम जैसे हो, अभी बह न कहते हैं, जब कोई संगीतज्ञ परिपूर्ण रूप से पारंगत हो जाता है, सकोगे। तुम तैरने लगोगे। तुम तड़फड़ाने लगोगे। तो वीणा तोड़ देता है; क्योंकि फिर वीणा से भी सूक्ष्म संगीत में मुर्दे की भांति नदी में छूट जाने के लिए तैरने की बड़ी गहरी बाधा पड़ती है। वीणा भी तो कोलाहल ही पैदा करती है। मधुर कुशलता चाहिए। बड़ा तैराक ही अपने को छोड़ सकता है नदी कोलाहल, पर है तो कोलाहल ही। जब कोई और गहरे संगीत में में। क्योंकि बड़ा तैराक ही भय से मुक्त हो जाता है। वह जानता उतरने लगता है, जहां शून्य की ध्वनि बजती है, जहां शून्य का है कि तैर लेंगे जब जरूरत होगी। अगर कोई कठिनाई आ गई तो अनाहत नाद है; तो वीणा भी हटा देता है, वीणा भी छोड़ देता तैरना तो अपने पास है। जितना बड़ा तैराक हो, उतना ही अपने है। अब तो भीतर का अंतरंग बजने लगा, अब बाहर के सहारे को निस्पंद छोड़ देता है। हाथ-पैर भी नहीं हिलाता। क्योंकि वह कौन लेता है! जानता है, डर क्या है! हाथ अपने पास हैं, मैं सदा मौजूद ऐसा ही मैं तुमसे कहता हूं। समर्पण में जो उतरना चाहता हो, हूं-अगर कोई घड़ी ऐसी आई तो तैर लूंगा। लेकिन ऐसी घड़ी संकल्प में कुशल हो जाना जरूरी है। इसलिए तो इन विपरीत का भय उसे नहीं सताता। | मार्गों की तुमसे चर्चा करता रहता हूं, ताकि कोई मार्ग तुम्हें पकड़ जिसने तैरना नहीं जाना, उससे मैं कहं कि त कद जा नदी में, न ले। और इन विपरीत का उपयोग तम रोज करते हो सामान्य छोड़ दे अपने को, वह कूद भी जाये किसी प्रेरणा में, किसी जीवन में; लेकिन परमात्मा की तरफ जाते वक्त भूल जाते हो। उल्लास के क्षण में, उत्साह में, उत्तेजना में, किसी मदहोशी में, | जरा व्यवहारिक बनो! चलते हो तुम, तो तुम्हारे दोनों पैर एक मेरी बात में पड़ जाये, मेरा गीत उसे पकड़ ले, नशे में आ जाये, साथ नहीं चलते; एक पैर खड़ा रहता है तो दूसरा उठता है। कूद जाये तो कूदते ही भूल जायेगा कि मैंने क्या कहा था। वह । दोनों विपरीत काम करते हैं: एक खड़ा रहता है-अडिग, तत्क्षण हाथ-पैर फेंकने लगेगा। वह हाथ-पैर फेंकना अवश जमीन को पकड़कर; दूसरा उठता है, आगे जाता है। फिर दूसरा होगा। उसे रोक न सकेगा। क्योंकि रोकने का मतलब होगाः खड़ा हो जाता है तो पहला उठता है, आगे जाता है। 256/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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