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________________ जिन सूत्र भागः1 घटनामय रूप देखा, उसके भीतर जीवन बड़ी प्रज्वलता से अब नहीं है। न मैं वही हूं, न तुम वही हो। छोड़ो भी! जाने भी जलेगा। तब तुम यह नहीं कहोगे कि प्रेम कोई स्थायी निधि है, दो! उन बातों में पड़ने की जरूरत कहां है? एक तो तुमने कि रखी है हृदय में! प्रेम भी श्वास जैसा है; लो तो है, न लो तो थूककर गलती की, फिर रातभर व्यर्थ की चिंता की। अब नहीं है। | पश्चात्ताप कर रहे हो। अब छोड़ो! मेरी तरफ देखो। मैं वह नहीं तुम जो करते हो, उस कृत्य में ही चीजें होती हैं। तुम जो हो | हूं, जिस पर तुम थूक गये थे। तुम भी वह नहीं हो। उससे तुम्हारी कोई स्थिति का पता नहीं चलता, सिर्फ तुम्हारी आनंद, बुद्ध का शिष्य, पास बैठा था। उसने कहा कि ठहरें, क्रिया का पता चलता है। तुम कहते हो, यह आदमी साधु है। यह बात दर्शनशास्त्र की नहीं है। यह आदमी थूक गया था और इसका केवल इतना ही अर्थ हुआ, यह आदमी साधु होने में लगा | वही आदमी है। बुद्ध ने कहा, 'तुम थोड़ा देखो आनंद! कल है। यह आदमी साधुता को सम्हाल रहा है। तुम कहते हो, यह | यह थूक गया था, आज यह क्षमा मांगने आया है-वही आदमी आदमी ध्यानी है। इसका इतना ही अर्थ होता है कि यह ध्यान की हो कैसे सकता है? जो थूक गया था और जो क्षमा मांगने आया श्वासें ले रहा है। | है, इसमें तुम्हें भेद नहीं दिखायी पड़ता? तुम चेहरे से धोखे में यहां सब चीज चल रही है, कोई चीज ठहरी नहीं है। सब आ रहे हो। जरा भीतर देखो। यह आदमी वही नहीं है, नहीं तो रूपांतरित हो रहा है, प्रतिपल रूपांतरित हो रहा है। प्रतिपल नया थूकता। यह तो क्षमा मांगता है। यह कोई और है। यह किसी घट रहा है, पुराना जा रहा है। इसलिए तो कहते हैं, पुराने से मोह | नये का आविर्भाव हुआ है। तुम इस नये के दर्शन करो।' मत रखो; क्योंकि तुम्हारा मोह तुम्हें अटकायेगा। और जीवन | लेकिन आनंद मानने को राजी नहीं है, क्योंकि आनंद तो कल और तुम्हारा छंद टूट जायेगा। इसलिए तो कहते हैं, भविष्य की को ही पकड़े बैठा है। जो तुम्हें कल गाली दे गया था, वह आज चाह मत करो; क्योंकि भविष्य अभी नहीं है। अतीत न हो जब तुम्हें दुबारा मिले तो तुम कल को पकड़कर मत बैठना; चुका, भविष्य अभी नहीं है। जो न हो चुका उसे पकड़ोगे तो अन्यथा तुम जो आज आया है, उसे न देख पाओगे। हो सकता मुश्किल में पड़ोगे, अड़चन पैदा होगी; जो अभी नहीं है उसे तो है, क्षमा मांगने आया हो। कल जो मित्र था, आज शत्रु हो पकड़ोगे कैसे? सिर्फ कल्पना करोगे। जो है, उसे देखो। और सकता है। जो आज शत्र है, कल मित्र हो सकता है। जो है, वह प्रतिपल बहा जा रहा है। इस बहती गंगा का ध्यानी अपने को सतत खाली रखता है, निर्मल रखता है, साक्षात्कार करो। आंख खुली रखता है। बादल नहीं इकट्ठे करता। तथ्य को बुद्ध के ऊपर कोई एक व्यक्ति आया और थूक गया। नाराज देखता है, जैसा अभी है। न तो कल से तौलता है, न आनेवाले था बहुत। बड़े क्रोध में था। बुद्ध जैसे व्यक्तियों का होना भी कल से तौलता है। जैसा अभी है, उस तथ्य को देखता है। कुछ लोगों को बड़े क्रोध से भर देता है। क्योंकि बद्ध जैसे | लेकिन इस तथ्य को देखने के लिए तुम्हें भी सत्य होना पड़े। व्यक्तियों के होने से कुछ लोगों के होने की असंभावना पैदा हो इसलिए महावीर ने सत्य को समस्त धर्म का सार कहा। तप और जाती है। बुद्ध की मौजूदगी अहंकार को तोड़ती है। बुद्ध की | संयम, और शेष सब गुण उसमें समाविष्ट हैं। मौजूदगी कहती है कि तुम भी ऐसे हो सकते थे, न हो पाये। बुद्ध सत्य का अर्थ हआ : भीतर तुम जो हो, वही रहो। तो बाहर भी की मौजूदगी तुम्हें तुम्हारे सत्य से परिचित कराती है। बुद्ध का तुम उसी को देख पाओगे, जो है। हम बाहर वही देखते रहते हैं, फूल तुम्हें तुम्हारे कांटे की तरफ इशारा करवाता है। नाराजगी जो नहीं हैं। अतीत बड़ा बोझिल है। भविष्य भी बड़ा बोझिल पैदा होती है। है। और इन दोनों की कशमकश में, इन दो चक्कियों के पाट के ...थूका बुद्ध के ऊपर। बुद्ध ने पोंछ लिया अपनी चादर से। बीच वर्तमान का छोटा-सा क्षण पिस जाता है। तुम या तो दूसरे दिन वह आदमी क्षमा मांगने आया। रात भर सो न सका। कल्पना करते हो, या याददाश्तों में खोये रहते हो। तुम देखते ही बुद्ध ने कहा, 'नहीं, क्षमा की कोई बात नहीं; क्योंकि जो थूक | नहीं, जो तुम्हारे पास से गुजर रहा है। गया था, वह अब है ही कहां! जिस पर थूक गया था, वह भी जीवन को तथ्य में देखो। लेकिन उस देखने के लिए तुम्हें 162 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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