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जन सत्र भागः1
थोड़ा सोचो तो! सुख तुम्हारी ही धारणा का होगा। जागते में भी उसने कहा, 'मैं हंस रहा हूं इसलिए कि अब किसके लिए इतना सुख नहीं मिलता, क्योंकि जागते में एक जीवित स्त्री उस रोऊ! अभी सपने में बारह लड़के थे, बड़े सुंदर थे, यह कुछ भी तरफ खड़ी है। जीवित स्त्री में पसीने की बदबू भी है। जीवित नहीं। बड़े स्वस्थ, बलिष्ठ थे। जैसे उनकी मौत कभी आएगी ही स्त्री में कांटे भी हैं। जैसे तुममें हैं, ऐसे उसमें हैं। जीवित स्त्री की न, ऐसे थे। अमृत-पुत्र थे। और बड़ा महल था, यह महल मौजूदगी थोड़ी बाधा भी डालती है। दूसरे व्यक्ति की मौजूदगी झोपड़ा है! सोने का बना था। राह पर हीरे-जवाहरात लगे थे। परतंत्र भी करती है। परतंत्रता की पीड़ा भी होती है। स्त्री हो तेरी चीख ने सब गड़बड़ कर दिया। न तेरा मुझे पता था, न इस सकता है, अभी राजी न हो कि आलिंगन करो, हाथ से हटा दे। बेटे का मुझे पता था; सपने में तुम ऐसे ही खो गए थे, जैसे अब लेकिन सपने में तो कोई तुम्हें हाथ से न हटा सकेगा। सपना खो गया। अब मैं सोचता हूं, किसके लिए रोना! उन
एक आदमी एक मनोवैज्ञानिक के पास गया और उसने कहा | बारह के लिए रोऊ पहले कि इस एक के लिए रोऊं? इसलिए कि मेरी बड़ी मुसीबत है, मेरी सहायता करें। मैं रात सपना | हंसी आती है। हंसी आती है कि रोना व्यर्थ है। हंसी आती है कि देखता हूं कि हजारों सुंदरियां नग्न मेरे चारों तरफ नाचती हैं। वह भी एक सपना था, यह भी एक सपना है। वह आंख-बंद मनोवैज्ञानिक अपनी कुर्सी से टिका बैठा था, सम्हलकर बैठ का सपना था, यह आंख-खुली का सपना है।' गया। उसने कहा, 'यह परेशानी है? अरे पागल! और क्या तुम जिसे सुख मान लेते हो, वह सुख मालूम पड़ता है। कई चाहता है ? इसमें परेशानी कहां है? तू अपना राज बता, कैसे तू दफा दुख को भी तुम सुख मान लेते हो; सुख मालूम पड़ता है। यह सपना पैदा करता है? क्या तेरी फीस है, बोल!' पहली दफा जब कोई सिगरेट पीता है तो सुख नहीं मिलता, दुख
उस आदमी ने कहा, 'परेशानी यह है कि सपने में मैं भी ही मिलता है, खांसी आ जाती है, धुआं सिर में चढ़ जाता है, लड़की होता हूं। यही झंझट है। मुझे किसी तरह सपने में आदमी चक्कर मालूम होता है, घबड़ाहट लगती है। आखिर धुआं ही रहने दो। यही पूछने आया हूं।'
है-गंदा धुआं है। उसको भीतर ले जाने से सुख कैसे हो सकता सपनों में सुख मिल जाता है। सपने में तुम कभी सम्राट हुए? | है? लेकिन फिर धीरे-धीरे अभ्यास करने से... जरूर हए होओगे। कोई कमी नहीं रह जाती।
_ 'रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निशान।' फिर चीन में एक बड़ा सम्राट हुआ। उसका एक ही लड़का था। घिसते-घिसते रस्सी के, अभ्यास करते-करते...'करत-करत वह मरणासन्न पड़ा था। वह उसके पास तीन दिन से बैठा था, | अभ्यास के जड़मति होत सुजान।' पहले जड़मति थे, अकल न तीन रात से बैठा था। सारी आशा वही था। सारी महत्वाकांक्षा | थी, इसलिए धुआं पीया और मजा न आया। फिर बुद्धि आ वही था। फिर झपकी लग गई उसकी; तीन दिन का जागा हुआ | जाती है अभ्यास से। फिर मजे से पीने लगते हैं। फिर बिना पीए सम्राट, बैठे-बैठे सो गया। उसने एक सपना देखा कि उसके | कष्ट मिलने लगता है। शराब पहली दफे पीकर देखी, बेस्वाद बारह लड़के हैं—एक से एक सुंदर, बलिष्ठ, प्रतिभाशाली, है, तिक्त है। फिर धीरे-धीरे वही मधुर होने लगती है। शराब मेधावी। बड़ा उसका स्वर्ण से बना हुआ महल है। महल के | जैसी तिक्त वस्तु मधु जैसी मधुर मालूम होने लगती है। रास्ते पर हीरे-जवाहरात जड़े हैं। बड़ा उसका साम्राज्य है। वह | अभ्यास...। चक्रवर्ती है। तभी बाहर जो बेटा बिस्तर पर पड़ा था, वह मर तुम अगर अपने जीवन के सुख-दुख की ठीक से छानबीन गया। पत्नी चीख मारकर चिल्लाई, सपना टूटा और सम्राट ने | करोगे तो तुम पाओगे जो तुमने सुख मान लिया, वह सुख; जो सामने मरे हुए लड़के को पड़ा देखा। पत्नी को चीखते देखा। तुमने दुख मान लिया, वह दुख। पत्नी जानती थी कि पति को बड़ा सदमा पहुंचेगा। घबड़ा गई, पूरब, सुदूर पूर्व में कुछ छोटे-छोटे कबीले हैं। वे चुंबन नहीं क्योंकि पति देखता ही रहा। न केवल रोया नहीं, हंसने लगा। करते। उन्हें पता ही न था जब तक वे सभ्यता के संपर्क में न आए पत्नी समझी कि पागल हो गया। उसने कहा, 'यह तुम्हें क्या कि लोग चुंबन भी करते हैं। और जब उन्होंने देखा कि हुआ? तुम हंस क्यों रहे हो?'
स्त्री-पुरुष चुंबन करते हैं तो वे बहुत घबड़ाए, बड़ा वीभत्स उन्हें
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