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प्रश्न-सार
आपने कहा कि सत्य संज्ञा नहीं है, क्रिया है। क्या प्रेम, आनंद, ध्यान, समाधि भी क्रिया ही हैं?
क्या क्रिया का समझ से कोई संबंध नहीं?
तीर्थंकर चौबीस ही क्यों, ज्यादा क्यों नहीं?
क्या परंपरा की जरूरत नहीं है? क्या परंपरा से हानि ही हानि हुई है?
क्या कारण है कि 'जिन' जैन बन कर रह गया?
किसी सुंदर युवती को देख कर मन उसकी ओर आकर्षित हो जाता है।
क्या यह वासना है, या प्रेम, या सुंदरता की स्तुति?
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