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________________ SERIERRENT परम औषधि : साक्षी-भाव मैंने उनसे कहा, तुम पागल हुए हो। टी. बी. से आज कहीं जायेगा; यह राम-राम जप लेना, सब ठीक हो जायेगा; यह मंत्र कोई मरता है। तुम पुराने जमाने की बात कर रहे हो। की माला फेर लेना रोज, सब ठीक हो जायेगा। काश, इतना घबडाहट । डाक्टर के पास जाने से लोग डरते हैं। जब बीमारी आसान होता। बहुत ही पकड़ लेती है, कोई उपाय ही नहीं रह जाता है। तब | | थोड़ा सोचो भी, कैसी बचकानी आकांक्षाएं हैं! क्या तुम डाक्टर के पास जाते हैं। डाक्टर के पास जाने के पहले और तरह सोचते हो जीवन इतना आसान है कि राम-राम जपने से ठीक हो के लोगों के पास जाते हैं-कोई ओझा, कोई मंत्र पढ़नेवाला, | जायेगा? जरा जीवन की जटिलता तो देखो, उलझन तो देखो! कोई फकीर, कोई ताबीज बांध देनेवाला-और जगह जाते हैं, इतना आसान है कि एक माला के गुरिए सरका देने से ठीक हो जहां सांत्वना है; लेकिन डाक्टर के पास सीधा-सीधा नहीं जायेगा? तुम किन मंदिरों के सामने हाथ जोड़े खड़े हो? जाते। क्योंकि डाक्टर तो सीधा कहेगा, फला-फलां बीमारी है, प्रतिमाएं परमात्मा की तो नहीं हैं—तुम्हारी ही आकांक्षाओं की इलाज की बात उठेगी। तो पहले मंत्र पढ़ते हैं, ताबीज बांधते हैं, हैं; तुमने ही बनायी हैं; तुमने ही प्रतिष्ठा दी है; तुमने ही पूजा दी भभूत ले आते हैं। पहले साईंबाबा; फिर जब सब साईंबाबा हार | है! पहले तुम भगवान बनाते हो, फिर अपने ही बनाये भगवान जायें, तब मजबूरी में चिकित्सक के पास जाते हैं। के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हो! थोड़ा जाल तो देखो! ठीक वैसा ही धर्म के जगत में भी है। पहले तुम उनकी बात | थोड़ी अपनी चालाकी तो देखो! पहले तुम्हीं भगवान बनाते हो! सुनोगे जो कहते हैं, संसार माया है। महावीर के पास जाने में तुम्हारी मान्यता से ही कोई मूर्ति भगवान हो जाती है। कल तक डरोगे, पैर कंपेंगे; क्योंकि महावीर तुम्हारी किसी भ्रांत बाजार में खड़ी थी, बिकती थी, तब भगवान न थी-फिर तुम आकांक्षाओं को सहारा देने में उत्सुक नहीं हैं। महावीर तो ठीक ले आते हो, मंत्रोच्चार करते हो, पूजा-प्रार्थना करते हो, तुम्हारी उस रग पर हाथ रख देंगे, जहां पीड़ा है, जहां दुख है। पंडित-पुरोहित इकट्ठे होते हैं, क्रियाकांड होता है। फिर पत्थर जो ये सूत्र निदान-सूत्र हैं। ये चिकित्सक के वचन हैं। इन्हें तुम | बाजार में बिकता था, तुम्हीं खरीद लाये, तुम्हारे ही जैसे लोगों ने गौर से सुनना। चाहे ये कितना ही कष्ट देते मालूम पड़ें, इनसे ही बनाया, उसी मूर्ति के सामने तुम हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हो! मक्ति का मार्ग है। महावीर के पास जाकर अगर तुम कह तुम प्रार्थना करने लगते हो! तुम भी जानते हो गहरे में, प्रार्थना सको काम न आयेगी। क्योंकि परमात्मा ही तुम्हारा बनाया हुआ है। फिर मैं आया हूं तेरे पास ऐ अमीरे-कारवां परमात्मा बनाने के हमने ग्रामोद्योग खोले हुए हैं। बिना परमात्मा --हे पथ-प्रदर्शक ! मैं फिर तेरे पास आया हूं। के रहना मुश्किल है; क्योंकि भय है, और जीवन है, और कष्ट छोड़ आया था जिसे तू, वो मेरी मंजिल न थी। है और कांटे ही कांटे हैं। तो पृथ्वी से आंख चुराते हैं। आकाश -जहां तू मुझे छोड़ आया था, या जहां मैंने तुझे छोड़ दिया | की तरफ देखते हैं। इसलिए सभी का परमात्मा आकाश में है। था, वह मेरी मंजिल न थी। मैं गलत पथ-प्रदर्शकों के साथ बुद्ध ने ठीक किया कि पृथ्वी की तरफ हाथ लगाकर कहा कि भटका। यह मेरी गवाह है। किसी और से पूछा होता तो वह आकाश की दुनिया में जहां एक ठीक पथ-प्रदर्शक होता है, वहां निन्यानबे तरफ इशारा करता कि वहां मेरा परमात्मा है, वह मेरा गवाह है। गलत भी होते हैं। होंगे ही, क्योंकि जिंदगी में इतना दुख है, और आकाश की तरफ तुम आंख उठाते हो क्योंकि पृथ्वी से आंख दुख से बचने की इतनी आकांक्षा है, कि भ्रांत और धोखा देनेवाले चुराना चाहते हो। लेकिन तुम जानते हो कितना ही झुठलाओ लोग भी पैदा होंगे ही। जहां इतने लोग बीमारी से बचना चाहते क्या फर्क पड़ेगा? हैं-बीमारी की चिकित्सा तो बहुत कम लोग करना चाहते हैं; मैंने सना है: पहली तो कोशिश यही होती है कि कोई समझा दे कि बीमारी है एक ऐसे गांव में जहां बारिश नहीं हो रही थी, एक पुजारी ने ही नहीं-वहां ऐसे लोग भी जरूर पैदा हो जायेंगे जो समझा देंगे घोषणा की कि वह सब गांववालों के सामने भगवान से प्रार्थना कि बीमारी है ही नहीं; यह ताबीज बांध लेना, सब ठीक हो करेगा कि वर्षा हो। ठीक समय पर सब गांववाले उपस्थित हो 1951 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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