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________________ जिन सूत्र भागः 1 TIMEIN बहुत-बहुत पर्ते अपने मन में ढांकी हैं। हम वही कहते हैं, जो होने को नहीं है वहां भी असत्य निकलता है। वहां भी सत्य नहीं हम सोचते हैं रुचिकर लगेगा। हम वही कहते हैं, चुन-चुनकर, निकलता, वहां भी असत्य निकलता है। छांट-छांटकर, जो दूसरे को मोहित करेगा और हमारी एक सुंदर कभी तुमने पकड़ा अपने को? ऐसे मौकों पर भी, जब कि प्रतिमा निर्मित होगी। हम वही नहीं कहते जो हमारे भीतर उठता | कोई लाभ भी नहीं दिखाई पड़ता झूठ बोलने में, लेकिन झूठ है। भीतर गालियां भी उठती हों तो भी हम बाहर स्वागत के गीत बोलने की आदत हो गई है! इस आदत को तोड़ना पड़े! कितनी गाए चले जाते हैं। भीतर क्रोध भी उठता है तो भी ओंठों पर ही मजबूत हो, कितने ही हथौड़े मारने पड़ें, पर तोड़ना पड़े। और मुस्कुराहट को फैलाए चले जाते हैं। मुस्कुराहट झूठी होती है। धीरे-धीरे तुम जो हो उसके लिए राजी होना पड़े! हो सकता है, जो भी थोड़ा आंखवाला है, वह देख लेगा, झूठी है; जबर्दस्ती | प्रतिष्ठा खो जाए; क्योंकि हो सकता है, प्रतिष्ठा तुम्हारे असत्य ओंठों को ताना गया है, खींचा गया है-बही नहीं है। | पर ही खड़ी हो। हो सकता है, तुम्हारा सम्मान खो जाए; क्योंकि मुस्कुराहट भीतर से उठी नहीं है। मुस्कुराहट कहीं से आयी नहीं अकसर इस बात की संभावना है कि तुम्हारा सम्मान तुम्हारे उन्हीं है, बस ऊपर से लीपी-पोती गयी है। लेकिन हमारी मुस्कुराहट झूठों पर खड़ा हो, जो तुमने समाज के सामने बोले हैं। तुम्हारा झूठी है। हमारे आंसू झूठे हैं। हमारी सहानुभूति झूठी है, उदासी दिखावा, तुम्हारे प्रदर्शन, तुम्हारे नाटक ही बुनियाद में हों, तो झूठी है। हमारा सारा जीवन एक झूठ का व्यापार है। सम्मान भी गिर जाएगा। गिर जाने दो! इसे ही मैं संन्यास कहता जब महावीर कहते हैं सत्य, तो उनका अर्थ यह नहीं है, जैसा है, जिसको महावीर सत्य कह रहे हैं। गणित में होता है—दो और दो चार, यह सत्य हुआ गणित तुम जैसे हो, तुम बेशर्त उसे स्वीकार कर लो। कठिन होगा। का-ऐसे सत्य की बात महावीर नहीं कर रहे हैं। जब महावीर आग से गुजरना होगा। मगर आग निखारेगी। कचरा जल कहते हैं सत्य, तो वे यह कह रहे हैं कि तुम जो हो, जैसे हो, जाएगा, कुंदन बाहर आएगा। साफ शुद्ध सोना होकर तुम निपट और नग्न, खोल दो अपने को वैसा ही। तुम चिंता न करो निकलोगे। जो सोना आग से निकलने से डर गया वह कभी कि कौन क्या सोचेगा। तुम अपने में कोई भी आयोजन न करो। शुद्ध नहीं हो पाता। जो मनुष्य सत्य की आग से निकलने से जैसे वृक्ष खड़े हैं नग्न और सहज, ऐसे ही तुम भी नग्न और डरता है, वह कभी मनुष्य नहीं हो पाता। सहज हो जाओ। 'सत्य में तप, संयम, शेष समस्त गुणों का वास है।' महावीर का सत्य बड़ा कठिन है। पर महावीर का सत्य बड़ा तो पहला सत्य तो जो मैं हूं, वैसा ही अपने को स्वीकार कर गहरा भी है। और महावीर का सत्य ही सत्य है, दार्शनिकों के | लूं। जो मैं हूं, उससे अन्यथा होने की चेष्टा भी न करूं; क्योंकि सत्य में कुछ भी नहीं रखा है। वह तो बातचीत है, शब्दों का उस सब चेष्टा में ही झूठ प्रवेश करता है। जाल है। वह भी शायद कुछ छिपाने की चेष्टा है। ___ तुम क्रोधी हो, तो तुम क्या करते हो? तुम अक्रोध की साधना तुम अपने को पकड़ो। तुम अपना पीछा करो और | करते हो। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, 'मन बड़ा अशांत जगह-जगह देखो, चौबीस घंटे में कितना असत्य कर रहे हो! है, शांति की कोई तरकीब बता दें।' क्या करोगे शांति की अनजाने ही! ऐसा भी नहीं कि तुम सभी असत्य जान-जानकर तरकीब का? ऊपर-ऊपर लीपा-पोती कर लोगे, भीतर अशांति बोलते हो, सोच-सोचकर बोलते हो-आदत इतनी प्रगाढ़ हो उबलती रहेगी ज्वालामुखी की तरह। ऊपर-ऊपर तुम शांति के गई है, ऐसे रग-रोएं में समा गई है, ऐसे खून-खून की बूंद में बैठ भवन बना लोगे, ज्वालामुखियों पर बैठे होंगे भवन। भूकंप आते गई है, कि अब तो तुम किए चले जाते हो, कोई हिसाब भी नहीं ही रहेंगे। शांत तुम हो न पाओगे। रखना पड़ता। तुमसे असत्य ऐसे ही निकलता है जैसे वृक्षों से | शांत होने की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी अशांति को पत्ते निकलते हैं। अब कुछ करना भी नहीं पड़ता, कुशलता इतनी समझने की जरूरत है। पहले तो अशांति को स्वीकार करने की गहन हो गई है। कभी तो तुम चौंकोगे कि जहां जरूरत भी नहीं जरूरत है कि मैं अशांत हूं। फिर अशांति को पहचानने की होती, वहां भी असत्य निकलता है। जहां उससे कुछ लाभ भी जरूरत है कि यह अशांति क्या है—बिना किसी निंदा के। पहले 142 Main Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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