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________________ TERRIBE MEERUARDAN अनुकरण नहीं-आत्म-अनुसंधान LABERDER का है। महावीर ने मनुष्य को अंतिम इकाई माना। मनुष्य की | जगी नहीं, बल्कि आत्मा ने स्वच्छंदता का मार्ग लिया। आत्मा ने महिमा ऐसी किसी व्यक्ति ने कभी न गायी थी। मनुष्य के ऊपर | कहा, फिर ठीक है, अब कोई मालिक नहीं है; तो अब जो मौज कुछ न कुछ था। हो करें; तो अब तक जो-जो बंधन थे, निषेध थे, तोड़े तो अब चंडीदास का बड़ा प्रसिद्ध वचन है : तक जो-जो प्रतिबंध थे, उन्हें उखाड़ें: तो अब तक जो-जो करने साबार ऊपर मानुस सत्य, ताहार ऊपर नाईं। से रोके गए थे, अब कर ही लें। चंडीदास ने जरूर महावीर से लिया होगा। या चंडीदास के जैसे घर में बाप मर जाए तो बेटे में दो घटनाएं घट सकती भीतर भी वैसी ही भाव-ऊर्मि उठी होगी, जैसी महावीर के हैं-या तो वह नीत्से के रास्ते पर जा सकता है, या महावीर के। भीतर। चंडीदास कहते हैं : साबार ऊपर मानुस सत्य, सब सत्यों बाप मर जाए, तो निषेधात्मक तो यह होगा कि बाप ने जो-जो के ऊपर मनुष्य का सत्य है; ताहार ऊपर नाईं, उसके ऊपर कुछ करने से रोका था—कि मत जाना शराबघर, मत जाना वेश्या के भी नहीं। पास-अब कर लो। अब कोई रोकनेवाला न रहा। दूसरी इससे बड़ी और महिमा, इससे बड़ा गुणगान न हो सकता था। घटना भी घट सकती है कि अब तक तो बाप रोकनेवाला था, महावीर ने परमात्मा को इनकार किया, ताकि आत्मा को परम अब वह भी न रहा, अब मुझे जागना पड़ेगा ! अब जो काम बाप पद दिया जा सके। क्योंकि परमात्मा रहेगा तो आत्मा दोयम कर देता था, वह मुझे खुद ही करना पड़ेगा। तो अब तक तो डर रहेगी, नंबर दो रहेगी। परमात्मा रहेगा तो नजर दूसरे पर ही था कि किसी दिन बाप की आज्ञा तोड़कर पहुंच भी जाता रहेगी। लाख उपाय करो, नजर अपने पर न आ पाएगी। शराबघर, अब तो पहुंचने का कोई उपाय न रहा; अब तो मेरी ही यहीं परब और पश्चिम की मनीषा का फर्क स्पष्ट होता है। आज्ञा है; मैं ही जानेवाला हूँ। तो अनुशासन पैदा होगा। जब भी नीत्से भी इसी तर्क के करीब पहुंच गया था जहां महावीर पहुंचे। बाप मरता है तो दोनों घटनाएं सामने आती हैं। क्या तुम चुनोगे, सौ वर्ष पहले नीत्से भी करीब-करीब इसी घटना के आ गया, | तुम्हारा निर्णय है। जहां उसे एक बात समझ में आने लगी कि ईश्वर के रहते मनुष्य महावीर ने भी कहा कि कोई ईश्वर नहीं है। महावीर ने तो और परिपूर्ण स्वतंत्र न हो सकेगा। कोई ऊपर रहेगा। कोई नजर भी गहरी बात कही है। कौंधती ही रहेगी। कोई जांचता ही रहेगा। कोई मालकियत नीत्से ने तो कहा, मर चुका है। महावीर ने कहा, कभी था ही जतलाता ही रहेगा। ठीक वहीं उसी बिंदु पर जहां महावीर पहुंचे, नहीं, मरने का कोई सवाल नहीं। कल्पना थी। नीत्से भी पहुंचा; लेकिन तब रास्ते अलग हो गए। महावीर तो लेकिन वहीं से उन्होंने सूत्र अपने हाथ में ले लिया। उन्होंने विमुक्त हुए, नीत्से विक्षिप्त हुआ। क्या फर्क पड़ गया? नीत्से कहा, कोई परमात्मा नहीं है, इसलिए अब प्रत्येक को परमात्मा ने यह बात तो समझ ली कि परमात्मा नहीं होना चाहिए, लेकिन | होना पड़ेगा। परमात्मा तो होना ही चाहिए, और कोई परमात्मा बात दूसरी न समझ पाया। यह तो निषेधात्मक अंग हुआ कि नहीं है। बिना परमात्मा के तो न चलेगा। तो अब जुम्मेवारी बड़ी परमात्मा न होना चाहिए। दूसरी बात न समझा कि अगर है, गहन है, असीम है। परमात्मा नहीं है तो अब आदमी को परमात्मा होना पड़ेगा। यह स्वतंत्रता उत्तरदायित्व बनी। कोई स्वतंत्रता ही नहीं है, जुम्मेवारी भी है। यह स्वच्छंदता बन इसलिए महावीर जैसा साधक खोजना बहुत मुश्किल है। गई नीत्से के लिए। तो नीत्से ने कहा, 'गाड इज़ डैड। एंड नाउ क्योंकि कोई सहारा भी नहीं है, जिसके चरणों में बैठकर रो लेते; मैन इज़ फ्री टू ड व्हाट सो एवर ही वांटस ट डा'. जिससे शिकायत-शिकवा कर लेते; जिससे कह देते कि तू क्यों _ 'ईश्वर मर गया और अब आदमी स्वतंत्र है, जो भी करना | नहीं उठा रहा है हमें, हम तो उठने को तैयार हैं, जिससे कह देते चाहे करे।' कि हम असहाय हैं, अब तू कुछ कर; हमारे किए कुछ भी नहीं यह स्वच्छंदता बनी। ईश्वर की मृत्यु, आत्मा का पुनर्जन्म न होता, अब तू सम्हाल, अब कोई भी न रहा, अब बिलकुल बनी। इधर ईश्वर तो मरा, लेकिन उसकी मृत्यु के कारण आत्मा अकेले हैं, अब नितांत एकांत है! इस एकांत में अपने को ही 189 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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