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________________ जिन सूत्र भागः1 ले रहे हैं? तो मैं भी लूंगा।' लेकिन लोग सांयोगिक हैं। लोग एक्सीडेंटल हैं। रंग उन्हें पहले मैंने कहा, 'तू रुक। तुझे इससे क्या प्रयोजन? यह भी खींचता है। डब्बा खाली हो तो भी चलेगा, लेकिन रंग, रंग बिलकुल सांयोगिक है कि मैं यहां खड़ा अपनी दर्खास्त भर रहा | आंख को खींच लेता है। कितनी ऊंचाई पर दुकान पर डब्बा ह, तू भी भर रहा है; मेरी दर्खास्त को एक तो देखने की कोई होना चाहिए, तब आंख जल्दी पकड़ में आती है। पांच फीट, तो जरूरत नहीं; देख भी ली तो तुझे कोई विषय इसलिए लेने की ठीक आंख की सीध में होता है। लोग ऐसे अलाल हैं कि आंख जरूरत नहीं...। न तू मुझे जानता।' उसने कहा, 'यह भी आप | भी ऊपर उठाकर कौन देखता है। अगर जरा डब्बा ऊपर रखा ठीक कहते हैं। मैंने यह सोचा ही नहीं।' हो, या डब्बा बहुत नीचे रखा हो...तो अब तो विशेषज्ञ हैं इस तुमने कभी जिंदगी में देखा! इस तरह रोज हो रहा है। दुकान संबंध में, जो बताते हैं कि तुम जब कोई चीज बनाकर बाजार में पर तुम गये थे; कुछ खरीदने गये थे, कुछ खरीद लाये। क्योंकि | बेचो तो डब्बे का रंग क्या हो, कितने बड़े अक्षरों में नाम हो, दुकानदार बड़ा कुशल था। उसने बेच दिया कुछ। दुकान पर कितनी ऊंचाई पर दुकान में रखा जाये, कितनी दूरी पर ग्राहक गये थे, दुकानदार ने कुशलता भी न की हो, लेकिन दुकान की खड़ा हो, तो काउंटर कितने फासले पर बनाया जाये, बेचनेवाला खिड़की में सजी हुई चीजों में कुछ चीज जंच गई, जिसकी तुम्हें क्या कहे, कैसे शब्दों का उपयोग करे, क्योंकि जरा-जरा-सी क्षणभर पहले तक कोई भी जरूरत न थी, क्षणभर पहले तक तुम्हें बातें हैं...। सपना भी न आया था उसका; लेकिन बस आंख में पड़ गई, एक भिखमंगा एक घर में भीख मांगने गया। सुंदर है, स्वस्थ सरक गये तुम। शायद जरूरी काम छोड़कर, जो तुम लेने गये है, जवान है। महिला बाहर निकली और उसने कहा कि जवान थे, कुछ और लेकर आ जाओ। तुम जो लेने जाते हो, वही लेकर हो, स्वस्थ सुंदर हो, कोई काम क्यों नहीं करते? जिंदगी में लौटते हो? सफल हो सकते हो, भीख मांगने की जरूरत क्या है? पश्चिम में मनोविज्ञान इस पर बड़ी खोज करता है कि लोग उस आदमी ने कहा, 'अब तुमसे क्या कहें! दुनिया में बहुत क्या खरीदते हैं। और उन्होंने बड़ी तरकीबें खोजी हैं। और बड़े स्त्रियां देखीं, तुम जैसी सुंदर स्त्री नहीं देखी। फिल्म अभिनेत्रियां हैरानी के निष्कर्ष हाथ लगे हैं। | हैं, लेकिन तुम्हारे मुकाबले कुछ भी नहीं। तुम इस घर में क्या एक उपन्यास बिकता नहीं था; छप गया और बिका नहीं। कर रही हो? तुम तो फिल्म अभिनेत्री हो सकती थीं।' उस स्त्री विशेषज्ञों से सलाह ली तो उन्होंने कहा, इस किताब का नाम ने कह, 'रुक, रुक। मैं अभी तेरे लिए भोजन लाती हूं।' बदल दो, नाम ठीक नहीं है, नाम खींचता नहीं है। नाम बदल | भिखमंगे को भी समझना पड़ता है, क्या कहे, किन शब्दों का दिया, किताब बिकी। ऐसी बिकी, लाखों की प्रतियों में बिकी। उपयोग करे! क्योंकि लोग अंधे हैं। लोगों को पता नहीं, वे क्या सालभर से छपी पड़ी थी, कोई खरीदनेवाला न था। किताब वही कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं। तुम से लोग करवा रहे हैं। तुमने की वही, सिर्फ नाम बदलने से कुछ भी नहीं बदला, एक शब्द सैंकड़ों चीजें खरीद ली हैं जो बेचनेवालों को बेचनी थीं, तुम्हें भीतर नहीं बदला है, सिर्फ कवर, खोल बदल गई—और खरीदनी नहीं थीं। किताब बिकने लगी! पुराने अर्थशास्त्र का नियम था कि ः जहां-जहां मांग होती है, मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि चीजें बेचते हैं तो डब्बे वहां-वहां पूर्ति होती है। नये अर्थशास्त्र का नियम है : जहां-जहां का रंग क्या होना चाहिए। क्योंकि उन्होंने सब रंगों के डब्बे पूर्ति होती है वहां-वहां मांग पैदा हो जाती है। तुम चीज तो रखकर देखे। स्त्रियां खरीदने आती हैं, तो वे हिसाब लगाते हैं बनाओ! इसकी तुम फिक्र ही मत करो कि इसकी कोई मांग है या कि कौन-से रंग से ज्यादा आकर्षित होती हैं। कुछ रंग हैं जिनकी नहीं। मांग पैदा कर ली जायेगी। लोग पागल हैं। तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता। अगर उस रंग का डब्बा तुमने | बर्नार्ड शा ने जब पहली दफा अपनी किताबें लिखीं तो बिकी अपनी चीज को बेचने के लिए बना लिया है तो तुम्हारा दिवाला नहीं। क्योंकि नाम बिकता है। कोई नाम तो था नहीं। कोई निकलेगा। अब रंग से भीतर की चीज का कोई भी संबंध नहीं है, | जानता तो था नहीं बर्नार्ड शा को। तो क्या किया उसने? वह 234 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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