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________________ जिन सूत्र भाग : 1 पर पर्दा है, तुम जहां जाओगे-तुम्हारी आंख का पर्दा... | तो कोई बैंक-बैलेंस है, न कोई जान-पहचान है, अपरिचित तुम्हारी आंख का पर्दा जन्मों-जन्मों तक तुम्हें घेरे रहेगा। दुनिया में जाते हैं, भाषा भी पता नहीं कि क्या भाषा बोलनी इसलिए यह तो पूछो ही मत कि कहीं चूक न जाऊं। कोई पड़ेगी! किस तरह के लोगों से मिलना होगा, कुछ पता नहीं है। उपाय नहीं चूकने का। अब तक कोई चूक ही नहीं पाया है। हां, तो बच्चा भी अगर समझदार हो जाये, जैसा कि कुछ लोग लेकिन तुम अगर मानना चाहो कि चूक गये हैं तो क्या करे, समझदार हैं, तो रुक जाये वहीं कि जाना नहीं। यहां सब मजे से सागर भी क्या करे? मछली को कैसे समझाये कि मैं यहां हूं? | चल रही है, ठीक से चल रही है, कहां की झंझट उठानी! भूख मछली की अगर यही मौज है कि चूकना चाहती है, चूकती रहे। लगेगी तो कौन दूध देगा! प्यास लगेगी तो कौन पानी देगा! और कहा है, आपकी शरण आयी हूं, स्वीकार करो। मां के पेट में तो श्वास भी मां ही लेती है, उसी से बच्चे को अस्वीकार कर सकता होता तो स्वीकार करता। मुझसे लोग आक्सीजन मिलती है। श्वास भी वह खुद नहीं लेता। मां के ही पूछते हैं कि आप हर किसी को संन्यास दे देते हैं! करूं क्या? भोजन पर पलता है। अस्वीकार करने का उपाय नहीं है। किसको अस्वीकार करूं? | लेकिन उसे पता नहीं कि जिसने उसे बनाया है, उसने इंतजाम मैं तो उनको भी देना चाहता हूं, जो लेने नहीं आये हैं, मगर क्या कर रखा है। वह आये, उसके पहले दूध तैयार है। करूं! जो आ जाता है उसको इनकार करने का तो सवाल कैसे __मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पुरुषों को इतनी ज्यादा रस की, उठे? तुम्हारे आने के पहले भी तुम्हें स्वीकार किया हुआ है। आकर्षण की बात स्त्री के स्तन में क्यों है? पुरुष के मन में स्त्री ऐसा नहीं है कि तुम्हारे बाबत सोचता था कि तुम्हें स्वीकार करना के स्तन का बड़ा आकर्षण है! काव्य-शास्त्र भरे पड़े हैं। है। स्वीकार मेरी भाव-दशा है। ऐसे एक-एक आदमी के बाबत कविताएं उरोजों के, स्तनों के आसपास घूमती हैं। तो सोचूंगा भी कैसे कि किस-किसको स्वीकार करूं? स्वीकार कहानियां...! क्या कारण है? वह भी परमात्मा की व्यवस्था मेरी भाव-दशा है। अस्वीकार करने का मेरे पास उपाय नहीं है। है। क्योंकि जो पिता बनने जा रहा है, इसके पहले कि पिता बने, निर्णय तुम्हारा है, इकतरफा है। मुझे स्वीकार कर लो या मुझे वह अपने बेटे के लिए ठीक उरोज, भरे उरोजों का इंतजाम कर ले अस्वीकार कर दो, यह तुम्हारी बात है। मेरी तरफ से तुम रहा है। वह भी परमात्मा का आयोजन है। पुरुष के मन में स्त्री स्वीकृत हो, स्वीकार करो तो, अस्वीकार करो तो। के स्तन का इतना आकर्षण है-वह आकर्षण इसीलिए है। वह और घबड़ाओ मत। प्यास आ गयी है तो पानी भी आयेगा। प्रकृति की व्यवस्था है, क्योंकि अगर स्त्री के स्तन ठीक न हों, जाननेवाले तो कहते हैं, पानी पहले आ गया होगा, तभी प्यास सुडौल न हों, भरे न हों, भरे-पूरे न हों, तो बच्चा भूखा मरेगा। आयी है। क्योंकि जाननेवाले कहते हैं, परमात्मा बच्चे को पैदा तो पुरुष उस स्त्री को खोजेगा, जिसके स्तन भरे-पूरे हैं। वह उसे करता है, उसके पहले मां के स्तन में दूध भर देता है। देखा है सुंदर मालूम होगी। सुंदर वगैरह मालूम होना तो ठीक है, मगर चमत्कार! रोज घटता है, लेकिन देखते नहीं! इधर मां गर्भवती पीछे प्रकृति बड़ा आयोजन कर रही है। वह यह कह रही है कि हुई, उधर बच्चा बढ़ने लगा। अभी बच्चा आया भी नहीं है यह स्त्री है जो तेरे बच्चे की मां बन सकेगी। यह बच्चे को बचाने बाहर, अभी दूध पीनेवाला तैयार ही हो रहा है, अभी रास्ते पर | का आयोजन चल रहा है, तुम धोखे में पड़ रहे हो-तुम समझ है लेकिन दूध तैयार हो गया! मां के स्तन दूध से भर जाते हैं। रहे हो, तुम सौंदर्य का इंतजाम कर रहे हो। बच्चा जब आयेगा तब आयेगा, लेकिन परमात्मा तैयारी पहले से इसलिए जिन स्त्रियों के स्तन ठीक नहीं हैं, वे धीरे-धीरे खो कर लेता है। | जायेंगी, उनको पति न मिलेंगे, उनकी संतान न होगी। वे ऐसा ही सारे जीवन में है। तुम नाहक ही दौड़-धूप करते हो। धीरे-धीरे खो जायेंगी। यह बात अलग है, तुम नाहक शोरगुल मचाते हो। वह तो बच्चे जीवन के रहस्य को अगर तुम समझो तो यहां प्यास के पहले को भी थोड़ी बुद्धि हो तो वह भी बड़ी चिंता करेगा गर्भ में | पानी तैयार है; श्वास के पहले हवा तैयार है। और इसकी समझ पड़ा-पड़ा कि पता नहीं, अब जन्म के बाद क्या होता है, देखें! न जिसको आ गई, उसी के जीवन में श्रद्धा का आविर्भाव होता है। 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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