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________________ जिन सूत्र भागः1 स्वतंत्र होओ; जहां कोई मांग नहीं है; जहां मित्र की आंख यह तो सीमा होगी। बस प्रेम। प्रेम, तुम्हारे होने का ढंग। प्रेम, नहीं कह रही है कि ऐसे नहीं, ऐसे होओ। तुम्हारे होने की सुगंध, सुरभि। प्रेम, तुम्हारे होने की व्यवस्था। मैत्री बड़ी अनूठी घटना है। शब्द ही बचा है संसार में। मैत्री कोई न भी हो, तुम अकेले कमरे में बैठे हो तो भी प्रेम से भरे बैठे के फूल बहुत कम खिलते हैं। क्योंकि मैत्री के फूल के खिलने के | हो। उस शून्य में ही प्रेम उंडेल रहे हो। वक्षों के पास बैठे हो तो लिए दो ऐसे व्यक्ति चाहिए जो निष्कपट हों, जिनके बीच माया वृक्षों से प्रेम-वार्ता चल रही है। चांद-तारों को देखा है तो वहीं न हो। प्रेम का आलिंगन होने लगा। सरिता-सागर के पास गये हो तो 'माया, मैत्री को नष्ट करती है। और लोभ, सब कुछ नष्ट वहीं मैत्री का सुर बजने लगा। अकेले कि भीड़ में, अकेले कि कर देता है।' अगर तुम्हारी जिंदगी में खंडहर ही खंडहर मालूम साथ में, सुख में कि दुख में लेकिन प्रेम की वीणा बजती ही पड़ता हो, मरूद्यान का कहीं कोई पता न चलता हो, मरुस्थल ही रहे; वह तुम्हारे भीतर श्वास हो जाये अहर्निश! पता हो न पता मरुस्थल, तो एक बात जान लेना कि तुमने लोभ के ढंग से ही हो, श्वास जैसे चलती रहती है, ऐसा प्रेम भी डोलता रहे! जीना सीखा है, तुम और कुछ नहीं जान पाये। लोभ, सब कुछ इस प्रेम की परम घटना के लिए महावीर ने अहिंसा नाम दिया नष्ट कर देता है। है। इस प्रेम को जीसस ने ईश्वर कहा है। प्रेम ईश्वर है। यह महावीर निदान कर रहे हैं। वे यह कह रहे हैं, अगर तुम्हारी लोभ, सब कुछ नष्ट कर देता है। 'लोहो सव्वविणासणो!' जिंदगी में कोई रस-वर्षा न होती हो, तो दोष मत देना किसी लोभ और प्रेम विपरीत हैं। इसे समझो। लोभी व्यक्ति प्रेम को—इतना ही जानना कि तुम लोभ में बड़े गहरे उतर गये हो। नहीं कर पाता-कर ही नहीं सकता। क्योंकि प्रेम में बांटना तुमने लोभ की बड़ी गहरी सीढ़ियां पार कर ली हैं। तुम लोभ के पड़ता है, देना पड़ता है। लोभी कृपण होगा, बांटेगा कैसे? कुएं में डूब गये हो। तो ही ऐसा होता है कि सब नष्ट हो जाये। लोभ तो इकट्ठा करता है। लोभ तो जो इकट्ठा कर लेता है, उसकी उसने मंशाए-इलाही को मकम्मिल कर दिया रक्षा में लग जाता है उसमें से कोई एक पैसा खींच न ले! अपनी आंखों पर जिसने लिये मुहब्बत के कदम। इसलिए तो इस देश में कहावत है कि जब कोई लोभी मरता है, जिसने मैत्री सीखी, जिसने प्रेम सीखा, जिसने मैत्री के लिए | मरकर सांप हो जाता है; मंडली मारकर, कुंडली मारकर, बैठ माया छोड़ी, जिसने प्रेम के लिए क्रोध छोड़ा, जिसने विनय के | जाता है अपने खजाने पर। अब सांप कोई सोने को भोग नहीं लिए मान छोड़ा, और जिसने जीवन को सृजनात्मक गति देने के सकता–भोगने का सवाल भी नहीं है। लिए लोभ से विदा ली-उसने मंशाए-इलाही को मुकम्मिल लोभी बड़ा अदभुत आदमी है। जरा उसको समझो। क्योंकि कर दिया; उसने परमात्मा की आकांक्षा पूरी कर दी। वह सबके भीतर छिपा है, उसे समझना जरूरी है। लोभी बड़ा ..अपनी आंखों पर जिसने लिए मुहब्बत के कदम। अनूठा आदमी है। साधारण घटना नहीं है लोभी। लोभी उतनी -फिर उसकी आंखों पर मुहब्बत की छाया पड़ने लगी। फिर ही बड़ी असाधारण घटना है जितनी बड़ी असाधारण घटना प्रेमी उसके हृदय में मुहब्बत के कमल खिलने लगे। है। दोनों छोर हैं, अतियां हैं। लोभी भोगता नहीं, सिर्फ भोग की प्रेम परम घटना है। अब इसे हम समझें। आशा को भोगता है। धन इकट्ठा कर लेता है, उसे खर्च नहीं महावीर कहते हैं, लोभ से सब नष्ट हो जाता है और प्रेम से करता। खर्च में तो कम होगा। धन इकट्ठा कर लेने में ही उसका सब उपलब्ध हो जाता है। महावीर कहते हैं, 'मित्ति मे भोग है। धन तो सिर्फ संभावना है। तुम सोने की ईंट रखकर बैठे सव्वभुएषु।' सबसे मैत्री, सबसे प्रेम, सर्वभूतों से। क्योंकि रहो कि मिट्टी की ईंट रखकर बैठ लो, कुछ फर्क न पड़ेगा। फर्क महावीर कहते हैं, एक से ही प्रेम करने में इतने कमल खिलते हैं, | तो तब पड़ेगा जब तुम भोगने जाओगे; बिना भोगे तो मिट्टी की जरा सोचो, सबसे प्रेम! प्रेम तुम्हारा स्वभाव बन जाये। प्रेम ईंट और सोने की ईंट बराबर है। तुम्हारे खीसे में रुपया है या संबंध न रहे। ऐसा नहीं कि किसी से प्रेम और किसी से नहीं; | नहीं, इसका पता तो तभी चलेगा जब तुम भोगने जाओगे। जब क्योंकि ऐसे प्रेम में तो कुछ न कुछ कमी रह जायेगी। ऐसे प्रेम में बाजार में कुछ खरीदने जाओगे, तब पता चलेगा कि रुपया है या 2381 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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