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________________ जिन सूत्र भागः1 SAR डालो...! में ठीक-ठीक न बैठ पाये, जो समाज की व्यवस्था में ठीक-ठीक समझा था न समझा है, न समझेगा 'रजा' कुछ न बैठ पाये। कि मैं पाबंदे-आदाबे-गुलिस्तां हो नहीं दीवाना था, दीवाना है, दीवाना रहेगा। सकता---कि जो बगीचे की व्यवस्था और क्यारियों में, बंटाव यहां तो मैं पागलों को बुलाया हूं। क्योंकि जो बुद्धिमान नहीं पा में, आयोजन में, शिष्टाचार में ठीक न बैठ पाये-जो जंगली सकते, वह पागल पा लेते हैं। जो ज्ञानी नहीं पा सकते, वह प्रेमी पौधे हैं, जो माली के काटने को बर्दाश्त नहीं करते, जिन्होंने पा लेते हैं। जो ज्ञानियों के मदरसे में न मिलेगा, वह मस्तों के अपने होने की परिपूर्ण स्वतंत्रता को स्वीकार किया है, जो वही मैकदे में मिल जाता है। होना चाहते हैं जो परमात्मा ने उन्हें होने के लिये भेजा है। यह तो एक मधुशाला है। यहां तो जो मेरे साथ उस आत्यंतिक | अन्यथा नहीं। जो किसी और नीति-नियम, और किसी मर्यादा गहराई पर नाचने को उत्सुक हैं...। वे गहराइयां दिखाई भी नहीं को नहीं मानते, जो जीवन पर परम श्रद्धालु हैं-उन्हीं के लिए पड़तीं, उन गहराइयों के लिए शब्द भी नहीं हैं। वे निराकार की निमंत्रण है। और वे ही आयेंगे तो आ पायेंगे। दूसरे आ भी हैं। तो तुम जैसे-जैसे मेरे सरगम में बैठोगे, जैसे-जैसे पास जायेंगे भूले-भटके तो मुझसे उनका कोई संबंध न बन सकेगा। आओगे, जैसे-जैसे मेरे और तुम्हारे बीच उपनिषद का संबंध वे आयेंगे, परदेशी रहेंगे। वे मेरे अंग न हो पायेंगे। न मैं उनका बनेगा-उपनिषद यानी पास बैठने का! उपनिषद के वचन उन अंग हो पाऊंगा। वे आयेंगे और मुझसे बिना परिचित हए लौट गुरुओं के वचन हैं, जिनके पास कुछ शिष्य बैठ गए। ये गुरुओं जाएंगे। बहुत आते हैं, लौट जाते हैं। सभी आते हैं, सभी का ने कहे कम हैं, शिष्यों ने पकड़े ज्यादा हैं। परिचय थोड़े ही हो पाता है! हजार आते हैं तो दस रुक पाते हैं। जब मेरे और तुम्हारे बीच उपनिषद का संबंध बनेगा, जब तुम दस रुकते हैं तो एक का परिचय हो पाता है। पास आते-आते इतने पास आ जाओगे कि मेरे अंतरराग से 'किंतु यह तो मेरा मत हुआ। रहना तो उन लोगों के साथ है, तुम्हारा राग मिल जायेगा, मेरी वीणा और तुम्हारी वीणा जो आपके विरोध में हैं। अतः कृपापूर्वक बताएं कि कैसे अपने साथ-साथ कंपित होने लगेगी, स्पंदन सहयोग में होने लगेगा; सत्य की रक्षा करूं!' मेरी श्वासें और तुम्हारी श्वासें एक साथ चलने लगेंगी, मेरा __ सत्य अपनी रक्षा स्वयं करता है। तुम डरे हो। तुमने अभी मेरे हृदय और तुम्हारा हृदय एक साथ धड़कने लगेगा, मेरा होना | सत्य को जाना नहीं है। माना होगा, इसलिए डर है। इसलिए और तुम्हारा होना दो अलग सीमाओं में बंटा हुआ न होगा, तुम्हें रक्षा करने का खयाल पैदा होता है। इसलिए तुम सोचते हो, एक-दूसरे में डूबने लगेगा—ऐसे मिलन में उपनिषद का संबंध कहीं वे खंडन न कर दें। सत्य का कभी कोई खंडन कर पाया? बनता है। उस क्षण तुम्हें महिमा पता चलेगी, जो यहां हो रहा है। मजनू प्रेम में पड़ गया है लैला के। गांव के राजा ने उसे बुलाया उसकी। यहां हाथ से भभूत नहीं गिरायी जा रही है, न स्विस मेड | और कहा, 'तू बिलकुल पागल है! यह लैला साधारण-सी घड़ियां प्रगट की जा रही हैं। यहां कुछ और हो रहा है, जो उन्हीं | बदशकल औरत है। तेरी दीवानगी और तेरा पागलपन देखकर को दिखाई पड़ेगा जिन्हें आंख बंद करने की कला आ गई। यहां मुझे भी दया आती है।' उसने अपने महल से बारह सुंदरियां कुछ और घट रहा है जो उन्हीं को दिखाई पड़ेगा, जिन्होंने संसार | बुलवाई और कहा, तू कोई भी चन ले। परम संदरियां को खूब देख लिया, खूब देख लिया और कुछ भी न पाया। थीं—राजा के महल की सुंदरियां थीं। मजनू ने गौर से देखा और अगर देखने की कुछ और महिमा की आकांक्षा रह गई हो तो उसने कहा, 'लेकिन लैला इनमें कोई भी नहीं।' राजा ने कहा, भटक लेना, उसे पूरा कर लेना। हार जाओ सब भांति, तब मेरे 'पागल हुआ है? लैला इनके पैर की धूल भी नहीं है।' पास आ जाना। हारे को हरिनाम! मजनू हंसने लगा और उसने कहा, 'हो सकता है। लैला को मैं दीवाना भला, मुझको मेरे सहरा में पहुंचा दो आपने कभी देखा?' कि मैं पाबंदे-आदाबे-गुलिस्तां हो नहीं सकता राजा ने कहा, 'बिना देखे नहीं कह रहा हूं। तेरी दीवानगी मेरे पास आने का उनके लिये निमंत्रण है जो बगीचे के नियमों देखकर मैं भी उत्सुक हो गया था कि कुछ होगा। तो मैंने भी 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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