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________________ 140 जिन सूत्र भाग: 1 । महावीर कहते हैं, तुम जो हो उसमें ही रह जाओ; कुछ और होने की कोशिश मत करना, अन्यथा असत्य शुरू हो जाएगा। कमल कमल हो, गुलाब गुलाब हो; कमल गुलाब होने की कोशिश न करे, अन्यथा असत्य शुरू हो जाएगा। तुम तुम हो तुम महावीर होने की कोशिश भी करोगे तो असत्य हो जाएगा। तुम बुद्ध होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जायेगा। कभी कोई दूसरा महावीर हो पाया? कितने लोगों ने तो कोशिश की है! कितने लोगों ने कोशिश नहीं की है। पच्चीस सौ वर्षों में हजारों लोग महावीर होने की चेष्टा में रत रहे हैं- कोई दूसरा महावीर हो पाया? इतिहास के ज्वलंत तथ्यों को भी हम देखते नहीं, आंखें चुराते हैं। कोई दूसरा कभी बुद्ध हो पाया ? कभी कोई दूसरा राम मिला इस जीवन के पथ पर ? कभी फिर कृष्ण की बांसुरी दुबारा सुनी गई? पुनरुक्ति यहां होती नहीं । अनुकरण यहां संभव नहीं । यहां प्रत्येक बस स्वयं होने को पैदा हुआ है। और जिसने भी दूसरे होने की कोशिश की वह पाखंडी हो जाता है। आदर्शों ने तुम्हें असत्य कर दिया। यह बात बड़ी कठिन मालूम होगी; क्योंकि तुम तो सोचते हो, आदर्शवादी जीवन बड़ा महान जीवन है। आदर्शवादी जीवन असत्य का जीवन है । आदर्शवादी का अर्थ है कि मैं कुछ हूं, कुछ होने में लगा हूं। सत्यवादी के जीवन का अर्थ है : जो है, मैंने उसे स्वीकार किया; अब मैं उसको सरलता से जी रहा हूं; जो है— बुरा भला, शुभ-अशुभ; ; जैसा हूं, जैसा इस अनंत ने मुझे चाहा है, जैसा इस अनंत ने मुझे सरजा है, जैसा इस अनंत ने मुझे गढ़ा है - मैं उससे राजी हूं। सत्य है परम स्वीकार स्वयं का, और तब शेष गुण अपने-आप चले आते हैं, छाया की तरह चले आते हैं। शेष गुणों को खोजना भी नहीं पड़ता। आदर्शवादी खोजता है; सत्यवादी के पास अपने से चले आते हैं। आदर्शवादी खोजता रहता है और कभी नहीं पाता। सत्यवादी खोजता नहीं, और पा लेता है। लेकिन सत्य, समझ में आ जाए तो पहला तो सत्य का अर्थ है: तुम जैसे हो, निंदा मत करना। तुम जैसे हो, दूसरे से तुलना मत करना। क्योंकि तुलना में ही स्पर्धा शुरू हो गई। तुम जैसे हो, वैसे को परिपूर्णता से स्वीकार कर लेना । रत्तीभर भी ना-नुच Jain Education International न करना, यहां-वहां न डोलना । तुम जो हो सकते हो, तुम हो । तुम्हें जैसा अस्तित्व ने चाहा है, वैसे तुम हो। इसमें कुछ सुधार की जरूरत नहीं है। दौड़-धूप बंद करनी है। और इस होने में थिर हो जाना है। नहीं तो तुम डोलते रहोगे - कभी राम होना चाहोगे, धनुष उठा लोगे; कभी कृष्ण होना चाहोगे, बांसुरी बजाने लगोगे, न बांसुरी बजेगी न धनुष उठेगा। कभी महावीर होना चाहोगे, नग्न खड़े हो जाओगे - प्रदर्शन हो जाएगा । नग्न खड़े हो जाओगे लेकिन महावीर का निर्दोष भाव कहां से लाओगे ? तुम्हारी नग्नता तो आरोपित होगी। जो भी आरोपित है, वह निर्दोष नहीं होता । तुम्हारी नग्नता तो चेष्टित होगी, प्रयास से होगी। जो भी प्रयास से होता है, वह निर्दोष नहीं होता । जो भी चेष्टा से होता है, वह तो जबर्दस्ती होता है। महावीर नग्न कभी हुए नहीं — उन्होंने पाया । नग्न होने का कोई अभ्यास नहीं किया, जैसा जैन मुनि करते हैं। नग्न होने के लिए कोई आयोजन, व्यवस्था नहीं जुटाई – अचानक नग्न हो गए हैं। कथा है: महावीर घर से निकले तो एक चादर लेकर निकले थे। सोचा जितना कम होगा परिग्रह, उतनी कम असुविधा होगी। सोचा था, जितना कम होगा पास में, उतनी चिंता कम होगी। एक चादर लेकर निकले थे। वही ओढ़नी थी, वही बिछौना था। वही दिन में वस्त्र का काम दे देगी। वर्षा होगी तो सिर पर ढांककर छाता बना लेंगे। राह पर चल रहे थे कि एक नंगे भिखारी ने, भिखमंगे ने कहा, कुछ दे जाएं। सब लुटा चुके थे। यह एक चादर बची थी, तो आधी फाड़कर उसे दे दी। सोचा एक से चलता है, आधे से भी चल जाएगा। | जिनको समझ आ जाए कम से कम में भी चल जाता है और जिनको समझ न हो तो ज्यादा से ज्यादा में भी नहीं चलता । सवाल वस्तुओं का नहीं है, सवाल समझ का है। महावीर ने कहा, इतनी लंबी की जरूरत भी क्या है, थोड़े पैर सिकोड़कर सो जाएंगे। तन पूरा न ढंकेगा, थोड़ा कम ढंकेगा, हर्ज क्या है! हवा आती-जाती रहेगी, थोड़ी सूरज की किरणें शरीर को मिलेंगी। लेकिन आगे बढ़े, भागे जा रहे हैं जंगल की तरफ, एक गुलाब की झाड़ी से आधी चादर उलझ गई कांटों में। हंसने लगे। तो कहा, मर्जी नहीं है अस्तित्व की, कि चादर को ले जाऊं। राह में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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