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________________ परम औषधि : साक्षी-भाव यह होना चाहिए और वह नहीं होना चाहिए; स्वास्थ्य होना शोषण जारी है। चाहिए, बीमारी नहीं होनी चाहिए; जवानी मिलनी चाहिए, इसके मन में ऐसे ही विचार उठता है कि यह बुढ़िया मर ही बुढ़ापा नहीं मिलना चाहिए; मित्र घर आये, शत्रु नष्ट हो जाये तो क्या हर्ज होनेवाला है! इसका न तो कोई आगा, न कोई जाये...। इसलिए तो महावीर वेदों को धर्म न कह सके पीछा; न इसके मरने से कोई रोनेवाला है, सारा गांव खुश होगा क्योंकि वेद की प्रार्थनाओं में भी राग-द्वेष भरा हुआ मालूम पड़ता उलटे, प्रसन्न होंगे लोग, उत्सव मनाया जायेगा। इसको भगवान है। ऐसी प्रार्थनाएं हैं वेद में कि कोई प्रार्थना करता है इंद्र से कि हे | उठा क्यों नहीं लेता! और यह किसलिए जी रही है? न इसके इंद्र! मेरे दुश्मनों को नष्ट कर दे। कोई प्रार्थना करता है वेद में कि जीवन में कोई सुख है, कमर झुक गयी है, आंखों से दिखाई नहीं हे भगवान! मेरी गउओं के थनों में दूध बढ़ जाये और दुश्मनों की पड़ता, लकड़ी टेककर चलती है। इसे उठा ही ले भगवान! गउओं के थनों से दूध सूख जाये! भोले-भाले किसानों की अब इसमें कुछ बरा नहीं हआ है, लेकिन यह विचार का बीज प्रार्थनायें मालूम पड़ती हैं, धर्म कुछ नहीं मालूम पड़ता। यही तो उसके मन में पड़ गया, पड़ गया, पड़ गया, यह बार-बार दोहरने हमारी आकांक्षायें हैं कि मुझे मिल जाये, दूसरे को न मिले, मेरा लगा। जब भी बुढ़िया को देखे, उसे यह भाव कि यह उठ ही सुख-दूसरे का दुख भी हो तो उस कीमत पर भी! जाये...। धीरे-धीरे पहले तो सोचता था, परमात्मा उठा ले; महावीर कहते हैं, राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। और जहां | फिर सोचने लगा कि यह गांव भी कैसा है, कोई इसको मार ही तुमने चुना, कर्म शुरू हुआ। तुमने कहा, यह मिलना चाहिए, क्यों नहीं डालता? सारा गांव चूसे जा रही है। फिर धीरे-धीरे कि तुम उसे पाने की यात्रा पर निकले। तुमने कहा, कि यह नहीं | उसे यह भी खयाल उठने लगा कि मैं यहां बैठा-बैठा क्या कर होना चाहिए, कि तुम उसे मिटाने के लिए चले। तुम्हारे मन में | रहा हूं! एक झटके में यह खतम हो जायेगी। तब वह बड़ा चौंका यह विचार भी उठा कि दुश्मन मर जाये तो, महावीर कहते हैं, भी, कि यह कैसा मेरा विचार उठता है! लेकिन ये विचार डोलते हिंसा हो गयी, कर्म शुरू हो गया। रहे, ये तरंगें घूमती रहीं, ये भाव उसके मन में सरकते रहे, विचार कर्म का पहला चरण है। सरकते रहे, सघनीभूत होते गये। परीक्षा उसकी करीब आती है फिर धीरे-धीरे विचार घना होगा, सघन होगा, कृत्य बनेगा, और उसे फीस जमा करनी है और पैसे नहीं हैं, तो वह अपनी और आज जो तुम्हारे मन में सिर्फ एक भाव की तरह आया था, घड़ी बुढ़िया के पास रेहन रखने जाता है। सोचा भी नहीं है कुछ वह कल-परसों घटना बन जाएगा। | उसने, कोई हत्या का आयोजन भी नहीं किया है-बस वह घड़ी दोस्तोवस्की का बड़ा प्रसिद्ध उपन्यास है : 'क्राइम एंड | रेहन रखने गया है। सांझ का वक्त है, धुंधला होता जा रहा है, पनिशमेंट', अपराध और दंड। उसमें रासकलोनिकोव नाम का धुंधलका उतर रहा है; अभी लोगों के दीये भी नहीं जले। वह एक पात्र है। वह एक युवक है विश्वविद्यालय का। और उसके बुढ़िया के हाथ में घड़ी देता है, बुढ़िया उसे खिड़की के पास ले सामने ही एक बूढ़ी महिला रहती है-बड़ी धनपति और जाकर रोशनी में देखने की कोशिश करती है, कितने दाम की महाकंजूस! और उसका कुल धंधा गरीबों को चूसना है। ब्याज होगी। वह पीछे खड़ा है। अचानक वह पाता है कि जैसे का काम करती है, और जितना ब्याज ले सकती है उतना लेती आविष्ट हो गया। एक झटके में वह कूदा और उसने बुढ़िया की है। जो एक बार उसके जाल में फंस जाता है, वह फिर कभी गर्दन पकड़कर दबा दी। वह तो मरने के करीब थी ही। उसने निकल नहीं पाता। ब्याज ही नहीं चुका पाता, मूल के वापिस का चीख-पुकार भी न की और मर गई। वह धड़ाम से नीचे गिर तो सवाल ही नहीं है। ब्याज ही बढ़ता चला जाता है। इतनी पड़ी। तब इसे होश आया कि यह मैंने क्या कर दिया! तब यह ज्यादा मात्रा में ब्याज लेती है कि यह जो रासकलोनिकोव है, यह घबड़ाया। तब यह भागा। लेकिन किसी को पता भी नहीं चला बैठा-बैठा अपनी किताब पढ़ता रहता है, खिड़की से देखता है। और कोई यह सोच भी नहीं सकता कि यह युवक जो रहता है उस बुढ़िया को। बुढ़िया अस्सी साल की हो गयी। मरने चुपचाप अपनी किताबों में उलझा रहता है, इसकी हत्या करेगा। के करीब है। कोई उसके आगे-पीछे नहीं है। लेकिन उसका पुलिस खोजबीन करती है, मगर कोई पता नहीं चलता। किसी 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrar.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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